Home विविध मोदी सरकार के 100 दिन; जारी हैं सुधार प्रक्रिया

मोदी सरकार के 100 दिन; जारी हैं सुधार प्रक्रिया

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नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली तीसरी सरकार ने मंगलवार को अपने कार्यकाल के 100 दिन पूरे कर लिए। संयोगवश मंगलवार को ही मोदी का 74वां जन्मदिन भी था जिसके बारे में सरकार की ओर से कहा गया कि उसे कई विभागों द्वारा ‘सेवा पखवाड़ा’ के आरंभ के रूप मे मनाया जा रहा है। यह पखवाड़ा 2 अक्टूबर को समाप्त होगा।

केंद्र सरकार ने पहले 100 दिन में कई निर्णय लिए हैं जिनमें कई अधोसंरचना परियोजनाओं को मंजूरी देना शामिल है। बड़े निर्णयों की बात करें तो केंद्र सरकार ने आयुष्मान भारत योजना को 70 वर्ष से अधिक आयु के सभी बुजुर्गों के लिए मंजूर कर दिया है।

देश की विनिर्माण क्षमता बढ़ाने के संदर्भ में, जो कि रोजगार तैयार करने के लिए आवश्यक है, सरकार ने 12 औद्योगिक क्षेत्रों में औद्योगिक कॉरिडोर कार्यक्रम शुरू करने की घोषणा की है। रोजगार का मसला हल करने के लिए नई सरकार के पहले पूर्ण बजट में कंपनियों के लिए प्रोत्साहन की घोषणा की गई ताकि वे लोगों को काम पर रखें। इसके अलावा देश की शीर्ष 500 कंपनियों में इंटर्नशिप की घोषणा भी की गई।

सरकार ने पहले 100 दिन में कई निर्णय लिए हैं जिनका व्यापक संदेश यही है कि चरणबद्ध तरीके से सुधारों की प्रक्रिया जारी रहेगी। यह बात कैबिनेट निर्माण में भी नजर आई। अधिकांश आर्थिक और सुरक्षा संबंधी नेतृत्व पिछले कार्यकाल वाला ही है।

बहरहाल, इस सरकार का ढांचा पिछली दो सरकारों से बहुत अलग है। 2014 के बाद से पहली बार भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के अपने साझेदारों पर निर्भर है। अगर पहले 100 दिन को संकेत माना जाए तो उसे आगे चलकर साझेदारों के साथ और अधिक मशविरे और तालमेल के साथ काम करना होगा। यह लैटरल भर्ती के निर्णय को वापस लेने में भी नजर आया। गठबंधन के कई अहम साझेदारों ने इसमें आरक्षण के मुद्दे पर सवाल उठाए। इसके अलावा अब सरकार को अधिक मुखर और उत्साहित विपक्ष का सामना करना पड़ रहा है जो 2014 के बाद अपनी सबसे मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रहा है।

सरकारें और राजनीतिक प्रतिष्ठान जहां अक्सर घटनाओं से प्रभावित होते हैं और कई कारक बाहरी चुनौतियां भी सामने रखते हैं लेकिन पहले 100 दिन के प्रदर्शन को देखते हुए इस बात पर बहस हो सकती है कि आर्थिक निर्णय प्रक्रिया किस प्रकार आगे बढ़ेगी?

जैसा कि बजट ने दर्शाया, सरकार वृद्धि और मध्यम अवधि की क्षमताओं को गति देने के लिए बड़े सार्वजनिक व्यय पर ध्यान केंद्रित रख सकती है। सरकार ने राजकोषीय सुदृढ़ीकरण को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है और एक संशोधित ढांचे की बात भी की है जिसे और अधिक स्पष्ट किए जाने की आवश्यकता है।

यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार राजकोषीय समेकन और उच्च पूंजीगत व्यय के बीच संतुलन कैसे कायम करती है। व्यापक आर्थिक सुधारों की बात करें तो इसे बहुत अधिक कठिनाई नहीं होना चाहिए क्योंकि ये चुनौतियां चरणबद्ध हैं और समुचित मशविरे के बाद ही अंजाम दिए जाएंगे। सरकार पूंजीगत सब्सिडी और उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन को भी जारी रख सकती है ताकि देश का औद्योगिक आधार मजबूत किया जा सके।

बहरहाल, देश को विनिर्माण क्षेत्र की अहम ताकत और वैश्विक मूल्य श्रृंखला का महत्त्वपूर्ण भागीदार बनाने के लिए शायद केवल इतना ही पर्याप्त न हो। उत्पादन बढ़ाने और रोजगार तैयार करने के लिए ऐसा आवश्यक है। इस संदर्भ में जैसा कि बजट में घोषित किया गया, सरकार सीमा शुल्क ढांचे की व्यापक समीक्षा करेगी ताकि इसे सहज बनाया जा सके और कारोबारी सुगमता में सुधार किया जा सके।

हालांकि इस मोर्चे पर क्या हो रहा है इस बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है लेकिन यह उम्मीद की जा रही है कि समीक्षा इतनी महत्त्वाकांक्षी होगी कि दरों में उल्लेखनीय कमी की जा सके और भारतीय उत्पादकों को वैश्विक और क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखलाओं से जोड़ा जा सके।

कुल मिलाकर इतिहास दिखाता है कि देश में गठबंधन सरकारें आर्थिक सुधारों को लागू करने में सक्षम हैं, बशर्ते कि ऐसे उपाय सुविचारित ढंग से लागू किए जाएं। सरकार को ‘एक देश, एक चुनाव’ और समान नागरिक संहिता जैसे राजनीतिक विचारों को लागू करने में जरूर दिक्कत हो सकती है।

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