Home खेती किसानी कश्मीर में कैसे फल-फूल रहा है रेशम कीट उद्योग 

कश्मीर में कैसे फल-फूल रहा है रेशम कीट उद्योग 

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खेती में फ़सल उगाने से लेकर पशुपालन, मछली पालन और मुर्गी पालन जैसी कई चीज़ें तो शामिल हैं ही, साथ ही सेरीकल्चर यानी रेशमकीट पालन भी अब खेती से जुड़ा एक अच्छा मुनाफ़ा देने वाला व्यवसाय बनता जा रहा है। कश्मीर में तो ये एक तेज़ी से बढ़ता उद्योग बन गया है, जिससे हज़ारों कश्मीरियों की रोज़ी-रोटी चल रही है। रेशम कीट पालन  करने वाले शबनम जावेद ने कश्मीर में फल-फूल रहे सेरीकल्चर उद्योग के बारे में अहम जानकारी साझा की।रेशम कीट पालन कश्मीर में तेजी से बढ़ता उद्योग बन चुका है, जो किसानों को अच्छा मुनाफ़ा दे रहा है। शबनम जावेद ने इस क्षेत्र से जुड़ी अहम जानकारी साझा की है।

कैसे बनता है कीटों से रेशम?

चलिए सबसे पहले जानते हैं कि आखिर रेशम कीट पालन से रेशम बनता कैसे है। सबसे पहले तो रेशम कीट के अंडों को शहतूत के पत्तों पर रखा जाता है। फिर अंडों से निकलने वाले छोटे कीच जिन्हें लार्वा या कैटरपिलर कहा जाता है, वह शहतूत के पत्तों को खाते हैं और बढ़ने लगते हैं। यह लार्वा एक रेशमी कोकून बनाते हैं, जिसमें वे प्यूपा अवस्था में जाते हैं। फिर इन कोकों से रेशम तंतु निकाले जाते हैं, जिन्हें प्रोसेस करके रेशम का धागा बनाया जाता है। इन धागों से खूबसूरत साड़ियां और ड्रेसेस बनते हैं।

यह पूरी प्रक्रिया रेशम कीट पालन  के माध्यम से होती है, और इसे एक लाभकारी कृषि व्यवसाय के रूप में देखा जा सकता है। रेशम कीट पालन किसानों को एक स्थिर आय प्रदान करने का एक बेहतरीन तरीका है।

पूरी दुनिया में मशहूर है कश्मीरी रेशम

भारत में रेशम का उत्पादन मुख्य रूप से असम, पंजाब, कश्मीर और कर्नाटक में होता है। सबसे ज़्यादा रेशम का उत्पादन कर्नाटक में होता है, लेकिन सबसे मशहूर है कश्मीर का रेशम। रेशम कीट पालन से जुड़े शबमन जावेद का कहना है कि कश्मीरी रेशम पूरी दुनिया में मशहूर है।

वो बताते हैं कि रेशम के कीड़े अंडों के माध्यम से बनते हैं और इन्हें चार चरणों से होकर गुजरना पड़ता है। पहला चरण होता है, अंडों को मलबरी यानी शहतूत के पत्तों पर डालना। दूसरे स्टेज में, जैसे-जैसे अंडे बड़े होते हैं, उनकी फीड बढ़ानी पड़ती है। तीसरे चरण में, कीटों को उनके सही विकास के लिए अलग किया जाता है, और चौथे स्टेज में ये रेशम के कीट रेशम बुनने लगते हैं।

यह पूरी प्रक्रिया रेशम कीट पालन  के द्वारा संभव होती है, और कश्मीरी रेशम की ख़ासियत इसे दुनिया भर में एक विशेष स्थान दिलाती है। इन कीटों से प्राप्त रेशम का उत्पादन साल में दो बार होता है, एक जून और दूसरा अगस्त में।

सबसे बेहतरीन है शहतूत रेशम

कश्मीर में आमतौर पर शहतूत के पत्तों पर ही रेशम कीट पालन किया जाता है। शबनम जावेद बताते हैं कि दरअसल, रेशम एक कीट के प्रोटीन से बना रेशा है, और सबसे अच्छा रेशम शहतूत के पेड़ के पत्तों पर पलने वाले कीड़ों के लार्वा से बनता है। शहतूत के पत्ते खाकर, कीट जो रेशम बनाता है, उसे मलबरी रेशम कहते हैं।

उनका कहना है कि कश्मीर का जो रेशम है, वह पूरी दुनिया में फेमस है और सबसे महंगी साड़ी बनाने में कश्मीरी रेशम का इस्तेमाल होता है। सफेद रंग का यह रेशम न केवल अपनी बेहतरीन क्वालिटी के लिए जाना जाता है, बल्कि इसकी महक और चमक भी इसे विशेष बनाती है। इसलिए, शहतूत रेशम की खेती और रेशम कीट पालन , ख़ासकर कश्मीर में, एक महत्वपूर्ण कृषि व्यवसाय बन चुका है, जो पूरी दुनिया में कश्मीर की पहचान बना चुका है।

कश्मीर में तेज़ी से बढ़ रहा रेशम कीट उत्पादन

शबनम का कहना है कि कश्मीर में सेरीकल्चर (Sericulture) उद्योग तेजी से बढ़ रहा है। साल 2020-21 में 798 मीट्रिक टन रेशम कोकून का उत्पादन हुआ, जो इस उद्योग के बढ़ते प्रभाव को दर्शाता है। उनका कहना है कि जो युवा इस व्यवसाय से जुड़ना चाहते हैं, वे सेरीकल्चर डिपार्टमेंट से संपर्क करके रेशम के कीटों की यूनिट लगा सकते हैं। शबनम ने भी अपनी यूनिट की शुरुआत सेरीकल्चर डिपार्टमेंट की मदद से की थी और अब उन्हें यह काम बहुत अच्छा लगता है। उनके अनुसार, अब उनकी यूनिट काफी बड़ी हो चुकी है और इस काम में उनके परिवार के लोग भी सहयोग करते हैं।

