केले की खेती आम तौर पर किसानों के लिए काफी फायेमंद मानी जाती है. इसके खेती में कम लागत और मेहनत से किसान अच्छी कमाई कर सकते है.केला की खेती की खेती में आम के आम गुठलियों के दाम वाली कहावत भी चरितार्थ होती होती है. पर इसके लिए आपको जानकारी होनी चाहिए. क्योंकि केले की खेती में सिर्फ फल ही नहीं फल, फूल पत्ते और तनों से भी कमाई की जा सकती है. आमतौर पर केला तोड़ने के बाद किसान उसके तने को काटकर खेत में ही छोड़ दते हैं. पर यही तना किसानों के लिए मोटी कमाई का जरिया बन सकता है. बस इसके लिए थोड़ी सी मेहनत करने की जरुरत होती है और आम इससे मोटी कमाई कर सकते हैं.
केले के तने से उच्च क्वालिटी का जैविक खाद बनाया जा सकता है. रिपोर्ट्स के मुताबिक केले के तने से जैविक खाद बनाने के लिए सबसे पहले एक गड्ढा खोदा जाता है. इस गड्ढे में केले के तने को डाल दें. इसके बाद इसमे इसे गोबर से ढंक और फिऱ इसमें खरपतवार डाल दें. फिर इसमें डिकंपोजर का छिड़काव करें और कुछ दिनों के लिए छोड़ दें. इसके कुछ ही दिनों के बाद एक बेहतरीन जैविक खाद बनकर तैयार हो जाता है. किसान इस खाद का इस्तेमाल अपने खेतों में करके अच्छा उत्पादन हासिल कर सकते हैं. इतना ही नहीं इस खाद का को किसान बेचकर भी अच्छी कमाई हासिल कर सकते हैं.
बनती है अच्छी जैविक खाद
गौरतलब है कि केला की खेती करने वाले किसानों के सामने इसके विशाल बॉयोमास को फेंकने की या इसका निपटान करने की एक बड़ी चुनौती होती है. इसलिए इसमें वैल्यू एडिशन करने के बारे में सोचा गया फिर डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने पिछले वर्ष केंद्रीय कृषि विद्यालय की वित्तीय घोषणा परियोजना के तहत एक कार्य समूह बनाकर इस परियोजना पर काम करना शुरू किया गया.इसके बाद इससे बनाए गए जैविक खाद के व्यवसाय और इस्तेमाल के सफल परिणाम सामने आये हैं . सिकुड़े हुए तने से रेशे निकालकर इसका उपयोग नेट हेड, गार्डन बास्केट, कैलेंडर आदि के रूप में किया जा सकता है.
भारत में केले का उत्पादन
आपको बता दें कि साल 2020 और 2021 के आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में 35.32 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में केला उगाया जाता है, जिससे कुल उत्पादन 1612.56 हजार टन होता है. बिहार की उत्पादकता 45.66 टन प्रति हेक्टेयर है. भारत में केले की उत्पादकता का 90% से अधिक घरेलू स्तर पर पाया जाता है. फल के रूप में उपभोग की जाने वाली किस्म का अनुमान है कि केवल 2.50% ही किले में है. जैविक खाद व्यवसाय के तहत बिहार में लगभग चार लाख लोग केले की खेती, रख-रखाव और परिवहन पर अपना जीवन यापन करते हैं.