भारत ने अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता तेजी से बढ़ाई है लेकिन इसकी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और लगातार बढ़ रही आबादी से कार्बन-बहुलता वाले उत्पादों की मांग भी बढ़ेगी। वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज ने गुरुवार को यह आशंका जाहिर की। मूडीज रेटिंग्स ने कहा है कि भारत वर्ष 2024 में 7.2 प्रतिशत और वर्ष 2025 में 6.6 प्रतिशत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर के साथ दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बना रहेगा। देश में अगले दशक में भी इसी तरह की उच्च वृद्धि दर बने रहने की संभावना है।
मूडीज रेटिंग्स ने कहा कि भारत वर्ष 2024 में 7.2 प्रतिशत और वर्ष 2025 में 6.6 प्रतिशत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर के साथ दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बना रहेगा। देश में अगले दशक में भी इसी तरह की उच्च वृद्धि दर बने रहने की संभावना है।
मूडीज ने ‘कार्बन बदलाव- भारत’ शीर्षक से जारी अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि आबादी और औद्योगीकरण बढ़ने से भारत की ऊर्जा जरूरतें भी बढ़ेंगी। इसके अलावा परिवारों की आय बढ़ने से वाहन जैसे ईंधन-बहुल उत्पादों की मांग भी बढ़ेगी।वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) के उत्सर्जन में भारत की हिस्सेदारी 2019 में 6.7 प्रतिशत थी जो 2022 में बढ़कर 7.5 प्रतिशत हो गई।
रिपोर्ट कहती है कि निजी निवेश को आकर्षित करने और कार्बन कटौती की वजह से आधारभूत उद्योगों में नौकरियां घटने जैसे नकारात्मक प्रभावों से निपटने की सरकार की क्षमता से ही यह तय होगा कि कार्बन बदलाव और सामाजिक जोखिमों से भारत का ऋण जोखिम आगे बढ़ता है या नहीं।
भारत ने वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन हासिल करने की प्रतिबद्धता जताई है और 2030 के अंतरिम लक्ष्य की दिशा में भी कुछ उपलब्धियां हासिल की हैं। लेकिन देश की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को बढ़ाती रहेगी।मूडीज ने कहा कि भारत 2022 तक दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक था लेकिन इसका प्रति व्यक्ति उत्सर्जन अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अब भी कम है।
भारत ने मजबूत नीतिगत समर्थन और निजी क्षेत्र के निवेश के दम पर अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का विस्तार किया है। लेकिन परिवहन और व्यापक अर्थव्यवस्था में कार्बन कटौती की रफ्तार धीमी रही है। इस बदलाव को तेज करने के लिए सरकार एक अनिवार्य उत्सर्जन व्यापार व्यवस्था लाने की योजना बना रही है।
मूडीज का कहना है कि भारत में बढ़ते तापमान, पानी से जुड़ी समस्या और प्रदूषण जैसे पर्यावरणीय जोखिमों के लिए उच्च ऋण जोखिम है इसके अलावा भारत आय असमानता, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा चिंताओं और बुनियादी सेवाओं तक सीमित पहुंच के कारण सामाजिक जोखिमों के प्रति भी अत्यधिक संवेदनशील है।
भारत 2030 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर: एसएंडपी
दूसरी ओर एक अन्य रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ग्लोबल ने दावा किया है कि भारत 2030 तक तीसरी सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था बनने की ओर बढ़ रहा है। एजेंसी गुरुवार को जारी अपनी एक रिपोर्ट में यह बात कही।
एजेंसी ने कहा कि बढ़ती जनसंख्या बुनियादी सेवा का दायरा बढ़ाने के मामले में बढ़ती चुनौतियों को उजागर करती है और उत्पादकता बनाए रखने के लिए निवेश का भी और बढ़ना जरूरी है।रिपोर्ट में कहा गया है कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं की अगले दशक और उससे आगे के लिए बड़ी महत्वाकांक्षाएं हैं। वर्तमान में 3,600 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था भारत का लक्ष्य 2047 तक 30 हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना है। भारत इस समय दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
एसएंडपी ने कहा, “भारत अगले तीन साल में सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है और 2030 तक वैश्विक स्तर पर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। निवेश बैंकिंग कंपनी जेपी मॉर्गन के ‘सरकारी उभरते बाजार बॉन्ड सूचकांक’ में 2024 में इसका प्रवेश अतिरिक्त सरकारी वित्तपोषण प्रदान कर सकता है और घरेलू पूंजी बाजारों में महत्वपूर्ण संसाधनों तक पहुंच बना सकता है।”
एसएंडपी ने अपनी ‘उभरते बाजारों पर भविष्य की नजर: एक निर्णायक दशक’ रिपोर्ट में कहा कि उभरते बाजार अगले दशक में वैश्विक अर्थव्यवस्था को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। जहां 2035 तक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की औसत वृद्धि दर 4.06 प्रतिशत रहेगी, वहीं उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के लिए यह दर 1.59 प्रतिशत रहेगी।
साल 2035 तक उभरते बाजार वैश्विक आर्थिक वृद्धि में लगभग 65 प्रतिशत का योगदान देंगे। इस वृद्धि में मुख्य रूप से एशिया-प्रशांत क्षेत्र की उभरती अर्थव्यवस्थाओं का योगदान होगा। इनमें चीन, भारत, वियतनाम और फिलिपीन शामिल हैं।
एसएंडपी ने कहा, “इसके अलावा, 2035 तक भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित हो जाएगा, जबकि इंडोनेशिया और ब्राजील क्रमशः आठवें और नौवें स्थान पर होंगे।”
इसमें कहा गया है कि भारत ने अपने पूंजीगत व्यय को बढ़ाकर अपने कमजोर राजकोषीय क्षमता को सुधारने के लिए भी कदम उठाए हैं, जिससे दीर्घकालिक वृद्धि को और अधिक समर्थन मिलेगा।