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पीने लायक नहीं है टैंकर का पानी, निजी आरओ प्लांट संचालक कूट रहे चांदी

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टैंकर माफिया देश की राजधानी दिल्ली या उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य की राजधानी लखनऊ में ही नहीं, बल्कि छोटे शहरों में भी अपनी पहुंच और पकड़ बनाए हुए हैं। यही जानने के लिए डाउन टू अर्थ ने बुंदेलखंड के कुछ इलाकों की जमीनी जायजा लिया।हमीरपुर जिले के राठ कस्बे के ज्यादातर इलाकों में पानी की सरकारी आपूर्ति दो दिन में एक बार हो रही है, लेकिन कुछ इलाके ऐसे हैं जहां महीने भर से ज्यादा समय के बाद भी सप्लाई का पानी नहीं आया।

राठ कस्बे का ऐसा ही एक मोहल्ला है “बजरिया”, जहां पिछले दो महीने से नलों में पानी नहीं आया, यहां रहने वाले नसीम बताते हैं कि पूरी गर्मियों में हमने वार्ड मेंबर द्वारा भेजे टेंकर से पानी भरा है, जो नगर पालिका द्वारा भेजे जाते थे। एक हफ्ते पहले तक पानी का एक टेंकर 24 घंटे यहां खड़ा ही रहता था। जब इसकी पड़ताल करने के लिए जब हम वहां पहुंचे तो एक टेंकर उस समय भी खड़ा हुआ था।

बेशक पानी की सरकारी आपूर्ति दो दिन में होती हो, लेकिन पिछले कुछ सालों से पीने के साफ पानी के लिए लोग पानी के निजी कारोबारियों पर निर्भर हो गए हैं। आरओ (रिवर्स ओसमोसिस) पानी का प्लांट चलाने वाले सुशील साहु बताते हैं कि सरकारी सप्लाई में आने वाले पानी की गुणवत्ता काफी खराब है। यही वजह है कि लोग हम पर भरोसा करने लगे हैं। यह कम लागत में ज्यादा मुनाफे वाले बिजनेस है, इसलिए हर दूसरा व्यक्ति पानी का प्लांट लगाने के बारे में सोचता है।

वजह पूछने पर सुशील कहते हैं कि पानी का प्लांट शुरु करने के लिए एक बोरबेल जिसमें समरसिबेल डालकर पानी निकाला जा सके, जिसके लिए दस एचपी की एक मोटर, एक आरओ सिस्टम और पानी ठंडा करने के लिए चिलर मशीन जिसका पूरा खर्चा तीन लाख रुपये के आसपास आता है। यह पानी प्लांट की मुख्य जरूरतें है, इसके अलावा जिस चीज की सबसे ज्यादा जरूरत है वह है पानी को रखने वाले और ठंडा बनाए रखने वाले कैंपर (थर्मस), जोकि सबसे ज्यादा मंहगे होते हैं। इसके अतिरिक्त जो भी लागत इसमें आती है वह पानी की सप्लाई की होती है।

पानी प्लांट शुरु करने के लिए किसी प्रकार के नियम कानून या फिर किसी लाइसेंस की जरूरत होती है? पूछने पर सुशील कहते हैं कि नहीं ऐसा कुछ नहीं है, इस बिजनेस से जुड़े पुराने लोगों ने नियम और प्रक्रियाओं का पालन करते हुए अपने बोरवेल के पानी की गुणवत्ता की जांच राज्य स्वास्थय संस्थान से करवाई है। इसे ही एक प्रकार से लाइसेंस मान सकते हैं।

लगभग दो लाख की आबादी वाले राठ कस्बे में इस समय दो दर्जन के आसपास आरओ पानी प्लांट लगे हुए हैं, जो मार्च से लेकर जून के पीक समय में करीब पांच हजार डिब्बा(एक डिब्बे में बीस लीटर) पानी की सप्लाई करते हैं। यह किसी भी प्रकार के फंक्शन में दी जाने वाली सप्लाई से अलग है, गर्मियों का सीजन शादियों का भी सीजन होता है, एक से डेढ़ हजार डिब्बों की सप्लाई उसमें भी होती है। इस तरह पीक सीजन में करीब दो लाख लीटर पानी सप्लाई किया जाता है।

