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वैश्विक व्यापार और आशावाद

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संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास सम्मेलन (अंकटाड) की वैश्विक व्यापार रिपोर्ट का मार्च संस्करण पिछले सप्ताह जारी किया गया। उसमें अनुमान जताया गया कि वर्ष 2023 में जहां वैश्विक व्यापार में एक लाख करोड़ डॉलर की कमी आई , वहीं यह भी कहा गया कि 2024 में यह रुझान बदल जाएगा।

अंकटाड ने इस दावे का समर्थन करते हुए कहा कि चालू कैलेंडर वर्ष की पहली तिमाही में वस्तु एवं सेवा व्यापार में मामूली बढ़ोतरी देखने को मिली है। इस वृद्धि के कारकों में वैश्विक मुद्रास्फीति में कमी और वैश्विक वृद्धि की मजबूती शामिल हैं।

भारत के लिए यह अच्छी खबर है। घरेलू वृद्धि में व्यापार की हिस्सेदारी बढ़ाने की आवश्यकता है। कई निर्यात आधारित क्षेत्र बाहरी वृद्धि के रुझानों को लेकर खासे संवेदनशील हैं और आने वाले दिनों में बेहतर ऑर्डर बुक देखने को मिल सकती हैं।

गोल्डमैन सैक्स के एक हालिया विश्लेषण में कहा गया कि भारत से संचालित सूचना प्रौद्योगिकी और सूचना प्रौद्योगिकी समर्थित सेवा कंपनियों के राजस्व में वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान 9 से 10 फीसदी की वृद्धि देखने को मिल सकती है। ऐसा दबी हुई मांग और जेनरेटिव आर्टिफिशल इंटेलिजेंस जैसे तकनीकी नवाचारों की बदौलत हो सकता है।

वैश्विक व्यापार के समक्ष मौजूदा व्यापक जोखिमों को भी कम करके नहीं आंका जाना चाहिए। अंकटाड कई जोखिमों को चिह्नित करता है, उनमें से कुछ पर भारतीय नीति निर्माताओं को सावधानीपूर्वक नजर रखनी चाहिए। 2024 के दौरान कुछ समय तक नौवहन मार्गों के बाधित बने रहने की आशंका है।

यमन में स्थित हूती विद्रोहियों द्वारा पोतों पर हुए हमलों में ज्यादा जानें भले नहीं गईं लेकिन उन्होंने लाल सागर से गुजरने वाले मार्ग का जोखिम और बीमा राशि दोनों में इजाफा कर दिया है जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र से भूमध्यसागर की ओर होने वाले समुद्री व्यापार को प्रभावित कर रहा है। अंकटाड ने जिंस कीमतों में अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव को भी एक संभावित समस्या के रूप में पेश किया।

दो वर्ष पहले रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण ने ईंधन बाजार में उथलपुथल मचा दी थी। इसने कई जिंसों की आपूर्ति श्रृंखला के लिए भी दिक्कत पैदा कर दी थी जिसमें कृषि जिंस शामिल थीं। युद्ध कच्चे माल की लागत और व्यापार को प्रभावित कर रहा है और इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती है।

निश्चित तौर पर गत सप्ताह यह खबर भी थी कि अमेरिका ने रूसी तेल पहुंचाने वालों पर नए सिरे से प्रतिबंध लगाए हैं। इस बात ने भी भारतीय रिफाइनरी तक तेल की आपूर्ति में देरी की। इस तथा अन्य संघर्षों ने व्यापार नेटवर्क को प्रभावित किया है और इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती है।

आखिर में अंकटाड ने भू-आर्थिकी को लेकर भी कुछ चिंताएं जताई हैं जो मोटे तौर पर आपस में जुड़ी हुई हैं। वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में चीन के दबदबे की चिंताओं के वशीभूत कंपनियां और सरकारें दोनों अलग-अलग स्तर पर कदम उठा रही हैं।

रिपोर्ट बताती है कि आपूर्ति श्रृंखलाएं लंबी हो रही हैं। एक ओर यह बात उन्हें गैर किफायती बना रही है और लागत बढ़ा रही है तो वहीं दूसरी ओर इससे भारत समेत कुछ देशों के लिए यह अवसर भी उत्पन्न हुआ है कि वे मूल्य श्रृंखला में अधिक प्रभावशाली बन सकें।

निश्चित तौर पर भारत सरकार के सेमीकंडक्टर, मोबाइल फोन और इलेक्ट्रिक वाहनों से जुड़े कदमों के पीछे यही वजह है। परंतु अहम खनिजों पर व्यापार प्रतिबंधों जैसे संबद्ध विषयों से भी निपटना होगा।

आखिर में कई देशों में घरेलू सब्सिडी सही मायनों में एकदम गंभीर स्थिति निर्मित कर रही है। इन हालात में भारत प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएगा। ऐसे में यह अहम है कि हम अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसी अर्थव्यवस्थाओं के साथ करीबी आर्थिक एकीकरण स्थापित करें ताकि इनके असर को कम किया जा सके।

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