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जलवायु परिवर्तन से असंगठित क्षेत्र को जोखिम

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 भारत हर रोज कोई न कोई मौसम की अति देख रहा है, जिसके कारण हम विकास के अवसर गंवा रहे हैं।हरित ऊर्जा पर धन लगाने में निजी क्षेत्र अभी बहुत पीछे है। नारायण ने कहा, ‘बदलाव की जरूरत के हिसाब से इसमें पूंजी की लागत बहुत ज्यादा है। आप अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं को व्यावाहिक नहीं बना सकते हैं। सस्ता और छूट पर वित्तपोषण इसमें अहम है।’ उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र द्वारा धन लगाने की स्थिति खराब है, मुझे नहीं लगता कि जिस पैमाने पर बदलाव की जरूरत है, इस क्षेत्र में निजी क्षेत्र से धन आ पाएगा।

जलवायु परिवर्तन से भारत का विशाल अनौपचारिक क्षेत्र बेहद जोखिम में है। इसमें कृषि, निर्माण, और सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यम (एमएसएमई) शामिल हैं, जहां करीब 48 करोड़ कामगार काम करते हैं। गुरुवार को नई दिल्ली में आयोजित बिज़नेस स्टैंडर्ड के कार्यक्रम बीएस मंथन में विशेषज्ञों के एक पैनल ने यह बात कही।

जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश के तौर-तरीके में बदलाव, मौसम की चरम घटनाएं, बढ़ता तापमान अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की आजीविका के लिए बड़ी चुनौतियां पैदा कर रहा है। डब्ल्यूआरआई इंडिया में कार्यकारी निदेशक, जलवायु, उल्का केलकर ने कहा, ‘असंगठित क्षेत्रों, कृषि, निर्माण और एमएसएमई में काम कर रहे लोगों पर जलवायु के जोखिम का सबसे अधिक खतरा है।’

विशेषज्ञों ने जीवाश्म ईंधन , स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु पर बातचीत में भारत के रुख पर चर्चा की, जिसमें आरईसी लिमिटेड के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक विवेक देवांगन, सेंटर फॉर साइंस ऐंड एनवायरमेंट की महानिदेशक सुनीता नारायण, डब्ल्यूआरआई इंडिया में कार्यकारी निदेशक उल्का केलकर, लार्सन ऐंड टुब्रो में वरिष्ठ उपाध्यक्ष और हरित ऊर्जा कारोबार के प्रमुख डेरेक एम शाह शामिल थे।

पैनल ने इस बात पर जोर दिया कि भारत हर रोज कोई न कोई मौसम की अति देख रहा है, जिसके कारण हम विकास के अवसर गंवा रहे हैं। केलकर ने यह भी कहा कि जलवायु परिवर्तन से ऊर्जा के नए बुनियादी ढांचे को भी खतरा हो सकता है।

सुनीता नारायण ने कहा कि भारत एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है और यह जरूरी है कि तेज आर्थिक वृद्धि के साथ पर्यावरण संबंधी मसलों के जोखिम का भी समाधान किया जाए। अक्षय ऊर्जा क्षेत्र के लिए धन जुटाने पर चर्चा करते हुए पैनल ने कहा कि भारतीय उद्योग इसकी जरूरत को संज्ञान में ले रहा है, लेकिन धन लगाना अभी भी चिंता का विषय है।

साल 2047 तक 30 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की भारत की आकांक्षा पर बात करते हुए केलकर ने कहा कि कोई भी देश ऊर्जा के क्षेत्र में कमजोर बने रहकर अमीर नहीं बना है। उन्होंने कहा कि इस समय हमारे सामने कुछ अहम समस्याएं हैं।

जलवायु परिवर्तन से निपटने के भारत के लक्ष्य को सिर्फ कार्बन के हिसाब से नहीं देखा जा सकता है। केलकर ने कहा, ‘जलवायु परिवर्तन के जोखिम बढ़ना शुरू होने के साथ ही नीति निर्माण को इसके अनुकूल और विकेंद्रीकृत किया जाना चाहिए। यहां तक कि जलवायु परिवर्तन के कारण ऊर्जा संबंधी बुनियादी ढांचा या परिवहन संबंधी बुनियादी ढांचा भी जोखिम में पड़ जाएगा।’

हर साल हरित ऊर्जा से पैदा होने वाली नई नौकरियां श्रम बाजार में आ रहे युवा लोगों की संख्या के बराबर नहीं होंगी। केलकर ने कहा, ‘नौकरियों के बाजार में जो नया कार्यबल हर साल जुड़ रहा है, वह सृजित की जा रही नौकरियों से बहुत अधिक है। यह समस्या बनेगी।’उन्होंने कहा, ‘जीवाश्म ईंधन कम किए जाने के साथ कर राजस्व में भी कमी आएगी। अगर हम हरित ऊर्जा से राजस्व के सृजन के नए तरीके नहीं निकाल लेते हैं तो 2047 तक 1.5 लाख करोड़ डॉलर का नुकसान होगा।’

आरईसी लिमिटेड के देवांगनन ने कहा कि भारत बिजली का तीसरा बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है और इसकी जरूरतों के लिए अक्षय ऊर्जा पर्याप्त नहीं है। देश में बड़े पैमाने पर भंडारण क्षमता की जरूरत है।

अक्षय ऊर्जा क्षेत्र के लिए धन जुटाने के मसले पर नारायण ने कहा, ‘भारतीय उद्योग बदलाव की जरूरत और इस दिशा में कदम उठाने को लेकर ज्यादा जागरूक हो रहा है। यह उनके लिए भी अच्छा है और पर्यावरण के लिए भी। लोहा, सीमेंट और स्टील जैसे क्षेत्रों में इसे बढ़ाने की जरूरत है। तमाम उद्योग हैं, जो अपना कार्बन फुटप्रिंट कम कर सकते है।’

बहरहाल उन्होंने कहा कि हरित ऊर्जा पर धन लगाने में निजी क्षेत्र अभी बहुत पीछे है। नारायण ने कहा, ‘बदलाव की जरूरत के हिसाब से इसमें पूंजी की लागत बहुत ज्यादा है। आप अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं को व्यावाहिक नहीं बना सकते हैं। सस्ता और छूट पर वित्तपोषण इसमें अहम है।’ उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र द्वारा धन लगाने की स्थिति खराब है, मुझे नहीं लगता कि जिस पैमाने पर बदलाव की जरूरत है, इस क्षेत्र में निजी क्षेत्र से धन आ पाएगा।

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