महोबा जचरखारी कस्बे के एक और प्लांट संचालक आदिल बताते हैं कि पानी को फिल्टर करने पर कम से कम 60 प्रतिशत पानी वेस्ट के रूप में निकलता है। दूसरे लोग इसका क्या करते हैं यह जानना महत्वपूर्ण है। वह कहते हैं कि मैंने अपने प्लांट में दो बोर करा रखे हैं एक पानी निकालने के लिए दूसरा वेस्ट हुए पानी को वापस जमीन में डालने के लिए। प्रति सौ लीटर पानी में जो 50-60 लीटर पानी वेस्ट निकलता है उसको हम वापस जमीन में डाल देते हैं। सुशील ने भी अपने प्लांट में दो बोर कराये हुए ताकि वेस्ट हुए पानी को वापस जमीन में डाला जा सके।

हरीश, और उन जैसे लोग केवल पानी निकालते हैं। सुशील की बात से इत्तेफाक न रखते हुए एक और प्लांट संचालक कहते हैं कि यह बेकार का खर्च है। पानी को फिल्टर करते हुए निकले वेस्ट को हम घर के कामों में प्रयोग कर लेते हैं, हालांकि यह इतना ज्यादा और रोज निकलता है कि इसे बहाना ही पड़ता है। रिवर्स बोर न कराने की वजह बताते हुए हरिश कहते हैं कि यह महंगा होता है, और कंपटीशन के दौर में एक और बोर कराकर एक-डेढ़ लाख रुपये खर्च करना किसी प्रकार से समझदारी नहीं है।

बोरबेल करने वाले एक मिस्त्री पप्पु कुशवाहा बताते हैं कि कस्बे में एक दशक पहले तक साठ से लेकर अस्सी फीट तक पानी मिल जाता था, क्योंकि उस समय ज्यादातर लोग पानी की सरकारी सप्लाई पर निर्भर थे, और सप्लाई भी ठीक थी। लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब अगर किसी को बोरिंग करानी है तो कम से कम 150 फीट शुरुआत है, उसके बाद पानी कितनी गहराई पर मिलेगा यह अलग बात है। इसका कारण बताते वह इन्हीं पानी प्लांट्स को ही बताते हैं, वह कहते हैं यह प्लांट कस्बे के चारों तरफ लगे हुए हैं, सभी प्लांट मिलकर प्रतिदिन तीन-चार लाख लीटर पानी निकाल रहे हैं, जबकि पानी रिचार्ज होने में समय लगता है।

अवैध रूप से चल रहे ये पानी प्लांट छोटे कस्बों और शहरों का जलस्तर कम करने के साथ-साथ पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले प्लास्टिक कचरे का भी बड़ा सोर्स बन रहे हैं। इसका कारण ज्यादातर आरओ प्लांट मुनाफा बढ़ाने के लिए पानी के पाउच बनाकर बेच रहे हैं। दो पूर्ण रूप से गैर कानूनी है। लेकिन ज्यादातर लोग इन्हें बेच रहे हैं, प्लांट मालिकों का कहना है कि कैंपर अकेले बेचकर तो प्लांट की लागत ही न निकल पाए।

वह कहते हैं कि हम एक दिन में बीस-से तीस बोरी पानी के पाउच अलग-अलग दुकानों पर देते हैं, 50 पाउच वाली एक बोरी की कीमत 35 से लेकर 45 रुपये होती है। दुकानदार इसे 10 के चार के भाव से बेचते हैं। जो लोग पानी बोतल के लिए दस से बीस रुपये खर्च नहीं करना चाहते या फिर जरूरत के हिसाब से बार- बार खरीदते हैं वह इसका ज्यादा प्रयोग करते हैं। जोकि उन्हें बोतल के मुकाबले काफी सस्ता और हर वक्त मिल जाता है।

उत्तर प्रदेश में हर तरह की प्लास्टिक बैन को पूर्ण रूप से प्रतिंबधित किया गया है उसके बाद भी लगभग हर जगह पानी के पाउच बिकते हुए देखे जा सकते हैं।