वह बताते हैं कि जब रेशम के कीट रेशम बना लेते हैं, तो इन्हें उठाकर धूप में सुखाना होता है और फिर सितंबर के महीने में इसकी मार्केटिंग की जाती है। इस प्रकार, कश्मीर में रेशम कीट पालन  से जुड़ा यह उद्योग न केवल कृषि क्षेत्र को प्रोत्साहित कर रहा है, बल्कि स्थानीय रोजगार और आय के स्रोत भी उत्पन्न कर रहा है।

रेशम कीट के प्रकार

रेशम कीट मुख्य रूप से चार प्रकार के होते हैं-

शहतूत रेशम कीट –  मलबरी रेशम कीट सबसे आम रेशम कीट है, जो शहतूत के पत्तों को खाता है और इसी से दुनिया में सबसे ज़्यादा रेशम का उत्पादन होता है। शहतूत रेशम, बॉम्बिक्स मोरी रेशमकीट के कोकून से बनता है। यह रेशम दुनिया का सबसे बेहतरीन प्राकृतिक रेशम माना जाता है, और इसका इस्तेमाल महंगे कपड़े बनाने में किया जाता है।

ख़ासियत

  • यह रेशम सफेद रंग का चमकीला और बेहद मुलायम होता है।
  • इसमें किसी तरह की गंध नहीं होती है और यह हाइपोएलर्जेनिक होता है और इससे त्वचा में जलन नहीं होती है।
  • यह नमी को सोखता है और शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है।
  • इससे बने कपड़े लंबे समय तक चलते है।
  • भारत में शहतूत रेशम का उत्पादन मुख्य रूप से कर्नाटक, तमिलनाडु और तेलंगाना में होता है।

तसर रेशम कीट-  यह रेशम एन्थेरिया माइलिट्टा और एन्थेरिया प्रोलेई जैसे रेशम के कीड़ों से मिलता है। इस कीट से मिलने वाले रेशम को टसर रेशम, जंगली रेशम या कोसा रेशम भी कहा जाता है। टसर रेशम के कीट अर्जुन, असन और साल जैसे पेड़ों के पत्तों को खाते हैं। इस रेशम का उत्पादन सबसे अधिक झारखंड राज्य में होता है। इसके अलावा छत्तीसगढ़, बिहार, उड़ीसा, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश के शहरी इलाकों में भी इसका उत्पादन किया जाता है।

ख़ासियत

  • भारत टसर रेशम का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
  • टसर रेशम का इस्तेमाल विभिन्न प्रकार के कपड़ों, जैसे साड़ी, शर्ट और दूसरे परिधान बनाने में किया जाता है।
  • यह रेशम शहतूत रेशम से थोड़ा मोटा और कम चमकदार होता है, मगर ये अपनी प्राकृतिक सुनहरी चमक के लिए जाना जाता है।
  • तसर/टसर रेशम को ‘कोसा सिल्क’ के नाम से भी जाना जाता है।
  • ये मज़बूत होता है और इससे बने कपड़े पहनने में आरामदायक होते हैं।
  • क्योंकि इस रेशम को बनाने में कम संसाधनों का इस्तेमाल होता है, इसलिए इसे पर्यावरण के अनुकूल माना जाता है।

मूंगा रेशम कीट- यह रेशमकीट असम में पाया जाता है और ये अपनी ख़ास चमक और सुनहरे रंग के लिए जाना जाता है। यह भी एक जंगली रेशम है और इसे ‘सुनहरा रेशम’ भी कहा जाता है। इस रेशम से बने कपड़े प्रीमियम क्वालिटी के होते हैं। यह रेशम एंथेरिया असामेंसिस के कोकून से बनता है।

ख़ासियत

  • मूंगा रेशम टिकाऊ होने के साथ ही बहुत चमकीला भी होता है। धोने के बाद इसकी चमक और बढ़ती जाती है।
  • इस पर कढ़ाई करना आसान होता है।
  • इसस बने कपड़ों को हाथ से धोया जा सकता है।
  • यह रेशम कई तरह की बुनाई में उपबल्ध, जैसे सादा बुनाई, टवील बुनाई, और साटन बुनाई।
  • यह रेशम थोड़ा नाज़ुक होता है, तो अगर ठीक तरह से देखभाल की जाए तो बहुत दिनों तक चलता है।
  • यह रेशम असम के एक भौगोलिक संकेत के रूप में रजिस्टर्ड है।
  • मूंगा रेशम दुनिया में सुनहरे रंग के सबसे बड़े उत्पादन के लिए जाना जाता है

एरी रेशम कीट- यह रेशमकीट अरंडी के पत्तों को खाता है और इसकी बनावट थोड़ी खुरदरी होती। इसका उत्पादन मुख्य रूप से असम, नागालैंड और मेघालय में होता है। इसे भी जंगली रेशम की श्रेणी में रखा जाता है।

ख़ासियत

  • इससे बने कपड़े हर मौसम में इस्तेमाल किए जा सकते हैं।
  • यह गर्मियों में ठंडा और सर्दियों में गर्म रहता है।
  • इसकी बनावट ऊनी या कपास जैसी होती है।
  • यह अन्य रेशमों की तुलना में भारी होता है।
  • इस रेशम के प्राकृतिक गुण इसे त्वचा पर कोमल बनाता है यानी इसे पहनने से खुजली या जलन नहीं होता है।

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