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फलों का राजा आम के किस्से तमाम’

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जयराम शुक्ला

जैसे ही गर्मी शुरू होती है जेहन में एक फल का नाम सबसे ज़्यादा आता है और वो है फलों का राजा आम।

पोषण का धनी यह जब फल बाज़ार में आता है तो अपनी तमाम क़िस्मों और स्वादों से जी को ललचाने लगता है।

इसका शाही पीलापन बाकी सभी फलों को फीका कर देता है। आम अपनी बेहतरीन मिठास के साथ स्वादिष्ट, गूदेदार और रसदार फल है।

विडंबना ही है कि भारत और पूरी दुनिया में फलों के राजा के नाम से जाना जाने वाले इस फल ‘आम’ का देसी भाषा में मतलब भी होता है सामान्य।

अंग्रेज़ी भाषा का मैंगो तमिल शब्द मंगाई से आया है। असल में पुर्तगालियों ने तमिल से लेकर इसे मंगा के रूप में स्वीकार किया, जहां से अंग्रेज़ी का शब्द मैंगो आया।

भारत ऐसी लोककथाओं का धनी देश है, जिनमें अक्सर सांस्कृतिक रिवाज़ और धार्मिक रस्में गुथीं होती हैं।

आम और आम के पेड़ के मिथक से जुड़ी कई सारी कहानियां हैं। इनमें से हम कुछ को यहां दे रहे हैं-

भारतीय महाकाव्यों रामायण और महाभारत में आम के ज़िक्र आते हैं।

आम के पेड़ का कई जगह कल्पवृक्ष, हर इच्छा पूरी करने वाले के रूप में वर्णन मिलता है।

इस पेड़ की छाया के अलावा इससे कई धार्मिक मान्यताएं भी जुड़ी हुई हैं जैसे, राधा कृष्ण का पौराणिक नृत्य, शिव और पार्वती का विवाह आदि।

गौतम बुद्ध का सबसे पसंदीदा जगह आम का बगीचा था. बौद्ध कलाकृतियों में इसकी भरमार है।

एक शताब्दी ईसा पूर्व के सांची स्तूप के द्वार पर एक कलाकृति है जिसमें एक यक्षी फलों से लदी एक डाल से लिपटी हुई है।

टैगोर को भी आम बेहद पसंद थे और उन्होंने आम के बौर पर एक कविता लिखी है- आमेर मंजरी।

ओ मंजरी, ओ मंजरी, आमेर मंजरी

क्या तुम्हारा दिल उदास है

तुम्हारी खुशबू में मिल कर मेरे गीत सभी दिशाओं में फैलते हैं

और लौट आते हैं

तुम्हारी डालों पर चांदनी की चादर

तुम्हारी खुशबू को अपनी रोशनी में समेटती है

खुशबू से मदमत्त करने वाली दखिनी हवा

हर दरवाज़े के अंदर तक जाती है

और भाव विभोर कर जाती है

महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब के एक दोस्त और साथी शायर आम के प्रति उनके झुकाव के बारे में नहीं जानते थे।

उन्होंने देखा कि एक गधा आम के ढेर तक गया और सूंघ कर वापस लौट आया।

दोस्त ने कहा, “देखा, गधे भी आम नहीं खाते।”

ग़ालिब का जवाब था, “बिल्कुल, केवल गधे ही आम नहीं खाते।”

सूफ़ी कवि अमिर ख़ुसरो ने फ़ारसी काव्य में आम की खूब तारीफ़ की थी और इसे फ़क्र-ए-गुलशन नाम दिया था।

हालांकि, ऐसा जान पड़ता है कि 632 से 645 ईस्वी में भारत की यात्रा पर आए ह्वेनसांग पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने भारत के बाहर के लोगों से आम का परिचय कराया था।

यही नहीं, आम सभी मुग़ल बादशाहों का पसंदीदा था. इसकी फसल को विकसित करने में उन्होंने कोशिशें की थीं और भारत की अधिकांश विकसित क़िस्मों के लिए उन्हीं को श्रेय जाता रहा है।

 अकबर  (1556-1605 ईस्वी) ने बिहार के दरभंगा में एक लाख आम के पेड़ों का बग़ीचा लगवाया था।

आईने-अकबरी (1509 ईस्वी) में भी आम की क़िस्मों और उनकी ख़ासियतों के बारे में काफ़ी तफ़सील है।

यहां तक कि बहादुर शाह ज़फ़र के पास भी लाल क़िले में आम का बग़ीचा था, जिसका नाम था हयात बख़्श, जिसमें कुछ मशहूर आम उगाए जाते थे।