लखनऊ में भी टैंकर माफिया के भरोसे हैं लोग

गर्मियों में जब पानी की मांग बढ़ती है और प्रशासन पानी की आपूर्ति करने में विफल रहता है, तब देश का शायद ही कोई शहर ऐसा हो, जहां पानी का टैंकर माफिया सक्रिय न हो। डाउन टू अर्थ ने ऐसे ही कुछ बड़े शहरों की रिपोर्टिंग की और टैंकर माफिया के जाल को समझने की कोशिश की। अब तक आप ऐसी तीन रिपोर्ट पढ़ चुके हैं। जिनका लिंक आप इस स्टोरी के बीच में देख सकते हैं। आज हम बता रहे हैं कि उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में टैंकर संचालक किस तरह अपना कारोबार कर रहे हैं?

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की सड़कें भी पानी के टैंकरों से गुलजार रहती हैं, लेकिन आखिर पानी से भरे टैंकर इतनी भारी संख्या में कहाँ से आ रहे हैं? इस सवाल के जवाब की तलाश में संवाददाता लखनऊ के आशियाना सेक्टर एम के किला महोम्मदी नगर पहुंची। जहां उनकी मुलाकात हरी प्रसाद वर्मा से हुई।

अपनी दुकान पर बैठे हरी प्रसाद डाउन टू अर्थ को बताते हैं, “मेरे पास पानी के छह टैंकर हैं। मैं 15 सालों से पानी सप्लाई का काम कर रहा हूं। जब जल कल विभाग वाले पानी की आपूर्ति नहीं कर पाते हैं तब ये लोग हमसे संपर्क करते हैं और पानी हमारे यहाँ से लेकर जाते हैं। एक टैंकर का ये लोग हमें 400 रुपए देते हैं. एक टैंकर में 4000 लीटर पानी आता है।”

क्या आपके पास पानी सप्लाई करने का कोई लाईसेंस है इस सवाल के जवाब में हरी प्रसाद सकपका जाते हैं. वो कहते हैं, “मेरे पास जीएसटी नम्बर है. इसके लिए लाईसेंस की कोई जरुरत नहीं पड़ती है।

ज्येष्ठ मंगल यानि मई-जून महीने में पानी की सबसे ज्यादा डिमांड रहती हैं. जुलाई से अक्टूबर तक पानी की मांग ठप्प रहती है. इस दौरान कभी-कभार एक तो टैंकर की मांग रहती है. जबकि अप्रैल, मई और जून महीने में एक दिन में कई बार हम खुद पानी की आपूर्ति नहीं कर पाते। हमारे गाँव में करीब 50 टैंकर होंगे. 10-12 लोग अपने घर से यही पानी सप्लाई करने का काम करते हैं।”

हरी प्रसाद हमसे बात करते हुए काफी डरे हुए थे. क्योंकि किला महोम्मदी नगर करीब 10-15 लोग पानी के तै टैंकर के सप्लायर्स हैं। इन लोगों ने अपने-अपने घर में मोटर लगाकर रखी है. दो से लेकर आठ दस टैंकर इन लोगों के पास हैं। प्रति टैंकर ये 400 से 600 रुपए तक ये लोग ग्राहकों से पानी लेते हैं. एक टैंकर में 4000 लीटर पानी आता है।

यहां के पानी सप्लायर्स से बात करके एक बात समझ आयी कि ये लोग पानी की गुणवत्ता को लेकर कोई विशेष इंतजाम नहीं करते हैं। कुछ लोगों ने बताया कि वो पानी टैंकर की धुलाई करते है तो कुछ ने बताया कि वो इसमें ब्लीच पाउडर डालते हैं।

यहां पानी की मांग ज्यादातर उन इलाकों से आती हैं जहां दो तीन दिन लाईट खराब हो जाती है या फिर कुछ दिनों तक पानी ठप्प हो जाता है. पीने के पानी से लेकर भवन निर्माण के कार्य तक पानी की मांग रहती है। लखनऊ में ज्येष्ठ महीने यानि मई और जून में जब बड़े मंगल को जगह-जगह भंडारे लगते हैं तब पानी की डिमांड इनके पास ज्यादा होती है।

