भारत में खरीदारों और विक्रेताओं के बीच बहुत बड़ा गैप है.सरकार प्रस्तावित डीपीआई के माध्यम से इस गैप को पाटना चाहती है. इसका लक्ष्य अधिक किसानों और असंगठित व्यवसायों को आधार जैसे डेटा स्टैक से ईंटीग्रेट करना है CRIER की सीनियर फेलो मानसी केडिया की माने तो वे कहती हैं कि डीपीआइ डिजिटल इकोसिस्टम की रीढ़ हैं,इसे डिजिटल रेलमार्ग या राजमार्ग की तरह समझा जा सकता है जो व्यवसायों और यूजर्स को जोड़ते हैं, जिससे वस्तुओं और सेवाओं का सुचारू प्रवाह होता है.
केंद्रीय बजट 2024 के दौरान, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कृषि के लिए डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) की क्षमता का विस्तार करने के लिए घोषणा की. उन्होंने ई-कॉमर्स, एमएसएमई, स्वास्थ्य, कानून और अन्य क्षेत्रों के लिए ओपन-सोर्स DPI के विकास का भी प्रस्ताव रखा. आज हम जानेगे डीपीआइ क्या है? ये कृषि मे कैसे क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है?
ICRIER की सीनियर फेलो मानसी केडिया की माने तो वे कहती हैं कि डीपीआइ डिजिटल इकोसिस्टम की रीढ़ हैं,इसे डिजिटल रेलमार्ग या राजमार्ग की तरह समझा जा सकता है जो व्यवसायों और यूजर्स को जोड़ते हैं, जिससे वस्तुओं और सेवाओं का सुचारू प्रवाह होता है.
भारत में, खरीदारों और विक्रेताओं के बीच बहुत बड़ा गैप है. सरकार प्रस्तावित डीपीआई के माध्यम से इस गैप को पाटना चाहती है. इसका लक्ष्य अधिक किसानों और असंगठित व्यवसायों को आधार जैसे डेटा स्टैक से ईंटीग्रेट करना है, उन्हें औपचारिक अर्थव्यवस्था से जोड़ना है. इस पहल का उद्देश्य आर्थिक दक्षता को बढ़ावा देना और भारत को 2027-28 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाना है.
एक अनुमान के मुताबिक 2030 तक भारत जीडीपी में DPI का योगदान लगभग 4.2% हो सकता है और 2013 से 2021 के बीच सरकार को 2.2 ट्रिलियन रुपये (GDP का 1.1%) की बचत हो रही है. अकेले आधार-इनेबल्ड प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण जो कि डीपीआई का एक रूप है, से 2.7 लाख करोड़ रुपये की बचत हुई है जिससे सब्सिडी सही जेब तक पहुँचती है.
उदाहण के तौर पर एक किसान ताज़ी कटी हुई गेहूँ की बोरी लेकर चहल-पहल वाली स्थानीय मंडी में जाता है. वह एक कमीशन एजेंट से बातचीत करता है, अपनी फसल बेचता है और एक कागजी रसीद और कुछ दिनों बाद भुगतान का वादा लेकर घर जाता है. उसे नए एग्रीस्टैक सिस्टम का उपयोग करके यूनिक किसान आईडी के साथ एकीकृत किसान सेवा इंटरफ़ेस (UFSI) में लॉग इन करके वह अपनी फसल का विवरण अपलोड करता है, जिसमें जीपीएस (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) निर्देशांक और फसल के खलिहान की जानकारी शामिल है. कुछ ही मिनटों में, वह एकीकृत प्लेटफ़ॉर्म पर संभावित खरीदारों से जुड़ जाता है, और पूरे राज्य से प्रतिस्पर्धी ऑफ़र प्राप्त करता है. डीपीआई की मदद से किसान अपने मोबाइल फ़ोन से सबसे अच्छा ऑफ़र स्वीकार कर सकता है और पिकअप शेड्यूल करता है.
एग्रीस्टैक के साथ किसान बिचौलियों को दरकिनार कर सकते हैं, बेहतर कीमतों पर बातचीत कर सकते हैं और साथ ही अनाज की बर्बादी को कम कर सकते हैं. किसानो की यूनीक आईडी उन्हें किसान क्रेडिट कार्ड से मिलने वाले लोन जैसे सरकारी लाभों से जोड़ती है.
भारत सरकार ने का लक्ष्य इस वित्तीय वर्ष के अंत तक छह करोड़ किसानों को सशक्त बनाना है. उनके डेटा को लिंक करके डीपीआई से किसानों की आय में 25%-35% की वृद्धि कर सकता है.कृषि डीपीआई मौसमी उत्पादन और जलवायु जोखिम जैसी चुनौतियों का समाधान करता है, जो एल्गोरिदम और सर्च पर ध्यान केंद्रित करता है. इस बजट मे डीपीआई की मदद से खरीफ के लिए एक डिजिटल फसल सर्वेक्षण 400 जिलों में किया जाएगा.
आईआईएम बैंगलोर के पूर्व प्रोफेसर और आईसीआरआईईआर, नई दिल्ली के वरिष्ठ विजिटिंग प्रोफेसर ए. दामोदरन का मानना है डीपीआइ न केवल डिजिटल टूल है बल्कि यह कृषि सेक्टर मे संरचनात्मक सुधार है. प्रोफेसर दामोदरन सुझाव देते हैं कि सर्च दक्षता, डीपीआई की आधारशिला है, लेकिन यह एकमात्र मीट्रिक नहीं होना चाहिए.
भारत के रिटेल उद्योग का 90% से ज़्यादा हिस्सा असंगठित है. यह UPI-आधारित या आधार-जैसे DPI के लिए एक बड़ा अवसर प्रस्तुत करता है. मौजूदा बाज़ार में ई-कॉमर्स प्लेटफ़ॉर्म का दबदबा है, जो अपने ऑल-इन-वन सेवा ईण्टीग्रेषन के लिए जाने जाते हैं. हालाँकि ये प्लेटफ़ॉर्म उपभोक्ताओं के लिए बहुत बढ़िया हैं, लेकिन वे हमेशा छोटे, अनौपचारिक व्यवसायों के लिए ई-कॉमर्स उपयुक्त नहीं हो सकते हैं क्योंकि ये अपने कन्जुमर बेस को व्यापक बनाने का लक्ष्य रखते हैं. भारत का असंगठित क्षेत्र 44 करोड़ व्यक्तियों वाला एक पावरहाउस है, जो हमारे कार्यबल का 83% हिस्सा है और हमारे सकल घरेलू उत्पाद में 50% योगदान देता है. उसे संगठित अर्थव्यवस्था मे बदलने की आवश्यकता है.