आपदाएं यों तो कभी कह कर नहीं आतीं, लेकिन इनकी मार बहुत गहरी होती है। यह बात भी सही है कि बाढ़, तूफान, सूखा व अतिवृष्टि जैसी आपदाएं मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन से जुड़ी रहती हैं। महिला और बाल विकास मंत्रालय की ओर से कराए गए अध्ययन में यह तथ्य चौंकाने वाला है कि देेश के आपदा प्रभावित कुछ राज्यों में महिलाएं और बच्चे इन्हीं आपदाओं के कारण सेहत से जुड़े नए खतरों का सामना कर रहे हैं। इन्हीं कारणों से इन इलाकों में महिलाओं में समय पूर्व प्रसव, कम वजन की संतान का पैदा होना और बच्चों का कद कम रहने की आशंका ज्यादा रहने लगी है। इस अध्ययन में यह जानकारी तो और भी डराने वाली है कि हमारे देश में इक्यावन फीसदी बच्चे गरीबी और जलवायु परिवर्तन से जुड़े दोहरे संकट का सामना कर रहे हैं।
जाहिर है कि लगातार आपदा आती रहने के कारण बच्चों के पोषण पर भी असर गरीबी की वजह से ही ज्यादा पड़ता है। सिर्फ बच्चों में ही नहीं गर्भवती महिलाओं में भी कुपोषण का संकट गर्भ में पल रहे अजन्मे शिशु के शारीरिक विकास पर भी विपरीत असर डालता है। इन तमाम खतरों के बीच लगातार बढ़ता तापमान भी गर्भवती महिलाओं के साथ-साथ बच्चों में घातक संक्रामक बीमारियों के प्रसार का खतरा बढ़ाने के लिए काफी है। मंत्रालय के अध्ययन में इस बात पर भी चिंता जाहिर की गई है कि नीति निर्माण के दौरान कुपोषण, कम उम्र में गर्भधारण व महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा तक के बढ़ते मामलों के बावजूद ध्यान नहीं दिया गया। बात सिर्फ आपदाओं की ही नहीं, समुचित पोषण की भी है। महिलाएं और बच्चे कुपोषण के शिकार होंगे तो भावी पीढ़ी को मजबूत करने का काम कैसे हो सकेगा। इस अध्ययन में ही उल्लेख किया गया है कि हमारे देश में ३५ करोड़ से ज्यादा बच्चे साल में कम से कम एक बार जरूर किसी न किसी प्राकृतिक आपदा का सामना करते हैं। ऐसे में हमें इस संकट के समाधान की दिशा में काम करने की जरूरत है।
चिंता इस बात की भी है कि सरकारों की कई सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का समुचित लाभ संबंधित लोगों तक या तो पहुंच ही नहीं पाता या जरूरत के वक्त नहीं पहुंच पाता। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि आपदा प्रबंधन योजनाएं तैयार करने के साथ महिलाओं और बच्चों के पोषण की दिशा में ठोस प्रयास किए जाएं। आजादी के करीब ७७ वर्ष बीत जाने के बाद भी देश के बड़े हिस्से में महिलाएं व बच्चे संकटग्रस्त हों, तो यह वाकई चिंता की बात है। इस समस्या के समाधान के लिए आवश्यक कदम उठाने ही होंगे।