किसानों के लिए एक सामूहिक पर्यावरण-अनुकूल सौर-संचालित सिंचाई व्यवस्था, उन्हें प्रदूषण फ़ैलाने वाले डीजल पंपों या बारिश पर निर्भरता से मुक्त करके, अधिक कमाई करने में मदद करती है. वर्तमान में किसान फसल सिंचाई के लिए ग्रिड से जुड़ी बिजली और डीजल पंपों पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं. महंगे डीजल इंजन कृषि सामग्री की लागत बढ़ाते हैं और कार्बन उत्सर्जन बढ़ाते हैं. दक्षिणी राजस्थान के जनजातीय क्षेत्र डूंगरपुर जिले के साबला तहसील के हमीरपुरा गांव के किसानों के लिए भी यह कुछ अलग आलम नहीं था.
डूंगरपुर जिले का मुख्य आधार कृषि है, भूमि की औसत जोत का आकार कम है. ज्यादातर किसान वर्षा आधारित खेती करते हैं और अपनी फसलों की सिंचाई के लिए केवल बारिश के पानी पर निर्भर रहते हैं. कई छोटे और सीमांत किसान डीजल पंप किराए पर लेते हैं, जो बहुत ज्यादा प्रदूषण फैलाते हैं. इससे सिंचाई की लागत भी ज्यादा होती है.
ग्राम चौपाल के माध्यम से विकास के कार्य
हमीरपुरा गांव में वागधारा संस्था गठित ग्राम स्वराज समूह का गठन किया गया है, जो कि ग्राम स्तर पर केंद्रीय संगठन के रूप में कार्य करता है. धरातलीय व स्वतंत्र कार्यशैली से कार्य करने वाला यह समूह हमीरपुरा गांव के पूरे समुदाय का प्रतिनिधित्व कर रहा है. ग्राम स्वराज समूह, गांव में सामाजिक और आर्थिक न्याय के लिए और सामुदायिक एकता को बढ़ाने के लिए जैसे- गांव के विकास के मुद्दों, समुदाय में फैली विभिन्न कुरीतियों को ख़त्म करने के लिए समुदाय में जन जागरूकता लाने, समस्याओं को हल करने के लिए विभिन्न हितधारकों के साथ संवाद स्थापित करने, ग्राम विकास की योजनाओं के निर्माण में सक्रिय सहभागिता सुनिश्चित करने तथा पंचायत में अनुमोदन करने का कार्य, समुदाय के वंचित वर्ग के सदस्यों को चिन्हित कर उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए सरकार द्वारा प्रदत्त विभिन्न सेवाओं एवं योजनाओं से जुड़वाने में सहयोग हेतु सतत प्रयासरत है, इस ग्राम स्वराज समूह में प्रत्येक गांव से 10 पुरुष और 10 महिलाओं की समान सहभागिता के साथ कुल 20 सदस्य होते हैं. समूह में सम्मिलित होने वाली 10 महिला सदस्य अनिवार्य रूप से उनकी भागीदारी आवशक होती है. यह समूह के सदस्य प्रति माह नियमित बैठक करते है. ग्राम स्वराज समूह के सभी सदस्य ग्राम चौपाल के माध्यम से गांव के समग्र विकास और स्वराज की अवधारणा को लागू करने के लिए कार्य करते हैं.
‘सच्ची खेती’ कार्यक्रम किया लागू
मूल रूप से यह सौर सिंचाई व्यवस्था का उपयोगकर्ता ग्राम स्वराज समूह के सदस्य है, जिसमें 30 से 40 आदिवासी किसान परिवार शामिल हैं. वागधारा गठित ग्राम स्वराज समूह में सिंचाई की लागत कम करने के लिए, स्वच्छ परियोजना के तहत सामुदायिक सौर-आधारित सिंचाई व्यवस्था के माध्यम से वागधारा के ‘सच्ची खेती’ कार्यक्रम लागू किया गया है. लगभग 30-40 किसानों के संयुक्त सामुदायिक स्वामित्व वाली सौर ऊर्जा संचालित सिंचाई व्यवस्था उनकी सिंचाई जरूरतों को पूरा करती है और सामग्री लागत को कम करती है. ग्राम स्वराज समूह के सदस्य और एक अध्यक्ष, सचिव, जल उपयोगकर्ता किसान सिंचाई के लिए नियम और मानदंड बनाती है और व्यवस्था के दिन-प्रतिदिन के कामकाज का प्रबंधन करती है.
सौर ऊर्जा सिंचाई कैसे हुई स्थापित?
सामुदायिक सौर-संचालित सिंचाई व्यवस्था स्थापित करने की प्रक्रिया, समूहों की पहचान और जलग्रहण क्षेत्र की माप और सिंचाई विकास प्रबंधन के निर्माण के साथ शुरू होती है. ग्राम स्वराज समूह द्वारा, इसके बाद प्रत्येक सिंचाई व्यवस्था के कमांड क्षेत्र की मैपिंग की जाती है और भूमि के नीचे पाइपलाइन के नक़्शे पर निर्णय लिया जाता है. पाइपलाइन की खुदाई और पंप हाउस निर्माण कार्य, उपयोगकर्ता समूह द्वारा सामुदायिक योगदान के माध्यम से किया जाता है. उपयोग के नियमों में सदस्य की जरूरतों के अनुसार पानी का वितरण, ग्राम स्वराज समूह द्वारा सिंचाई का संग्रह और नियमित देखरेख होती है.