प्राचीन संस्कृति साहित्य में आम के पेड़ के प्रति लगाव दिखता है।

सूर्य की बेटी सूर्या एक बुरी आत्मा के अत्याचार से बचने के लिए स्वर्णिम कमल में बदल जाती है। लेकिन जब उस देश के राजा को उस कमल से प्यार हो जाता है तो इस बात से बुरी आत्मा क्रोधित हो जाती है और वो उस फूल को जला डालती है।

अच्छाई पर बुराई की तब जीत होती है जब फूल की राख से एक विशाल आम का पेड़ निकल आता है और पेड़ से गिरे एक पके आम से सूर्या बाई निकल आती है। राजा उसे देखते ही पहचान जाता है और दोनों का मिलन हो जाता है।

संस्कृत साहित्य में आम की शुरुआती पैदाइश का कुछ यूं ज़िक्र आता है और इसे अलौकिक प्रेम का प्रतीक बताया गया है-

गणेश और भगवान शिव से जुड़ा एक और दिलचस्प वाक़या है. शिव और पार्वती को नारद ने एक स्वर्णिम फल दिया था और कहा था कि इसे केवल एक व्यक्ति ही खाए. अब दोनों बेटों में किसे यह फल दिया जाए, इसे लेकर शिव और पार्वती शर्त रखते हैं कि जो सबसे पहले पूरे ब्रह्मांड के तीन चक्कर लगाकर आएगा उसे ये फल दिया जाएगा।

स्मार्ट गणेश ने अपने मां बाप के तीन चक्कर लगाए और ये कहते हुए अपने भाई कार्तिक से पहले पहुंच गए कि, “मेरे लिए मेरे मां बाप ही ब्रह्मांड हैं।”

एक और कहानी है, हनुमान से जुड़ी हुई, जो रावण के बग़ीचे से गुठली ले आए थे।

कहा जाता है कि बिहार के भागलपुर ज़िले के धरहरा गांव में 200 सालों से एक परम्परा चली आ रही है, जिसके अनुसार, लड़की पैदा होने पर उस परिवार को 10 आम के पेड़ लगाने होते हैं।

यह विचार बच्ची की सुरक्षा और उसके भविष्य की चिंताओं को कम करती है।

(विन्ध्यक्षेत्र में आम के वृक्ष का विधिवत व्रतबंध व विवाह होता था, अब भी यदाकदा होता है। आम का वृक्ष रोपनेवाला व्रतबंध के पश्चात ही उसके फल खाने का अधिकारी बनता है। आम के बगीचे में वृक्षों के विवाह भी हुआ करते थे तथा स्मृति स्वरूप लाट(कीर्तिस्तंभ) गाड़ी जाती थी।

इसलिए भारत में आम प्रेम का प्रतीक हो बन गया है।

शादियों में आम के पत्ते लटकाए जाते हैं. इस रस्म से माना जाता है कि जोड़े को अधिक बच्चे होंगे।

गांवों में यह तगड़ी मान्यता है कि जब जब आम की डाली में नए पत्ते आते हैं, तब तब लड़का पैदा होता है।

पड़ोसियों को जन्म की सूचना देने के लिए दरवाज़ों को आम के पत्तों से सजाया जाता है।

भारतीय डिज़ाइनों में कैरी और आम्बी नमूने आम से ही प्रेरित हैं।

आम्बी नमूना स्थापत्य कला, वस्त्र, आभूषण और बहुत सारी चीजों में इस्तेमाल किया जाता है।

माना जाता है कि पूरी दुनिया में आमों की 1500 से ज़्यादा क़िस्में हैं, जिनमें 1000 क़िस्में भारत में उगाई जाती हैं।

भारत में उगाई जाने वाली कुछ लोकप्रिय क़िस्में हैं जैसे, हापुस (जिसे अल्फ़ांसो के नाम से भी जाना जाता है), मालदा, राजापुरी, पैरी, सफेदा, फ़ज़ली, सुंदरजा, दशहरी, तोतापरी और लंगड़ा आदि..

दिल्ली में जुलाई के महीने में अंतरराष्ट्रीय मैंगो फ़ैस्टिवल का आयोजन किया जाता है।

इस फ़ेस्टिवल में 500 से अधिक क़िस्मों की नुमाईश होती है।

इसलिए, आप खुद कल्पना कर सकते हैं सबसे स्वादिस्ट और लजीज़ फल के बारे में।

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बीबीसी हिंदी डाटकाम से साभार 

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