पिछले कुछ सालों में दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में इसका असर सबसे ज़्यादा किसानों पर पड़ा है। मौसम के पैटर्न में बदलाव, बारिश की अनिश्चितता, अत्यधिक गर्मी और बाढ़ जैसी समस्याएं खेती के लिए ख़तरा बनती जा रही हैं। इससे फ़सलों की पैदावार में कमी आई है और किसानों की आय पर भी असर पड़ा है।इस बदलते पर्यावरण में अब पारंपरिक बीजों से खेती करना मुश्किल होता जा रहा है। ऐसे समय में जलवायु-अनुकूल बीज किसानों के लिए एक नई उम्मीद बनकर उभरे हैं।
क्या हैं जलवायु-अनुकूल बीज
जलवायु-अनुकूल बीज (Climate-friendly seeds) वे बीज होते हैं जिन्हें इस तरह से विकसित किया गया है कि वे गर्मी, सूखा, बाढ़, कीट और बीमारियों जैसी कठिन परिस्थितियों में भी अच्छी पैदावार दे सकें। ये बीज मौसम की अनिश्चितताओं को झेलने में सक्षम होते हैं और इससे किसानों को नुकसान का ख़तरा कम होता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने पिछले कुछ वर्षों में हजारों ऐसी बीज क़िस्में विकसित की हैं जो विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम हैं।
प्रधानमंत्री द्वारा 109 नई बीज क़िस्मों का अनावरण
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के पूसा परिसर में एक विशेष कार्यक्रम के दौरान 109 नई जलवायु-अनुकूल बीज (Climate-friendly seeds) क़िस्मों का उद्घाटन किया। ये बीज भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा विकसित किए गए हैं और इन्हें 61 विभिन्न फ़सलों में इस्तेमाल किया जाएगा। इनमें 34 खेत की फ़सलें और 27 बागवानी फ़सलें शामिल हैं।
इन क़िस्मों में शामिल हैं:
- अनाज: चावल, गेहूं, मक्का, बाजरा
- तिलहन: सरसों, सोयाबीन
- दलहन: अरहर, मूंग
- चारा फ़सलें, गन्ना, कपास
- फल और सब्जियां: आम, टमाटर, आलू, मिर्च
- मसाले और औषधीय पौधे
इन जलवायु-अनुकूल बीज (Climate-friendly seeds) का उद्देश्य सिर्फ़ फ़सल सुरक्षा नहीं है, बल्कि किसानों की आय को बढ़ाना भी है।
2014-2024 के दौरान बीज विकास की प्रमुख उपलब्धियां
पिछले दस वर्षों (2014-2024) में ICAR और विभिन्न राज्य/केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालयों के सहयोग से 2900 से अधिक बीज क़िस्में विकसित की गईं, जिनमें से अधिकतर जलवायु-अनुकूल हैं।
इनमें से:
1380 क़िस्में अनाज की हैं
- 412 तिलहन की,
- 437 दलहन की
- 376 फाइबर फ़सलों की
- 178 चारा फ़सलों की
- 88 गन्ने की
इनमें से 2661 क़िस्में जैविक या अजैविक तनावों के प्रति सहनशील हैं। इसका मतलब है कि ये बीज सूखा, गर्मी, बाढ़ या कीटों का असर झेल सकते हैं। बागवानी फ़सलों में भी पिछले 10 सालों में 819 नई क़िस्में विकसित की गईं, जिनमें 19 क़िस्में जलवायु-अनुकूल बीज हैं।
किसानों तक कैसे पहुंचेगा बीज?
सरकार ने इन जलवायु-अनुकूल बीज को किसानों तक पहुंचाने के लिए एक व्यापक योजना बनाई है:
- रबी 2024-25 से पर्याप्त मात्रा में बीज उत्पादन शुरू होगा।
- सभी बीज विकास केंद्रों को आदेश दिया गया है कि वे बीजों को राष्ट्रीय बीज निगम, राज्य बीज निगम, निजी कंपनियों, एफपीओ और अन्य एजेंसियों के साथ साझा करें।
- किसान भागीदारी बीज उत्पादन कार्यक्रम के तहत किसानों के खेतों पर भी बीज उत्पादन किया जाएगा ताकि बीजों की उपलब्धता बढ़ाई जा सके।
- प्रचार-प्रसार और जागरूकता
इन जलवायु-अनुकूल बीज के बारे में किसानों को जागरूक करने के लिए सरकार द्वारा दूरदर्शन, रेडियो, सोशल मीडिया, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का सहारा लिया जा रहा है।
- कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) पूरे देश में किसानों को नए बीजों का प्रदर्शन करके जानकारी दे रहे हैं।
- अनुसूचित जाति उपयोजना और उत्तर पूर्व हिमालय क्षेत्र कार्यक्रमों के अंतर्गत भी किसानों को मुफ्त या रियायती दरों पर बीज उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
- बीज ग्राम योजना और आत्मनिर्भर भारत
भारत सरकार “राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा एवं पोषण मिशन” के अंतर्गत बीज ग्राम योजना चला रही है। इसके तहत किसानों को जलवायु-अनुकूल, जैविक और उच्च उपज देने वाली क़िस्मों के बीज उपलब्ध कराए जा रहे हैं। इसमें:
- अनाज में बीज लागत का 50% सब्सिडी दी जा रही है।
- तिलहन, चारा और हरी खाद फ़सलों में प्रति किसान एक एकड़ के लिए 60% सब्सिडी मिल रही है।
इसके अलावा, 2024-25 से 2030-31 तक तिलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन को मंजूरी दी गई है, जिससे खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता हासिल की जा सके।
निष्कर्ष
आज जब जलवायु परिवर्तन खेती की सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है, ऐसे समय में जलवायु-अनुकूल बीज किसानों के लिए वरदान साबित हो सकते हैं। ये बीज न केवल मौसम की मार को झेलने में सक्षम हैं, बल्कि फ़सल उत्पादन को बढ़ाकर किसानों की आय भी दोगुनी करने की दिशा में एक मजबूत कदम हैं। सरकार, अनुसंधान संस्थान और किसानों के सहयोग से यह पहल भारतीय कृषि को एक नई दिशा देने में मदद करेगी।