सौर ऊर्जा सिंचाई, खेती की श्रम-गहनता कम करती है और किसानों को अधिक कमाई करने में मदद करती है सामुदायिक सौर सिंचाई प्रणाली पर्यावरण के अनुकूल और सस्ती है. क्योंकि ये सिंचाई सुनिश्चित करने का एक भरोसेमंद स्रोत हैं, किसान पूरे वर्ष ऊंचे मूल्य वाली फसलें उगा सकते हैं.
सिंचाई की लागत कम और आय में वृद्धि
सौर ऊर्जा संचालित सिंचाई प्रणाली में श्रम गहनता कम होती है और पाइप लाइनों के भूमिगत होने के कारण पानी से होने वाले रिसाव के नुकसान को कम करती है. इससे जहां सिंचाई की लागत कम होती है, वहीं आय में वृद्धि होती है. ये पर्यावरण के अनुकूल भी हैं, क्योंकि इनमें कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन नहीं होता है. परियोजना जलग्रहण क्षेत्र में लगभग 40 डीजल पंपों को हटा दिया गया है. क्योंकि सौर पंप पूरे साल सिंचाई सुनिश्चित करते हैं, इसलिए किसान तीन फसली मौसमों में अन्य ऊंची मूल्य वाली सब्जियां उगा रहे हैं.
हालांकि उपयोगकर्ता समूहों में समानता, एकरूपता और पारदर्शिता बनाए रखना कई बार एक चुनौती होती है, लेकिन वागधारा गठित ग्राम स्वराज समूह के किसानों की सक्रियता भागीदारी को बढ़ावा देती है, जिससे व्यवस्था की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित होती है. ग्राम स्वराज समूह एक सामूहिक उद्देश्य के लिए पारस्परिक जिम्मेदारी सुनिश्चित करती है. सामूहिक योगदान और स्व-प्रबंधन सदस्य किसानों में सामुदायिक स्वामित्व, आत्म-सम्मान और आत्मनिर्भरता की भावना पैदा करता है.
हमीरपुरा गांव के 50 परिवार हुए लाभान्वित
इस 90 वैट सौर सिंचाई सयंत्र से हमीरपुरा गाव के 40-50 परिवार लाभान्वित हुए है और 300 बीघा कृषि भूमि सिंचित हुई है इस सौर सिंचाई सयंत्र कार्यक्रम से हमीरपुरा के किसानों की आय और समृद्धि में वृद्धि हुई है पानी का उपयोग फसल की जरूरत के अनुसार होता है. सौर सिंचाई सयंत्र स्थापित होने से पहले यह किसान परिवार एक ही वर्षा आधारित रबी की फसल करते थे और बाकि समय गुजरात के सूरत और अहमदाबाद शहर में पलायन करते थे या भवन निर्माण के कम पर मजदूरी करते थे, इन किसानो को फसल के लिए डीजल पंप से सिंचाई करने से एक साल के फसल सीज़न में, प्रत्येक किसान का सिंचाई खर्च 6000 से 7000 रुपये था. सामुदायिक सौर-सिंचाई व्यवस्था स्थापित होने के बाद, किसानों का वार्षिक सिंचाई खर्च एक भी नहीं आया है. फसलों की सिंचाई भी समय पर हो रही है, जिससे पैदावार बढ़ी है. आज पानी की उपलब्धता के कारण, सब सिंचाई क्षेत्रों में किसान तीनों मौसमों (रबी, खरीफ और जायद) में फसलें उगा सकते हैं और किसानों में सिंचाई व्यवस्था के स्वामित्व की भावना होती है, स्वयं ही इसका प्रबंधन कर रहे हैं.
सौर उर्जा सयंत्र से घटी खेती की लागत
इस क्षेत्र के किसानों ने पारंपरिक रूप से उगाए जाने वाले गेहूं और मक्का के अलावा जायद में मुंग दाल और मिर्च, भिंडी, बैंगन, करेला, मूली, पालक की खेती शुरू कर दी है इसके उन्नत बीज वागधारा ने इन किसानो को प्रदान किया है. अब इन गावों में जायद में मुंग की खेती करने लगे हैं गाव के तुलसी कांति देवी कहती है की सौर सयंत्र लगाने से मेरे जैसे कई किसान मुंग की खेती करने लगे है और अच्छा उत्पादन हो रहा है. क्योंकि मुंग 60 दिन का होता है और पानी भी कम लगता है. मुझे 1 बीगा में 1.5 किटल मुंग प्राप्त हुआ है, जिससे मेरी आमदनी बढ़ी है. उन्होंने कहा, मेरे जैसे 30 महिलाओ ने गत वर्ष मुंग की खेती कर अपनी आमदनी बढ़ाई, नीशुल्क सिंचाई और कम मजदूरी की जरूरत होने से, किसानों को खर्च कम होने के कारण आर्थिक रूप से भी लाभ हो रहा है और सौर उर्जा सयंत्र जो किसानों को सिंचाई की कम लागत, पर्यावरण-अनुकूल प्रणाली प्रदान कर रहा है.