Home कारोबार किसानों में तरल यूरिया के इस्तेमाल को लेकर खास रुझान नहीं

किसानों में तरल यूरिया के इस्तेमाल को लेकर खास रुझान नहीं

0

किसानों की Agriculture input Cost को बढ़ाने में Fertiliser and Pesticides का बड़ा योगदान होता है. उर्वरक के रूप में यूरिया और डीएपी की सबसे ज्यादा मांग रहती है. इस कारण देश के तमाम इलाकों में अक्सर यूरिया और डीएपी की किल्लत से किसानों को दो चार होना पड़ता है. इसमें यूरिया की मांग जरूरत से ज्यादा होने के कारण सरकार ने Liquid Fertiliser के रूप में किसानों के बीच नैनो यूरिया को विकल्प के तौर पर पेश किया है. बीते दो सालों में इसके इस्तेमाल को लेकर किसानों का नकारात्मक रुझान देखने को मिला है. नैनो यूरिया और डीएपी के इस्तेमाल से किसानों को कोई लाभ नहीं मिलने की श‍िकायतों के कारण सरकार ने अब पहले से ज्यादा बेहतर गुणवत्ता वाला नैनो यूरिया बाजार में पेश करने की हरी झंडी दे दी है.

क्या है तरल खाद

किसानों की सहूलियत को ध्यान में रखते हुए सरकार ने तरल यूरिया का विकल्प किसानों को मुहैया कराया था. इसके तहत Cooperative Institution के रूप में कार्यरत देश की अग्रणी कंपनी IFFCO की ओर से देसी तकनीक से बने नैनो यूरिया और नैनो डीएपी बाजार में पेश किया गया. इस प्रोडक्ट की खूबियां बताते हुए किसानों को इसे इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित भी किया जा रहा है.

सरकार किसानों को लगातार यह बता रही है कि न केवल Nano Urea और Nano DAP का इस्तेमाल करना आसान है, बल्कि कीमत के लिहाज से भी यह बोरी वाले यूरिया डीएपी से सस्ता है. किसानों के लिए इसका इस्तेमाल करने की लागत भी कम है. सरकार की दलील है कि मौजूदा व्यवस्था में किसान को यूरिया और डीएपी की बोरियों को ट्रैक्टर से ढुलाई करके खेत तक लाना पड़ता है. वहीं, नैनो उर्वरक महज आधा लीटर की बोतल में आता है. यह एक बोरी के बराबर ही जमीन के रकबे में Sprayer Machine से छिड़का जा सकता है. इसलिए इसका  इस्तेमाल ठोस उर्वरक की तुलना में आसान और सस्ता है.

गौरतलब है कि आधा लीटर मात्रा वाली नैनो यूरिया की एक बोतल की कीमत 225 रुपये और इतनी ही मात्रा वाली नैनो डीएपी की बोतल 600 रुपये की है. वहीं, किसानों को यूरिया की 50 किग्रा मात्रा वाली एक बोरी 226 रुपये की और इतनी ही मात्रा की डीएपी की बोरी 1350 रुपये की खरीदनी पड़ती है. ठोस यूरिया और डीएपी की इस कीमत में Fertiliser Subsidy भी शामिल हैं.

सरकार की दलील है कि किसानों को उर्वरक पर दी जा रही भारी सब्सिडी, सरकारी खजाने पर बोझ बन रही है. इसे लंबे समय तक जारी रख पाना ना तो मुमकिन है और ना ही व्यवहारिक है. ऐसे में इसके सस्ते और सुगम विकल्प तलाशने के क्रम में तरल उर्वरक काे विकसित किया गया है.

किसान नहीं हैं संतुष्ट

सरकार द्वारा किसानों को तरल उर्वरक इस्तेमाल करने के लिए लगातार प्रोत्साहित और जागरूक करने के बावजूद इस दिशा में कोई खास कामयाबी नहीं मिल पा रही है. किसानों का रुझान अभी भी Solid Fertiliser ही इस्तेमाल करने के प्रति है. इसकी बड़ी वजह उत्पादकता है.

किसान का पूरा जोर उत्पादन बढ़ाने पर है, वहीं सरकार, मिट्टी की सेहत को बरकरार रखने के लिए सतत पर्यावरण संतुलन के लक्ष्य को हासिल करते हुए किसान की उपज के स्तर को भी बरकरार रखने पर काम कर रही है.

वहीं, किसानों का कहना है कि तरल उर्वरक के इस्तेमाल से उपज कम मिल रही है. झांसी जिले में बावल गांव के प्रगतिशील किसान रघुवंश सिंह का कहना है कि उन्होंने अपने एक खेत में गेहूं, चना और सरसों की फसल में नैनो यूरिया एवं नैनो डीएपी का इस्तेमाल किया. तीनों ही फसलों में उत्पादन में गिरावट आने के बाद उन्हें मजबूरी में ठोस उर्वरक की ओर लौटना पड़ा. हालांकि उन्होंने इसके इस्तेमाल को सरल और सस्ता बताया, लेकिन खेती से लाभ में कमी आने के कारण उन्हें इसका इस्तेमाल बंद करना पड़ा. तरल यूरिया इस्तेमाल करने से पीछे हट रहे तमाम अन्य किसानों की भी यही दलील है.

क्या कहते हैं वैज्ञानिक

झांसी स्थित केंद्रीय कृष‍ि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का कहना है कि तरल उर्वरक के प्रयोग को लेकर अभी शोध चल रहे हैं. अभी इसके अंतिम परिणाम आने तक इंतजार करना पड़ेगा. हालांकि वैज्ञानिकों ने इस पर चल रहे शोध और इसके प्रयोग के हवाले से यह जरूर कहा कि अच्छी किस्म की उपजाऊ मिट्टी में तरल उर्वरक इस्तेमाल करने से शुरुआती 3 साल में उपज स्थिर रहती है. इसके बाद उपज बढ़ाने की गुंजाइश है. वहीं कम उपजाऊ या अनुपजाऊ मिट्टी में तरल उर्वरक इस्तेमाल करना लाभप्रद नहीं है. साथ ही इतना तय हाे गया है कि तरल उर्वरक के इस्तेमाल से मिट्टी की सेहत पर कोई बुरा असर नहीं पड़ता है.

एक अन्य वैज्ञानिक ने शोध के शुरूआती परिणामों के आधार पर बताया कि किसानों को एकदम ठोस उर्वरक से तरल उर्वरक पर श‍िफ्ट नहीं होना चाहिए. शुरू में ठोस उर्वरक की मात्रा को घटाकर 75 फीसदी करके इसकी भरपाई नैनो यूरिया एवं डीएपी से करना चाहिए. इससे उर्वरक की लागत भी कम होती है और उपज का स्तर भी बरकरार रहता है. किसान साल दर साल ठोस उर्वरक की मात्रा को कम करके तरल उर्वरक से इसकी भरपाई कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि अभी तरल उर्वरक के इस्तेमाल के दीर्घकालिक परिणाम के लिए थोड़ा इंतजार करने की जरूरत है.

Exit mobile version