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बिना खर्च धान को कीटों से बचाने का देशी तरीका है कारगर

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चावल की किस्म बासमती अपनी खुशबू और स्वाद के लिए जानी जाती है. भारत में पिछली कई शताब्दियों से इसकी खेती की जा रही है. बासमती उत्पादन करने वाले राज्यों जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर इसकी खेती होती है. दुनिया में इसकी बढ़ती मांग के साथ बासमती चावल की अधिकतम उपज के साथ इसकी विशिष्ट खुशबू और स्वाद को रखना बहुत जरूरी है. अच्छी गुणवत्ता और उपज के लिए बासमती धान की खड़ी फसल में लगने वाले कीट और बीमारियों की रोकथाम के लिए सही तरीका अपनाया जाए, जिससे बासमती की गुणवत्ता भी बनी रहे और उपज भी कम न हो. इसके लिए एपीडा की संस्था बासमती डेवलपमेंट निर्यात फाउंडेशन मेरठ ने किसानों के लिए कुछ उपाय बताए हैं.

कीटों की रोकथाम के लिए देशी तकनीक अपनाएं

खरीफ सीजन के दौरान नमी अधिक रहने से धान की फसल में कई प्रकार के कीट लग जाते हैं. इस समय धान की फसल में पत्ती लपेटक, पत्ती फुदका तना छेदक कीट लगने की संभावना अधिक रहती है. अगर धान की रोपाई के 15 से 20 दिन बाद पाटा चला दिया जाए तो कीटों से छुटकारा पाया जा सकता है. पाटा एक लकड़ी होती है जिसे खेत में फसल के ऊपर फिराया जाता है, जिससे पत्तियां पानी में डूब जाती हैं और कीड़े पानी में गिरकर मर जाते हैं. इस तरह किसान बिना किसी कीटनाशक और दवा के सिर्फ इस देसी तकनीक से धान की फसल को प्रारंभिक अवस्था में कीट रोग से बचा सकते हैं.

  1. धान की फसल में पहली बार पाटा 15 से 20 दिन की फसल होने पर फिराना चाहिए. 
  2. अगर जरूर हो तो दोबारा 30-35 दिन की होने पर इस क्रिया को दोहराया जा सकता है.
  3. अगर खेत में पानी कम हो तो पाटा चलाने से अधिक लाभ मिलता है. 
  4. पाटा लगाने के लिए आप 10-15 फीट का बांस का उपयोग करना चााहिए.
  5. ऐसा करने से धान की जड़ों में थोड़ा झटका लगता है इससे धान की फसल में चिपके सुंडी जैसे कीट झड़कर पानी में गिर जाते हैं और मर जाते हैं.
  6. पाटा चलाते समय इस बात का ध्यान रखें कि पाटा सीधी और उलटी दोनों दिशाओं में चलाएं पहली बार सीधी तरफ तो दूसरी बार उलटी तरफ पाटा चलाना चाहिए.
  7. धान की फसल में पाटा चलाते समय खेत में पानी जरूर होना चाहिए.
  8. पत्ती लपेटक कीट से रोकथाम के उपाय

पत्ती लपेटक कीट लार्वा पौधों की 3-4 पत्तियों को मोड़कर अंदर से भोजन करता है. बड़े पौधों में यह पत्तियों को सिरे से नीचे की ओर मोड़कर रेशमी धागों से किनारों को जोड़ता है. इस प्रकार बनी नलियों में रहता है और क्लोरोफिल पर भोजन करता है, जिससे सफ़ेद झिल्लीदार मुड़ी हुई पत्तियां, जिन पर विशिष्ट सफ़ेद धारियां होती हैं, दिखती हैं. बादल छाए रहने और कम धूप निकलने से कीटों की संख्या बढ़ती है. यह कीट सभी धान उगाने वाले वातावरण में पाया जाता है. इस कीट की रोकथाम के लिए हल्का पाटा चलाना बासमती धान की रोपाई के 15 से 25 दिन के भीतर खेत में हल्का पाटा चलाना चाहिए और पानी भरकर रखना चाहिए. 

