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सही ढंग से किसानों की समस्याएं दिखाने 9 फ़िल्में

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अन्न दुनिया की सबसे कीमती चीज है. इस अन्न के लिए ही तो तमाम दुनिया दिन रात मेहनत कर रही है. दुनिया जिस पैसे के लिए भागती फिर रही है ये अन्न उस पैसे से भी कीमती है. आप पैसे से कुछ भी खरीद सकते हैं लेकिन पैसा खा कर भूख नहीं मिटा सकते. सोचिए जब ये अन्न इतना कीमती है तो इसे उपजाने वाला किसान कितना अमीर होगा लेकिन अफसोस कि किसान की हालत साल दर साल खराब ही होती जा रही है.

अगर ऐसा ना होता तो किसान अपने बच्चे को खेत बेच कर बाहर पढ़ने क्यों भेजता, क्यों ना वो उससे खेतों में ही काम करवाता. वो जानता है कि कृषि और किसान दोनों की हालत सही नहीं है. इन किसानों के संघर्ष को सिनेमा ने लोगों तक पहुंचाने की कोशिश भी की है. किसानों पर कई ऐसी फिल्में बन चुकी हैं जिन्हें देखने के बाद आप समझ सकेंगे कि एक किसान देश का पेट भरने के लिए क्या कुछ सहता है. तो चलिए आज आपको बताते हैं कुछ ऐसी फिल्मों के बारे में जिसके द्वारा किसानों कि स्थिति दर्शाने की बहुत बेहतरीन कोशिश की गई है :

1. दो बीघा जमीन 

एक किसान के लिए उसकी ज़मीन मां समान होती है. वो अपनी जान दे सकता है, लेकिन अपनी जमीन को किसी और के हाथों में जाते हुए नहीं देख सकता. ऐसे में जब उस किसान से जबरदस्ती उसकी ज़मीन छीन ली जाती है तब उसे कैसा लगता होगा? अगर आपको ये महसूस करना है तो आपको बिमल रॉय द्वारा निर्देशित फिल्म दो बीघा ज़मीन देखनी चाहिए. 1953 में बनी ये फिल्म किसानों के विषय पर बनी पहली फिल्म थी.

बलराज साहनी तथा निरूपा रॉय जैसे कलाकारों की मौजूदगी ने इस फिल्म को एक अलग ही स्तर तक पहुंचा दिया. यह फिल्म रवींद्रनाथ  टैगोर द्वारा लिखित बंगाली उपन्यास दुई बीघा जोमी पर आधारित थी । यह फिल्म गरीब किसानों पर साहूकारों के अन्याय की कहानी कहती है.आप इस शानदार फिल्म को यूट्यूब पर मुफ़्त में देख सकते हैं. 

2. मंथन 

यह फिल्म उन किसानों की कहानी है जो खेती के साथ साथ पशुपालन कर के अपने परिवार का पेट भरते हैं. श्याम बेनेगल जैसे मंझे हुए निर्देशक के निर्देशन में बनी इस फिल्म की कहानी लिखी थी खुद श्याम बेनेगल ने तथा इस फिल्म के संवाद फूटे थे कैफ़ी आज़मी की कलम से । यह फिल्म गिरीश करनाड, नसीरुद्दीन शाह, अमरीश पुरी, तथा स्मिता पाटिल आदि जैसे बेहतरी कलाकारों के अभिनय से सजी हुई थी.

इस फिल्म की सबसे खास बात यह है कि यह सिनेमा की इकलौती ऐसी फिल्म है जिसमें पांच लाख किसानों और पशुपालकों का पैसा लगा था. कहते हैं फिल्म बनाने के लिए किसानों ने दो-दो रुपए का चंदा दिया था.    

3. गाभ्रीचा पाऊस   

हिंदी सिनेमा की बात करें तो आपको किसानों के मुद्दे पर बनी उतनी फिल्में देखने को नहीं मिलेंगी जितनी अन्य विषयों पर बनती हैं लेकिन इंडियन सिनेमा में बनी अन्य भाषा की फिल्में इस कमी को पूरा कर देती हैं. गाभ्रीचा पाऊस मराठी भाषा की ऐसी फिल्म है जो हमें एक ऐसे डर से रू ब रू कराती है जो अमूमन हर किसान और उसके परिवार वालों के मन में घर कर के बैठा होता है. 

