Home विविध सियासी समर में नहीं सुनाई दे रही गंगा-यमुना की स्वच्छता की गूंज

सियासी समर में नहीं सुनाई दे रही गंगा-यमुना की स्वच्छता की गूंज

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टिहरी गढ़वाल संसदीय सीट कई मायनों में महत्वपूर्ण है। इसकी पहचान जहां गंगा-यमुना के उद्गम स्थल के रूप में होती है, वहीं रूपीन, सुपीन, टोंस, कमल नदी, असी गंगा, इंद्रावती, बालगंगा व भिलंगना समेत तमाम छोटी नदियां भी यहीं से होकर बहती हैं। ये नदियां धार्मिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और आर्थिक समृद्धि का भी आधार हैं। पेयजल, सिंचाई व ऊर्जा उत्पादन के साथ पर्यटन व तीर्थाटन की धुरी भी ये नदियां हैं, जिससे प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप में हजारों लोगों का रोजगार जुड़ा है। बावजूद इसके सियासी समर में उतरे राजनीतिक दल व प्रत्याशी इन नदियों की स्वच्छता और संरक्षण के मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं। उत्तरकाशी के प्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट पर दैनिक जागरण की चौपाल में स्थानीय निवासियों ने गंगा-यमुना सहित अन्य सहायक नदियों के संरक्षण व स्वच्छता की स्थिति को लेकर खुलकर विचार रखे।

मणिकर्णिका घाट से होकर बह रही भागीरथी की लहरों के तटों से टकराने के बाद उत्पन्न हो रहे सुमधुर संगीत – के बीच शुरू चौपाल में उत्तरकाशी – होटल एसोसिएशन के अध्यक्ष शैलेंद्र – मट्टूड़ा बोले, ‘इस चुनाव में ज्वलंत – मुद्दे गायब हैं। कई स्थानों पर गंदे नाले – गंगा में गिर रहे हैं, जिससे इन पवित्र – नदियों का अस्तित्व खतरे में है। तीर्थाटन और पर्यटन की बेहतरी के लिए कोई बात नहीं कर रहा। अब यही देख लो, इतने वर्ष हो गए, लेकिन पर्यटन स्थल के रूप में दयारा बुग्याल का विकास नहीं हो पाया। पर्यटन को लेकर कोई स्पष्ट नीति है ही नहीं। गंगा स्वच्छता की बात को आगे बढ़ाते हुए उत्तरकाशी जिला व्यापार मंडल के अध्यक्ष सुभाष बडोनी बोले, ‘गंगा स्वच्छता का मुद्दा तो सबसे बड़ा है। यह हमारे धर्म, संस्कृति व रोजगार से जुड़ा है। गंगा के कारण समाज के सभी वर्गों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप में रोजगार मिलता है।

गंगा को लेकर केंद्र सरकार ने योजना भी बनाई, खासकर गंगा घाट अच्छे बन गए हैं। लेकिन, स्वच्छता पर काम करने की अभी भी जरूरत है। शहरी क्षेत्रों में स्वच्छता की जिम्मेदारी नगर निकाय की होती है, लेकिन उसने अपने मूल कार्य को पीछे कर केवल निर्माण व ठेकेदार को आगे कर दिया है।’ उत्तरकाशी की लदाड़ी निवासी गीता गैरोला भी चौपाल में शामिल हुईं और कहने लगीं, ‘देखो आज गाय और गंगा की सबसे अधिक दुर्दशा है। 
मणिकर्णिका घाट के सामने कोटी गांव की ओर से आने वाले बरसाती नदी की ओर इशारा करते हुए गीता कहती हैं ‘पूरे गांव का कूड़ा गदेरे में डाला जा रहा कि है, जो भागीरथी में समा जाता है। छोटी काशी में गंगा की दुर्दशा पर उन्होंने कई गीत-कविताएं रची हैं और उन्हें मंचों से भी सुनाया, ताकि लोग जागरूक हो सकें।’ गंगा – स्वच्छता की जवाबदेही पर व्यापारी अजय बडोला कहते हैं, ‘गंगा स्वच्छता की जिम्मेदारी सभी की है। गंदे नालों को टैप करने के साथ सख्त नियम भी बनाने होंगे। गंगा किनारे वाले गांवों को भी स्वरोजगार से जोड़ना होगा।’

 गंगा के किनारे अतिक्रमण को लेकर चिंतित जितेंद्र चौहान कहते हैं, ‘गंगा के किनारे निर्माण पर रोक के बावजूद अतिक्रमण व अवैध निर्माण की बाढ़ सी आई हुई है। ऐसे तो नदियों के घाट तक नहीं बचेंगे।’ चौपाल में चाय बांटते हुए कैंटीन संचालक अमरेश भट्ट बोले, ‘भाई साहब। मेरा गांव सिरोर है, मैंने सिविल इंजीनियरिंग से डिप्लोमा किया। सरकारी नौकरी तो मिली नहीं, सो कुछ माह पहले ही मर्णिकर्णिका घाट पर कैंटीन खोली है। सिरोर गांव के मध्य से आलवेदर रोड बननी है, जिससे गांव सड़क से जुड़ेगा और गांव में ही रोज़गार मिल सकेगा।   

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