पांच साल की लंबी निराशा के बाद राजू डायरे को उम्मीद जगी है कि अब उनकी रोजी-रोटी पर छाए संकट के बादल छंट गए हैं। मछुआरे समुदाय आने वाले राजू मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के सारणी जलाशय के नजदीक मछली कांटा बस्ती में रहते हैं। बस्ती में उनके जैसे करीब 250 परिवार हैं। इन सभी की रोजी रोटी जलाशय से मिलने वाली मछली पर टिकी है।बैतूल जिले में 2,800 एकड़ के जलाशय में छोड़े गए विदेशी कीड़े ने 18 महीने में खत्म कर दी सालवीनिया मोलेस्टा नामक आक्रामक खरपतवार प्रजाति
बस्ती के इन मछुआरों के लिए पिछले पांच साल किसी आपदा से कम नहीं गुजरे हैं। आपदा की वजह थी जलाशय में पैठ बना चुकी बेहद आक्रामक विदेशी जलीय खरपतवार जिसे वैज्ञानिक सालवीनिया मोलेस्टा और स्थानीय निवासी चाइनीज झालर के नाम से जानते हैं। स्थानीय लोगों ने विशेषज्ञों की सहायता से चाइनीज झालर की समस्या को कैसे सुलझाया
स्थानीय भाषा में चाइनीज झालर के रूप में बदनाम में यह आक्रामक प्रजाति 2018 में सबसे पहले देखी गई थी और 2019 तक इसने पूरे जलाशय को अपनी आगोश में ले लिया था। यह जलाशय बिजली उत्पादन करने वाली सरकारी कंपनी मध्य प्रदेश पावर जनरेटिंग कंपनी लिमिटेड के अधीन है और जलाशय के किनारे उसका सतपुड़ा ताप विद्युत गृह है। कंपनी के चीफ इंजीनियर वीके कैथवार ने डाउन टू अर्थ को बताया कि सालवीनिया मोलेस्टा का हटना हमारे लिए किसी चमत्कार से कम नहीं है। यह विज्ञान का चमत्कार है।
जबलपुर स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के खरपतवार अनुसंधान निदेशालय (आईसीएआर-डीडब्ल्यूआर) के निदेशक जेएस मिश्र ने डाउन टू अर्थ को बताया कि पहले एनटीपीसी ने हाथ से आक्रामक प्रजाति को हटाने की रणनीति बनाई थी और इस पर करीब 15 करोड़ रुपए खर्च का अनुमान था। यह उपाय कारगर नहीं था क्योंकि इसमें खरपतवार के फिर से आने की आशंका है। मिश्र बताते हैं कि जब कंपनी को पता चला कि एक विदेशी कीट (सिर्टोबेगस सालवीनिया) की मदद से खरपतवार को हटाया जा सकता है तो उन्होंने निदेशालय से संपर्क किया और फिर अप्रैल 2022 से जलाशय में कीट छोड़ने का सिलसिला चला। 15 से 18 महीने में कीट ने अपनी आबादी कई गुणा बढ़ाकर खरपतवार को नष्ट कर दिया।
आईसीएआर-डीडब्ल्यूआर के वैज्ञानिक बताते हैं कि ब्राजील मूल के सालवीनिया मोलेस्टा को खाने वाले बायो एजेंट सिर्टोबेगस सालवीनिया पर गहन शोध के बाद ही इसे भारत लाया गया है और सरकार की अनुमति के बाद इसे खरपतवार पर छोड़ा गया है।
सालवीनिया मोलेस्टा को खाने वाला बायो एजेंट सिर्टोबेगस सालवीनिया खतपतवार के साथ ही खुद भी खत्म हो जाता है
सारणी जलाशय वैज्ञानिकों का सबसे बड़ा और सफल प्रयोग है। निदेशालय सारणी जलाशय में कीट को छोड़ते वक्त पूरी तरह आश्वस्त था कि इससे जलीय खरपतवार को खत्म किया जा सकता है कि क्योंकि उसने नवंबर 2019 में इसकी सफलता का पहला प्रयोग कटनी जिले के पडुआ गांव के एक तालाब पर कर लिया था। करीब 20 हेक्टेयर में फैले इस तालाब से 18 महीने के भीतर कीट ने आक्रामक प्रजाति सालवीनिया मोलेस्टा को पूरी तरह नष्ट कर दिया था।
डाउन टू अर्थ को पडुआ गांव के सरपंच पति राजेश पटेल ने बताया कि तालाब में चाइनीज झालर की इतनी मोटी परत बिछ गई थी कि उससे एक लोटा पानी निकालना भी मुश्किल था। उन्होंने बताया कि इस आक्रामक प्रजाति ने तालाब की जैव विविधता पूरी तरह खत्म कर दी थी। यहां तक कि इसमें एक भी मछली जीवित नहीं बची क्योंकि उन्हें ऑक्सीजन मिलनी बंद हो गई थी।
आईसीएआर-डीडब्ल्यूआर के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक और मध्य भारत में कीट का प्रयोग करने में अग्रणी भूमिका निभाने वाले सुशील कुमार कहते हैं कि प्रति हेक्टेयर 22,500 कीटों को छोड़ने पर अच्छे नतीजे मिलते हैं। इससे 15 महीने में कीट खरपतवार को खा जाते हैं। उनका कहना है कि यह कीट केवल सालवीनिया मोलेस्टा खाकर ही जीवित रहता है। उसके खत्म होते ही कीट खुद ब खुद खत्म हो जाता है। इसका पर्यावरण पर कोई दुष्प्रभाव नहीं है।
सारणी जलाशय से सालवीनिया मोलेस्टा के खत्म होने का सबसे बड़ा फायदा इसके आसपास के दर्जनों गांव के मछुआरों को मिलने लगा है। इन मछुआरों पर पिछले पांच वर्षों से आजीविका का संकट था। बहुत से मछुआरे रोजीरोटी के अभाव में पलायन तक करकर गए थे और आसपास के इलाकों में मजदूरी कर रहे थे।
सारणी मछली समिति के अध्यक्ष राजू डायरे डाउन टू अर्थ को बताते हैं कि हमने 2018 में 10 साल के लिए मछली पकड़ने का ठेका लिया था। उस समय कहीं-कहीं सालवीनिया मोलेस्टा थी लेकिन 2019 तक इसने पूरे जलाशय पर कब्जा कर लिया। इसने सभी मछलियां खत्म कर दीं क्योंकि उन्हें रोशनी और ऑक्सीजन मिलनी बंद हो गई। राजू कहते हैं कि अब जलाशय साफ है तो मछुआरों की रोजी रोटी फिर से मिलने की उम्मीद है। वह कहते हैं कि जलाशय में मछलियों के बीज छोड़ने के बाद उम्मीद है कि अगले साल से उनकी कमाई का साधन अपनी पुरानी रंगत में लौट आएगा।