केंद्र सरकार इथेनॉल तैयार करने के लिए मक्का उत्पादन बढ़ाने की कोशिश में जुटी हुई है. इसके लिए ने एक बड़ी जिम्मेदारी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेज रिसर्च (IIMR) को दी है. इसके लिए ‘इथेनॉल उद्योगों के जलग्रहण क्षेत्र में मक्का उत्पादन में वृद्धि’ नामक प्रोजेक्ट शुरू किया गया है. केंद्र सरकार ने 2025-26 तक पेट्रोल में 20 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य रखा है. इथेनॉल का उत्पादन गन्ना, मक्का और टूटे चावल से प्रमुख तौर पर होता है. लेकिन गन्ने और धान की फसल में ज्यादा पानी की खपत होती है, जबकि मक्का में बहुत कम पानी लगता है. इसलिए इथेनॉल के लिए मक्के का उपयोग पर फोकस किया जा रहा है. नई तकनीकों और किस्मों से उत्पादकता बढ़ाने की कोशिश हो रही है.
आईआईएमआर 15 राज्यों के 78 जिलों के 15 जलग्रहण क्षेत्रों में सर्वोत्तम प्रबंधन प्रथाओं और उन्नत किस्मों का प्रसार करके मक्का उत्पादन बढ़ाने के लिए काम कर रहा है. कृषि मंत्रालय ने भी अगले पांच वर्षों में मक्का उत्पादन में 10 मिलियन टन की वृद्धि करने का लक्ष्य रखा है. इस प्रोजक्ट को लीड कर रहे आईआईएमआर के वरिष्ठ मक्का वैज्ञानिक डॉ. एसएल जाट का कहना है कि मक्का से इथेनॉल उत्पादन की तकनीकें उपलब्ध हैं और इसकी बेहतर दक्षता के लिए भारतीय संदर्भ के लिए आगे सुधार किए जा रहे हैं.
उत्पादन बढ़ाने की कोशिश
- उच्च उपज देने वाली संकर किस्में (खरीफ में 5 टन/हेक्टेयर से अधिक और रबी में 10 टन/हेक्टेयर से अधिक) विविध पारिस्थितिकी में खेती के लिए उपलब्ध हैं.
- बेहतर इथेनॉल रिकवरी (40% से अधिक) वाली मोमी मक्का संकर की कुछ किस्में पाइपलाइन में हैं और कुछ खेती के लिए उपलब्ध हैं.
- ज्यादा स्टार्च (65% से अधिक) संकर किस्में पाइपलाइन में हैं. बेहतर मक्का की खेती के लिए प्रभावी पोषक तत्व और खरपतवार प्रबंधन पद्धतियां भी उपलब्ध हैं.
- चावल और गन्ने की तुलना में मक्का तैयार होने की अवधि कम होती है. इसलिए मक्के की खेती इथेनॉल के लिए सबसे ठीक है.
- कितना है उत्पादन
आईआईएमआर के अनुसार 2022-23 के दौरान देश में 38.09 मिलियन टन मक्का का उत्पादन हुआ है. जिसमें खरीफ सीजन के दौरान 23.67, रबी सीजन में 11.69 और जायद में 2.73 मिलियन टन उत्पादन शामिल है.
उपज बढ़ाना जरूरी
इस समय मक्के की राष्ट्रीय औसत उत्पादकता 1.44 टन प्रति एकड़ है. रबी सीजन में सबसे ज्यादा 2.17 टन प्रति एकड़ की उत्पादकता है. जबकि खरीफ सीजन में 1.19 टन ही उत्पादकता है. आईआईएमआर के वैज्ञानिकों के अनुसार किसानों के खेत में संभावित औसत उपज बढ़ सकती है. यह खरीफ सीजन में 2.0 से 2.5 टन प्रति एकड़, रबीमें 3.0 से 3.5 और जायद में 2.5-3 टन प्रति एकड़ तक हो सकती है. नई किस्मों और तकनीकों के माध्यम से संस्थान ऐसा करने की कोशिश कर रहा है.
इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मेज रिसर्च (IIMR) के निर्देशक डॉ. हनुमान सहाय जाट का कहना है कि भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान इथेनॉल को बढ़ावा देने के लिए 78 जिलों में कम से कम एक साल में दो बार मक्के की खेती के लिए काम कर रहे हैं और नई किस्मों को विकसित कर रहे हैं.
इसमें राज्य सरकार और निजी बीज़ कंपनियों के साथ काम मिलकर किया जा रहा है. इसके अलावा संस्थान उच्च उपज और हर क्लाइमेट में अच्छ उत्पादन देने वाली किस्मों को विकसित में जुटा है. बायो एथेनॉल उत्पादन की प्रक्रिया को बनाने के संबंध में भी अनुसंधान किया जा रहा है.