Home खेती किसानी कृषि वार्ता *बीज जासूस…हमारे बीज • हमारी विरासत:भारत की स्वदेशी फ़सल क़िस्मों की सुरक्षा*

*बीज जासूस…हमारे बीज • हमारी विरासत:भारत की स्वदेशी फ़सल क़िस्मों की सुरक्षा*

0

एनए फिंगरप्रिंटिंग तकनीक भारतीय किसानों की पारंपरिक फ़सल क़िस्मों को चोरी और पेटेंट से बचाने में अहम भूमिका निभा रही है।

कल्पना कीजिए कि आपके पूर्वजों ने पीढ़ियों से संरक्षित एक विशेष चावल की क़िस्म उगाई है – बस यह देखने के लिए कि एक कंपनी इसे पेटेंट कराती है और आपको इसे उच्च कीमतों पर वापस बेचती है। यह कोई दूर का डर नहीं है; ऐसा पहले भी हो चुका है। आज, जब बीज चोरी भारतीय किसानों के लिए एक वास्तविक खतरा बन गई है, तो एक नए प्रकार का जासूस सामने आ रहा है: डीएनए फिंगरप्रिंटिंग यह शक्तिशाली उपकरण, हमारे पारंपरिक ज्ञान के साथ मिलकर, भारत की अनूठी फ़सल क़िस्मों को चोरी, पेटेंट या दुरुपयोग से बचाने में मदद कर रहा है।

भारतीय खेती के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए जैव प्रौद्योगिकी और पारंपरिक ज्ञान का मिश्रण

भारत की सबसे बड़ी ताकत इसके प्राचीन कृषि ज्ञान और आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों के मिलन में निहित है। जबकि डीएनए फिंगरप्रिंटिंग जैसी जैव प्रौद्योगिकी सटीकता और अंतरराष्ट्रीय मान्यता लाती है, बीज संरक्षण का मूल हमारे किसानों के पारंपरिक ज्ञान में गहराई से निहित है। केवल दोनों का सम्मान और संयोजन करके ही हम वास्तव में भारतीय कृषि के भविष्य की रक्षा कर सकते हैं। 

सदियों से, भारतीय किसान अपने आप में बीज वैज्ञानिक रहे हैं। वे समझते थे कि कौन सी फ़सलें सूखे से बच जाती हैं, कौन सी फ़सलें प्राकृतिक रूप से कीटों का प्रतिरोध करती हैं और कौन सी फ़सलें अलग-अलग मिट्टी में सबसे अच्छी उपज देती हैं। प्रयोगशालाओं या आधुनिक शोध तक पहुँच के बिना, उन्होंने अपने खेतों में एक जीवंत बीज बैंक बनाने के लिए पीढ़ियों से मिला हुआ अनुभव और ज्ञान का इस्तेमाल किया।

हालाँकि, वैश्वीकरण, व्यावसायीकरण और बदलते जलवायु पैटर्न के साथ, इन पारंपरिक क़िस्मों को नए खतरों का सामना करना पड़ रहा है। बीज जो कभी स्थानीय समुदायों के भीतर संरक्षित थे, अब पेटेंट, संशोधित या हमेशा के लिए खो जाने के जोखिम में हैं। यहाँ, जैव प्रौद्योगिकी – विशेष रूप से डीएनए फिंगरप्रिंटिंग जैसी तकनीकें – एक आवश्यक सहयोगी बन जाती हैं।

डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एक ऐसा तरीका है जो वैज्ञानिक तरीके से यह साबित कर सकता है कि कोई पारंपरिक बीज क़िस्म ख़ास और अनोखी है। यह किसानों के लिए एक मजबूत ढाल की तरह काम करता है। अगर कोई कंपनी देशी बीजों का गलत तरीके से इस्तेमाल करने या उसे अपने नाम से पेटेंट कराने की कोशिश करे, तो डीएनए फिंगरप्रिंटिंग कानूनी सबूत पेश कर सकती है।

जब बीजों का इतिहास, उनसे जुड़ी कहानियां और पारंपरिक खेती के तरीके भी साथ में दस्तावेज़ किए जाते हैं, तो यह एक मजबूत दोहरी सुरक्षा तैयार करता है:

  • एक वैज्ञानिक सुरक्षा (जैव तकनीक के ज़रिए)
  • एक सांस्कृतिक सुरक्षा (पारंपरिक ज्ञान के ज़रिए)

यह तरीका भारतीय किसानों की पीढ़ियों से चली आ रही मेहनत और समझदारी का भी सम्मान करता है। जैव प्रौद्योगिकी, किसानों के ज्ञान को बदलने की बजाय उसे और मज़बूत बनाने का काम करती है, ताकि दुनिया भर में हमारे देशी बीजों की पहचान और कद्र हो सके।

