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फसल बीमा कारोबार से कंपनियों का तीन सालों से बढ़ता जा रहा मुनाफा

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फसल बीमा को लेकर हाल ही में आए आंकड़े ये बताते हैं कि इंश्योरेंस कंपनियों ने 2021-22 और 2023-24 के बीच 34,373 करोड़ का मुनाफा बनाया है. केंद्र सरकार की फसल बीमा योजनाओं के तहत बीमा कंपनियों ने ₹56,325 करोड़ के कुल क्लेम का भुगतान किया जबकि प्रीमियम के रूप में ₹90,698 करोड़ एकत्र किए थे. पिछले 3 सालों में सकल प्रीमियम में किसानों का योगदान ₹10,937 करोड़ था. जाहिर है कि फसल बीमा कारोबार से कंपनियों का मुनाफा पिछले तीन सालों की तुलना में बढ़ा है. इसका अहम कारण अनुकूल मानसून और प्रौद्योगिकी का प्रसार है. यही कारण है कि कई कंपनियां, जो पहले इसे छोड़ चुकी थीं, फसल बीमा बिजनेस में वापस आ गई हैं. 

फसल बीमा क्लेम में कितनी गिरावट?

जहां एक ओर इंश्योरेंस कंपनियों ने 2021-22 और 2023-24 के बीच ₹56,325 करोड़ के कुल क्लेम का भुगतान किया और 34,373 करोड़ का मुनाफा बनाया है. वहीं इसके विपरीत, बीमा कंपनियों ने 2018-19 और 2020-21 के बीच सकल प्रीमियम के रूप में 93,629 करोड़ रुपये एकत्र करने के बाद 78,616 करोड़ रुपये के बीमा क्लेम का भुगतान किया. यानी कि मात्र 15,013 करोड़ रुपये का लाभ. जो कि किसानों के प्रीमियम के हिस्से से लगभग 2,000 करोड़ रुपये ज्यादा था.

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, भारतीय कृषि बीमा कंपनी (एआईसी), जिसकी पीएम फसल बीमा योजना में सबसे बड़ी उपस्थिति है, उसने 5,565 करोड़ रुपये के दावों का भुगतान किया, जबकि 2023-24 में इसका सकल प्रीमियम संग्रह लगभग 19,490 करोड़ रुपये था.

हर कंपनी के नहीं अच्छे दिन!

एक अंग्रेजी अखबार ‘बिजनेस लाइन’ ने आधिकारिक सूत्रों के हवाले से लिखा कि ऐसा नहीं है कि हर बीमा कंपनी बड़ा लाभ कमा रही है. यह भौगोलिक क्षेत्रों और चुनी गई फसलों पर उसके कारोबार के विस्तार पर निर्भर करता है, क्योंकि कुछ प्रमुख जोखिम वाले क्षेत्र हैं, जहां दावा राशि आमतौर पर अधिक होती है. कंपनियों को अपेक्षाकृत सुरक्षित क्षेत्रों में बीमा लेकर उन जोखिमों की भरपाई करने की जरूरत है.”

2023-24 में, चोला एमएस जब दो साल बाद फसल बीमा व्यवसाय में वापस आई तो 406 करोड़ रुपये का क्लेम वितरित करना पड़ा, जबकि प्रीमियम के रूप में कंपनी ने 526 करोड़ रुपये एकत्र किए थे. इसी तरह ओरिएंटल इंश्योरेंस, जो दो साल तक इस व्यवसाय से दूर रही, उसने 2023-24 में सकल प्रीमियम लगभग 1,912 करोड़ रुपये का एकत्र किया था और 3,360 करोड़ रुपये का भुगतान किया, जिससे ओरिएंटल इंश्योरेंस को भी घाटा हुआ.

क्या है कप और कैप मॉडल?

आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि खरीफ 2023 से सरकार ने कप और कैप मॉडल (80:110 और 60:130) को अनुमति दी है, जिसमें बीमा कंपनियों का लाभ और हानि साझा किया जाता है. इसमें होता ये है कि अगर बीमा कंपनी एक निश्चित सीमा से कम के क्लेम देती है, तो सरकार (केन्द्र और राज्य दोनों) द्वारा सब्सिडी के रूप में कंपनी को भुगतान किया गया प्रीमियम का एक हिस्सा वापस राज्य के खजाने में वापस चला जाता है. वहीं अगर बीमा कंपनी को एक निश्चित सीमा से अधिक के क्लेम देने पड़ें तो, केन्द्र और राज्यों को क्लेम का भुगतान करना जरूरी होता है.

सरकार ने 25 मार्च को संसद में बताया था कि किसानों (19.79 करोड़ आवेदन) को पीएम फसल बीमा योजना के तहत 1,73,938 करोड़ रुपये के क्लेम प्राप्त हुए हैं, जबकि 2016-17 में योजना की शुरुआत के बाद से 2023-24 तक (28 फरवरी तक) 32,476 करोड़ रुपये का प्रीमियम चुकाया गया है. 2024-25 के लिए बीमा क्लेम को अभी अंतिम रूप दिया जाना बाकी है.

इन राज्यों में 100% से अधिक बीमा क्लेम

2018-19 में महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, हरियाणा और छत्तीसगढ़ में फसल नुकसान के कारण बीमा कंपनियों द्वारा एकत्र किए गए प्रीमियम के विरुद्ध किसानों के दावे 100 प्रतिशत से अधिक हो गए, जबकि अखिल भारतीय स्तर पर क्लेम अनुपात (सकल प्रीमियम के विरुद्ध) 75.4 प्रतिशत था. बता दें कि PMFBY और मौसम आधारित फसल बीमा योजना (WBCIS) के तहत किसान रबी फसलों के लिए बीमित राशि का 1.5 प्रतिशत और खरीफ के लिए 2 प्रतिशत का भुगतान करते हैं, जबकि नकदी फसलों के लिए यह 5 प्रतिशत है.

वास्तविक प्रीमियम हर साल बीमा कंपनियों से बोलियों की प्रक्रिया के माध्यम से प्राप्त किया जाता है. इसमें किसानों द्वारा भुगतान की गई राशि से ऊपर की राशि सरकार द्वारा सब्सिडी के तौर पर दी जाती है, जिसे केंद्र और राज्य सरकार 50:50 के आधार पर साझा करती हैं.

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