रस्सी घुमावना: इस कीट के प्रकोप दिखने पर कल्ले की अवस्था में फसल के ऊपर 2-3 बार रस्सी घुमावना फायदेमंद होता है. प्राकृतिक नियंत्रण में तेज बारिश होने पर यह कीट खुद ही समाप्त हो जाते हैं. इस कीट के नियंत्रण के लिए रसायनों की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि प्राकृतिक शत्रु जैसे मकड़ियां इनका नियंत्रण कर लेती हैं.

फुदका कीट से बचाव के उपाय

सितंबर माह के दूसरे सप्ताह में गर्म और आद्र परिस्थितियों में भूरा फुदका और सफेद फुदका कीट की संख्या तेजी से बढ़ जाती है और यह आर्थिक क्षति स्तर को पार कर जाता है. धान की फसल में नीचे में गुच्छों में बैठकर फसल को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं. इस हानिकारक कीट से धान की फसल को बचाने के लिए खेतों एवं आस-पास के क्षेत्रों को सदैव साफ रखें. 

  1. हॉपर/तेला कीट के प्राकृतिक शत्रु कीटों जैसे मकड़ियों को खेतों में छोड़ें.
  2. खेतों का लगातार भ्रमण करें, खेतों में लगातार पानी भरकर न रखें और नत्रजन का अधिक मात्रा में प्रयोग न करें.
  3. सोलर लाइट लगाकर लाइट ट्रैप बनाएं या पीले रंग की सीट पर ग्रीस लगाकर स्टिकी ट्रैप लगाए.
  4. खाली पीले रंग के बैगों पर ग्रीस लगाकर भी प्रयोग कर सकते हैं. 
  5. तेला का प्रकोप होने पर खेतों से पानी निकाल दें.
  6. नीम के बीज की गुठली का अर्क (रस) 5 प्रतिशत 10 लीटर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें.
  7. रासायनिक नियंत्रण: इस कीट प्रकोप आर्थिक स्तर से ज्यादा हो जाए तो तब रासायनिक नियंत्रण के लिए डाइनोटेफरान 20एसजी 300 ग्राम या पाइमट्रीजिन 50 प्रतिशत डब्लूजी 200 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.
  8. तना छेदक कीट से फसल को ऐसे बचाएं

तना छेदक यानी स्टेम बोरर कीट छोटे पीले-भूरे रंग के शरीर वाले, सफ़ेद से लेकर गंदे-क्रीम रंग के होते हैं. इसकी सुंडी फसल को नुकसान पहुंचाती है. इन्हें डार्क-हेडेड स्ट्राइप्ड बोरर के नाम से भी जाना जाता है. धान के खेत में इसके प्रकोप से पौधों के विकास बिंदुओं को नुकसान पहुंचाने से सबसे छोटी पत्तियां मुरझा जाती हैं और मर जाती हैं. इसके प्रकोप से धान के हवा बहने पर डंठल से आसानी से टूट जाते हैं. पौधे के तने के अंदर सुरंगें अन्य कीटों और बीमारियों को प्रवेश करने देती हैं, जिससे फसल का नुकसान बढ़ सकता है. धान के तने के छेदक, एशिया में धान का मुख्य कीट हैं. ये धान की फसल का 5-10 फीसदी तक नुकसान करते हैं अगर ज्यादा प्रकोप हो गया तो 80 फीसदी तक उपज का नुकसान पहुंचा देते हैं. इस कीट का आर्थिक क्षति स्तर 2 अंड समूह/वर्ग मीटर या 10 प्रतिशत मृत कल्ले या 1 कीट/वर्ग मीटर है. 

  1. ऊपरी भाग तोड़ना: पौध की गुच्छी के ऊपरी भाग को रोपाई के समय 2-3 इंच तक तोड़कर नष्ट कर दें. 
  2. लाइन में रोपाई: धान की रोपाई सदैव लाइनों में करें और 10 लाइनों के बाद एक लाइन अवश्य खाली रखें. 
  3. फेरोमॉन ट्रैप: निगरानी के लिए 2 और प्रबंधन के लिए 8 फेरोमॉन ट्रैप प्रति एकड़ की दर से लगाएं. 
  4. रासायनिक नियंत्रण: जरूरत के अनुसार कारटाप हाईड्रोक्लोराइड 4 जी (20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) का प्रयोग करें.

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