हो सकता है कि किसी छोटे से आदिवासी गांव में बचाई गई बाजरे की एक क़िस्म दुनिया को मामूली लगे, लेकिन जब उसका डीएनए परीक्षण और पंजीकरण हो जाता है, तो उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान और कानूनी सुरक्षा मिलती है।

 भारत की देसी फ़सलों के लिए खतरा

भारत दुनिया के सबसे पुराने और समृद्ध कृषि केंद्रों में से एक है। हमारे किसानों ने सदियों से हजारों देशी बीजों को बचाकर रखा है — खुशबूदार बासमती चावल, रंग-बिरंगे बाजरा, अनोखे आम और पुराने समय की दालें। 

लेकिन अब वैश्वीकरण और बड़े व्यापार के कारण बीज चोरी का खतरा बढ़ गया है — जब कंपनियां या लोग उन किसानों का नाम लिए बिना देशी बीज चुराने या पेटेंट कराने की कोशिश करते हैं जिन्होंने इन्हें संभाला है।

इस चोरी से न सिर्फ किसानों को  आर्थिक नुकसान होता है, बल्कि भारतीय खेती की ताकत — हमारी जैव विविधता — भी खतरे में पड़ जाती है।

बीजों के लिए डीएनए फिंगरप्रिंटिंग क्या है?

जैसे पुलिस किसी व्यक्ति की पहचान के लिए फिंगरप्रिंट देखती है, वैसे ही वैज्ञानिक अब पौधों की पहचान के लिए डीएनए फिंगरप्रिंटिंग का इस्तेमाल करते हैं।

यह कैसे होता है : 

  • हर पौधे का एक अलग डीएनए कोड होता है — जैसे उसकी ख़ास पहचान।
  • वैज्ञानिक पौधे से छोटा सा नमूना लेते हैं — जैसे पत्ती या बीज।
  • फिर वे उस डीएनए की जांच कर एक जेनेटिक सिग्नेचर बनाते हैं।
  • यह सिग्नेचर साफ-साफ साबित कर देता है कि वह पौधा कौन-सा है।

अगर कोई कंपनी देशी बीज पर झूठा मालिकाना दावा करती है, तो डीएनए फिंगरप्रिंटिंग से उनके दावे को गलत साबित किया जा सकता है।

भारत में, नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद जैसे संगठन इस तकनीक का इस्तेमाल देशी बीजों की रक्षा के लिए कर रहे हैं।

पारंपरिक ज्ञान की बड़ी भूमिका

डीएनए फिंगरप्रिंटिंग भले ही एक आधुनिक तकनीक हो, लेकिन बीजों के असली रक्षक हमारे किसान ही हैं।

किसान अच्छी तरह जानते हैं:

  • कौन से बीज अलग-अलग मिट्टी और मौसम में अच्छे उगते हैं।
  • कौन से बीज कीटों या सूखे के खिलाफ टिकाऊ हैं।
  • बीजों से जुड़ी परंपराएँ, कहानियां और उनके ख़ास उपयोग। 

यह गहरा पारंपरिक ज्ञान बहुत कीमती है — और कई बार किसी लैब के डेटा से भी ज्यादा मजबूत होता है। इसी को समझते हुए भारत सरकार ने कुछ ख़ास कानून बनाए हैं:

  • जैव विविधता अधिनियम (2002)
  • पौध क़िस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम (पीपीवी एंड एफआर अधिनियम, 2001)

ये कानून किसानों के पारंपरिक बीजों और ज्ञान को उनका अधिकार देते हैं। अगर कोई कंपनी उनके ज्ञान से फ़ायदा कमाती है, तो किसान भी उसका हिस्सा बन सकते हैं।