हरी प्रसाद की दुकान के ठीक पीछे एक दूसरे टैंकर सप्लायर्स रहते हैं। यहां सूरज राजपूत बताते हैं, “हमारे गांव में करीब 20 लोग ऐसे हैं तो पानी टैंकर के सप्लायर्स हैं। सभी के पास हमारे फोन नम्बर रहते हैं। जहां पानी की कमी होती है, वहां के लोग हमसे पानी की डिमांड करते हैं उसी डिमांड के आधार पर हम इनके यहां पानी पहुंचा देते हैं। सबसे ज्यादा डिमांड आलमबाग इलाके से आती है।”

क्या इसके लिए कोई लाइसेंस की आवश्यकता होती है? इस सवाल के जवाब में सूरज यादव कहते हैं, “अभी तक तो लोग अपने घर में ही पानी की मोटर लगा लेते हैं। एक कामर्शियल मीटर लगा लेते हैं। इसके अलावा कोई लाईलेंस बगैरह नहीं लेना पड़ता है। कई बार जब जल कल विभाग वाले पानी नहीं पहुंचा पाते हैं तो कस्टमर सीधे हमसे डिमांड करते हैं. हम प्रति टैंकर 500 रूपये लेते हैं. मौजूदा समय में हमारे पास तीन टैंकर हैं।”

सूरज यादव की दुकान से कुछ दूरी पर बेसिक विद्यालय तोदेंखेड़ा नगर क्षेत्र लखनऊ जोन-1 के ठीक बगल में 8 टैंकर खड़े थे। एक टैंकर में पानी भरा जा रहा था. पर उन्होंने हमसे बात करने से मना किया। पानी भरते हुए उन्होंने कहा, “मालिक हैं नहीं. मुझे कुछ पता नहीं।”

जल कलकल विभाग जिन इलाकों में टैंकर से जरुरत पड़ने पर पानी पहुंचाता है हमने उन इलाकों में से एक इलाका नई रहीमनगर बस्ती का भ्रमण किया।

जल कल विभाग की गाड़ी से पानी भर रहे राजेश कुमार ने हमें बताया, “यहाँ 30,000 की आबादी है लेकिन पानी सप्लाई के लिए कहीं पर टंकी नहीं लगी है। इस बस्ती में चार ट्यूबबेल लगे हुए हैं जिससे पानी सप्लाई किया जाता है। तीन दिन से हमारी बस्ती का ट्यूबबेल खराब है। हमलोगों ने जल निगम को सूचना देकर गाड़ी मंगाई है। पानी की बहुत समस्या हो जाती है जब सप्लाई का पानी नहीं आता। टैंकर का पानी बताया तो शुद्ध जाता है पर हमलोग पीते नहीं हैं।”

लखनऊ जिले में जलकल विभाग रोजाना कितने टैंकर की सप्लाई करता है? जो लोग प्राईवेट पानी सप्लाई करते हैं उन पर क्या किसी तरह की कोई नकेल कसी जाती है? ये लोग पानी कैसे सप्लाई किस नियमावली के तहत पानी की सप्लाई कर सकते हैं? इस सवाल के जवाब के लिए में हम जलकल विभाग के महाप्रबंधक मनोज कुमार आर्या से मुलाकात के लिए पहुंचें। पर इनसे हमारी मुलाकात संभव नहीं हो सकी। खबर लिखे जाने तक फोन पर भी बात संभव नहीं हो सकी।

यहां काम कर रहे लोगों ने बताया कि जो लोग प्राईवेट पानी सप्लाई करते हैं उनसे हमारा कोई कनेक्शन नहीं है. हमारे पास काफी पानी है हमें कभी किसी प्राइवेट सप्लायर्स से पानी लेने की जरूरत नहीं महसूस होती है। जिन इलाकों से डिमांड आती है वहां पानी पहुंचाया जाता है। पर रोजाना या महीना कितने टैंकर पहुंचाएं जाते हैं इसका हमारे पास कोई फिक्स आंकड़ा नहीं हैं। लखनऊ में पीने के पानी को लेकर कोई विशेष किल्लत नहीं है।

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