यह एक ऐसे किसान की कहानी है जो बहुत परेशान है और उसकी परेशानी का कारण है बारिश ना होना. उसके गाँव में कई सालों से बारिश नहीं हुई जिस वजह से वो खेती नहीं कर पा रहा. उसकी ये परेशानी उसके परिवार वालों के मन में एक अनजान सा डर पैदा करती है. उन्हें लगता है कि कहीं किसान अपनी परेशानी से तंग आ कर आत्महत्या ना कर ले.

इसी डर की वजह से उसके परिवार वाले ये फैसला करते हैं कि वो उस किसान को कभी अकेला नहीं छोड़ेंगे और हमेशा उसे खुश रखने की कोशिश करेंगे. फिल्म के मुख्य किरदार को देखने के बाद आपका दिमाग एक बार सोचेगा कि इसे पहले कहाँ देखा है तो हम पहले ही आपको बता देते हैं कि इस फिल्म में मुख्य भूमिका निभाई है गिरीश कुलकर्णी. 

 गिरीश को चर्चित वेबसीरीज़ सेक्रेड गेम्स में भोसले भाऊ के किरदार में देखा जा चुका है. यह फिल्म आप डिज़्नी हॉटस्टार पर देख सकते हैं. 

4. मेर्कू थोडारची मालाई 

एक मजदूर दूसरों के खेतों में काम करते हुए एक ही सपना देखता है और वो ये कि एक दिन उसका खुद का खेत होगा जहां वो अपनी मेहनत से फसल उपजाएगा. तमिल भाषा की ये फिल्म भी ऐसे ही एक मजदूर की कहानी है. ये बेघर मजदूर लोगों का सामान सिर पर ढो कर एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाता है. इस मजदूर का भी यही सपना है कि इसके पास अपनी जमीन हो. 

वो पैसे भी जमा करता है लेकिन गाँव के जमींदार उसका सपना पूरा नहीं होने देना चाहते. अब उसका सपना पूरा हो पाता है या नहीं ये तो आप फिल्म देखने के बाद ही जान पाएंगे. इस फिल्म को देखे जाने की एक और खास वजह है और वो ये कि इसके निर्माता हैं तमिल सिनेमा के सुपर स्टार विजय सेथुपति. 

विजय के लिए ये कहा जाता है कि वह साधारण कहानी नहीं चुनते इसीलिए अगर उन्होंने इस फिल्म को चुना है तो निश्चित ही इसमें कुछ खास बात होगी. आप इस फिल्म को नेटफ़्लिक्स पर देख सकते हैं.

5. मदर इंडिया 

इस फिल्म से भला कौन परिचित नहीं होगा. सिनेमा के बड़े पर्दे पर पहली बार नारी सशक्तिकरण का एक प्रबल उदाहरण इसी फिल्म द्वारा दिखाया गया था. भारत द्वारा ऑस्कर के लिए भेजी गई यह पहली फिल्म थी. इसे ऑस्कर के लिए नॉमिनेट भी किया गया, लेकिन कुछ कारणों से यह फिल्म एक वोट कम मिलने की वजह से ऑस्कर ना जीत पाई.

फिल्म में एक मां से लेकर किसान तक के जीवन के संघर्ष को बेहतरीन ढंग से दर्शाया गया है. फिल्म के निर्देशक महबूब खान इसी नाम और इसी कहानी पर पहले भी एक फिल्म बना चुके थे लेकिन वह अपनी उस फिल्म से संतुष्ट नहीं थे । अगली बार जब उन्होंने फिल्म बनाई तो पूरे कास्ट को बदल दिया सिवाए लाला  सुखीलाल का किरदार निभाने वाले कन्हैयालाल के. 

अगर आपने यह फिल्म अभी तक नहीं देखी तो आप इसे यूट्यूब पर देख सकते हैं.