सफलता की कहानियां: बीज चोरी के खिलाफ जीत

  • बासमती चावल: 1990 के दशक के आखिर में एक अमेरिकी कंपनी ने बासमती चावल को पेटेंट कराने की कोशिश की। भारतीय वैज्ञानिकों ने डीएनए फिंगरप्रिंटिंग से साबित किया कि बासमती एक पारंपरिक भारतीय क़िस्म है। आखिरकार पेटेंट रद्द हुआ।
  • हल्दी और नीम: विदेशी कंपनियों ने हल्दी और नीम के औषधीय गुणों पर पेटेंट कराने की कोशिश की थी। लेकिन भारत ने पारंपरिक ज्ञान और वैज्ञानिक सबूत पेश कर पेटेंट रद्द करवा दिए।
  • आंध्र प्रदेश की मिर्च: गुंटूर जिले के किसानों ने अपनी ख़ास तीखी मिर्च को बचाने के लिए संघर्ष किया। उनके दस्तावेज और खेती की परंपरा के आधार पर गुंटूर मिर्च को भौगोलिक संकेत (GI) टैग मिला और कानूनी सुरक्षा भी।
  • दार्जिलिंग चाय: असली दार्जिलिंग चाय को बचाने के लिए डीएनए फिंगरप्रिंटिंग और दस्तावेजों का सहारा लिया गया। नतीजा यह रहा कि 2004 में दार्जिलिंग चाय भारत का पहला जीआई टैग पाने वाला उत्पाद बना।
  • मध्य प्रदेश का चंदेरी कपड़ा: कुछ व्यापारियों ने सिंथेटिक कपड़ों को चंदेरी कपास के नाम से बेचने की कोशिश की। लेकिन पारंपरिक बुनाई के दस्तावेज और वैज्ञानिक जांच के बाद असली चंदेरी कपास को जीआई टैग मिला, जिससे बुनकरों की पहचान और रोजगार सुरक्षित रहे। 
  • किसानों के सामने अभी भी चुनौतियां

इन प्रगतियों के बावजूद, कई चुनौतियां बनी हुई हैं: 

  • लागत: डीएनए फिंगरप्रिंटिंग परीक्षण अभी भी व्यक्तिगत किसानों के लिए महंगे हैं।
  • जागरूकता: कई किसान भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत अपने अधिकारों के बारे में नहीं जानते हैं।
  • कानूनी खामियां: वैश्विक व्यापार समझौते कभी-कभी कंपनियों को सुरक्षा के इर्द-गिर्द रास्ता खोजने की अनुमति देते हैं।
  • बुनियादी ढाँचे तक पहुँच: ग्रामीण क्षेत्रों में प्रयोगशालाओं या बीज बैंकों की कमी हो सकती है जहाँ किसान अपनी क़िस्मों को आसानी से पंजीकृत कर सकें।
  • समाधान: बीज संरक्षण के लिए मिलकर काम करना

यहाँ बताया गया है कि भारत कैसे आगे बढ़ रहा है:

  • स्थानीय बीज बैंक: कई राज्य अब सामुदायिक बीज बैंकों का समर्थन करते हैं जहाँ किसान अपने बीजों को संग्रहीत और पंजीकृत कर सकते हैं।
  • लोगों की जैव विविधता रजिस्टर: ये दस्तावेज़ किसानों को उनके स्थानीय पौधों और बीजों के बारे में जानकारी दर्ज करते हैं।
  • प्रशिक्षण और जागरूकता शिविर: किसानों को उनके अधिकारों और देशी बीजों की सुरक्षा के महत्व के बारे में शिक्षित करना।
  • सस्ती डीएनए सेवाएँ: नए स्टार्टअप और सरकारी कार्यक्रम डीएनए फिंगरप्रिंटिंग को सस्ता और अधिक सुलभ बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
  • किसान क्या कर सकते हैं?
  • देशी बीजों को सहेजकर रखें और उनके बारे में ज़रूरी जानकारी लिखकर रखें — जैसे कहां से मिले, कैसे उगते हैं, क्या ख़ासियत है।
  • स्थानीय बीज बैंक या जैव विविधता समितियों से जुड़ें, और अगर आपके गांव में ऐसा कुछ नहीं है, तो दूसरों के साथ मिलकर शुरुआत करें।
  • सरकार बीजों की रक्षा के लिए समय-समय पर योजनाएं लाती है — उनकी जानकारी रखें और फ़ायदा उठाएं।
  • अगर आपके पास कोई ख़ास या पुरानी बीज क़िस्म है, तो उसका डीएनए फिंगरप्रिंट करवा कर पीपीवी एंड एफआर अधिनियम के तहत पंजीकरण करवा सकते हैं।
  • कोई भी दुर्लभ बीज बिना ठीक से सोचे-समझे या कानूनी समझौते के कभी किसी के साथ न बाँटें। 

भारत के देशी बीज केवल फ़सलें नहीं हैं — वे हमारी परंपरा, पहचान और भविष्य की पूंजी हैं।

जब हम नई वैज्ञानिक तकनीकों जैसे डीएनए फिंगरप्रिंटिंग  को अपने पारंपरिक ज्ञान के साथ जोड़ते हैं, तो हम अपने बीजों को चोरी से भी बचा सकते हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित भी रख सकते हैं।

जब किसान, वैज्ञानिक और समाज मिलकर काम करते हैं, तो यह तय हो जाता है — 

हम अपनी खेती की विरासत को बचा सकते हैं। 

हमारे बीज • हमारी विरासत • हमारी सुरक्षा का अधिकार 

NO COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version