6. उपकार 

उपकार अपने समय की सबसे सफल फिल्मों में से एक है. कहा जाता है कि उस समय के सुपरस्टार मनोज कुमार जो कि तब भारत कुमार के नाम से जाने जाते थे ने यह फिल्म तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के आग्रह पर बनाई थी. शास्त्री जी चाहते थे कि मनोज कुमार जय जवान जय किसान विषय पर कोई फिल्म बनाएं.

हैरानी की बात तो ये है कि मनोज ने दिल्ली से मुंबई की रेल यात्रा के दौरान मात्र 24 घंटे में यह फिल्म लिख डाली थी. इस फिल्म में एक किसान का देश के प्रति प्रेम दर्शाया गया है. एक किसान से ज्यादा भला इस देश के प्रति और कौन वफादार हो सकता है. वो अपनी सारी ज़िंदगी इसी देश की मिट्टी में बिता देता है. खूबसूरत संदेश से सजी इस फिल्म को दर्शकों ने खूब सराहा था. आप इस फिल्म को यूट्यूब पर देख सकते हैं.     

7. पीपली लाइव 

एक किसान देश का अन्नदाता है. वो खेतों में पसीना बहाता है, तब हमें खाने को अनाज मिलता है, लेकिन आज भी सबसे बड़ा अफसोस यही है कि इस अन्नदाता के जीवन का कोई खास मोल नहीं है. पीपली लाइव ऐसे ही सिस्टम पर बनी एक हास्य-व्यंग्य फिल्म है. ऐसा व्यंग्य, जो हंसाते गुदगुदाते हुए आपको अंदर तक भेद देता है.

फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे एक किसान की आत्महत्या पर राजनीति करने वाले अपनी रोटियां सेकते हैं और कैसे सरकार उसको मुआवज़ा देने से बचती फिरती है. ये फिल्म आप नेटफ़्लिक्स पर देख सकते हैं.

8. कड़वी हवा 

कड़वी हवा हिंदी सिनेमा की उन फिल्मों में से है जिनके साथ नाइंसाफी हुई. इतनी शानदार फिल्म को ना तो लोगों तक सही से पहुंचाया गया और ना ही लोगों ने इस फिल्म के साथ न्याय किया. यह फिल्म कहानी है एक ऐसे गांव की जो सालों से सूखे की मार झेल रहा है. यहां किसानों का खुदखुशी करना एक आम बात हो गई है.

इसी गाँव के एक बूढ़े बाबा हैं जो देख नहीं सकते. उन्हें हर समय ये डर लगा रहता है कि उनका बेटा भी इस सूखे और कर्जे से तंग आ कर आत्महत्या कर लेगा. फिल्म में संजय मिश्रा की अदाकारी ने यह साबित कर दिया है कि हमारे पास कलाकारों की कमी नहीं है बल्कि कमी है तो बस इसे समझने वालों की. किसानों का दर्द बयान करती इस फिल्म को आप ज़ी 5 पर देख सकते हैं.   

9. नीरोज़ गेस्ट्स

यह कोई फिल्म नहीं बल्कि एक डॉक्यूमेंटरी है. एक सवाल हर किसी के जहन में उठता है कि आखिर किसान आत्महत्या क्यों करता है? फिल्में देख कर, खबरें पढ़ कर, या बातें सुन कर हम सब अलग अलग अंदाजे लगा लेते हैं लेकिन हम में से बहुतों को नहीं पता होगा कि किसान की आत्महत्या का असल कारण क्या है. 

नीरोज़ गेस्ट्स ऐसी ही एक डॉक्यूमेंटरी है जो देश के किसानों की सही हालत और उनके आत्महत्या करने की वजह हमें बताती है. इस डॉक्यूमेंटरी में हैं देश के जाने माने पत्रकार पी साईनाथ. इससे ये समझने में आसानी होगी कि आखिर सरकार की योजनाओं का इन किसानों पर क्या असर पड़ता है और क्यों ये किसान अपनी जीवनलीला समाप्त कर लेते हैं. इस डॉक्यूमेंटरी को आप यूट्यूब पर देख सकते हैं.

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