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वर्मीकम्पोस्ट बनाने की विधियाँ

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डॉ. शाहिना तबस्सुम

क्यारियों को भरने के लिए पेड़-पौधों की पत्तियाँ, घास, सब्जी व फलों के छिलके, गोबर आदि अपघटनशील कार्बनिक पदार्थों का चुनाव करते हैं। इन पदार्थों को क्यारियों में भरने से पहले ढेर बनाकर 15 से 20 दिन तक सड़ने के लिए रखा जाना आवश्यक है। सड़ने के लिए रखे गये कार्बनिक पदार्थों के मिश्रण में पानी छिड़क कर ढेर को छोड़ दिया जाता है। 15 से 20 दिन बाद कचरा अधगले रूपमें आ जाता है। ऐसा कचरा केंचुओं के लिए बहुत ही अच्छा भोजन माना गया है। 

 सामान्य विधि :

वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए इस विधि में क्षेत्र का आकार आवश्यकतानुसार रखा जाता है किन्तु मध्यम वर्ग के किसानों के लिए 100 वर्गमीटर क्षेत्र पर्याप्त रहता है। अच्छी गुणवत्ता की केंचुआ खाद बनाने के लिए सीमेन्ट तथा ईटों से पक्की क्यारियां बनाई जाती हैं। प्रत्येक क्यारी की लम्बाई 3 मीटर, चौड़ाई 1 मीटर एवं ऊँचाई 30 से 50 सेमी० रखते हैं। 100 वर्गमीटर क्षेत्र में इस प्रकार की लगभग 90 क्यारियां बनाई जा सकती है। क्यारियों को तेज धूप व वर्षा से बचाने और केंचुओं के तीव्र प्रजनन के लिए अंधेरा रखने हेतु छप्पर और चारों ओर मल से हरे नेट से ढकना अत्यन्त आवश्यक है।

क्यारियों को भरने के लिए पेड़-पौधों की पत्तियाँ, घास, सब्जी व फलों के छिलके, गोबर आदि अपघटनशील कार्बनिक पदार्थों का चुनाव करते हैं। इन पदार्थों को क्यारियों में भरने से पहले ढेर बनाकर 15 से 20 दिन तक सड़ने के लिए रखा जाना आवश्यक है। सड़ने के लिए रखे गये कार्बनिक पदार्थों के मिश्रण में पानी छिड़क कर ढेर को छोड़ दिया जाता है। 15 से 20 दिन बाद कचरा अधगले रूप (Partially decomposed) में आ जाता है। ऐसा कचरा केंचुओं के लिए बहुत ही अच्छा भोजन माना गया है। 

अधगले कचरे को क्यारियों में 50 सें०मी० ऊँचाई तक भर दिया जाता है। कचरा भरने के 3-4 दिन बाद प्रत्येक क्यारी में केंचुऐ छोड़ दिए जाते हैं और पानी छिड़क कर प्रत्येक क्यारी को गीली बोरियो से ढक देते है। एक टन कचरे से 0.6 से 0.7 टन केंचुआ खाद प्राप्त हो जाती है।

 चक्रीय चार हौद विधि : 

इस विधि में चुने गये स्थान पर12’x12’x2.5′ (लम्बाई x चौड़ाई x ऊँचाई) का गड्ढा बनाया जाता है। इस गड्ढे को ईंट की दीवारों से 4 बराबर भागों में बाँट दिया जाता है। इस प्रकार कुल 4 क्यारियां बन जाती हैं। प्रत्येक क्यारी का आकार लगभग 5.5′ x 5.5′ x 2.5′ होता है। बीच की विभाजक दीवार मजबूती के लिए दो ईंटों (9 इंच) की बनाई जाती है। विभाजक दीवारो में समान दूरी पर हवा व केंचुओं के आने जाने के लिए छिद्र छोड़े जाते हैं। इस प्रकार की क्यारियों की संख्या आवश्यकतानुसार रखी जा सकती है।

इस विधि में प्रत्येक क्यारी को एक के बाद एक भरते हैं अर्थात पहले एक महीने तक पहला गड्ढा भरते हैं पूरा गड्ढा भर जाने के बाद पानी छिड़क कर काले पॉलीथिन से ढक देते हैं ताकि कचरे के विघटन की प्रक्रिया आरम्भ हो जाये। इसके बाद दूसरे गड्ढे में कचरा भरना आरम्भ कर देते हैं। दूसरे माह जब दूसरा गड्ढा भर जाता है तब ढक देते हैं और कचरा तीसरे गड्ढे में भरना आरम्भ कर देतें है। इस समय तक पहले गड्ढे का कचरा अधगले रूप में आ जाता है। एक दो दिन बाद जब पहले गड्ढे में गर्मी (heat) कम हो जाती है तब उसमें लगभग 5 किग्रा0 (5000) केंचुए छोड़ देते हैं। इसके बाद गड्ढे को सूखी घास अथवा बोरियों से ढक देते हैं। कचरे में गीलापन बनाये रखने के लिए आवश्यकतानुसार पानी छिड़कते रहते है। इस प्रकार 3 माह बाद जब तीसरा गड्ढा कचरे से भर जाता है तब इसे भी पानी से भिगो कर ढक देते हैं और चौथे गड्ढे में कचरा भरना आरम्भ कर देते हैं। धीरे-धीरे जब दूसरे गड्ढे की गर्मी कम हो जाती है तब उसमें पहले गड्ढे से केंचुए विभाजक दीवार में बने छिद्रों से अपने आप प्रवेश कर जाते हैं और उसमें भी केंचुआखाद बनना आरम्भ हो जाता है। इस प्रकार चार माह में एक के बाद एक चारों गड्ढे भर जाते हैं। इस समय तक पहले गड्ढे में जिसे भरे हुए तीन माह हो चुके है, केंचुआ खाद (वर्मीकम्पोस्ट) बनकर तैयार हो जाता है। इस गड्ढे के सारे केंचुए दूसरे एवं तीसरे गड्ढे में धीरे-धीरे बीच की दीवारों में बने छिद्रों द्वारा प्रवेश कर जाते हैं। अब पहले गड्ढे से खाद निकालने की प्रक्रिया आरम्भ की जा सकती है। खाद निकालने के बाद उसमें पुनः कचरा भरना आरम्भ कर देते हैं। इस विधि में एक वर्ष में प्रत्येक गड्ढे में एक बार में लगभग 10 कुन्तल कचरा भरा जाता है जिससे एक बार में 7 कुन्तल खाद (70 प्रतिशत) बनकर तैयार होता है। इस प्रकार एक वर्ष में चार गड्ढों से तीन चक्रों में कुल 84 कुन्तल खाद (4x3x7) प्राप्त होता है। इसके अलावा एक वर्ष में एक गड्ढे से 25 किग्रा0 और 4 गड्ढों से कुल 100 किग्रा0 केंचुए भी प्राप्त होते हैं।

 केंचुआ खाद बनाने की चरणबद्ध विधि

केंचुआ खाद बनाने हेतु चरणबद्ध निम्न प्रक्रिया अपनाते हैं।

कम समय में अच्छी गुणवत्ता वाली वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए निम्न बातों पर विशेष ध्यान देना अति आवश्यक है ।

  1.  वर्मी बेडों में केंचुआ छोड़ने से पूर्व कच्चे माल (गोबर व आवश्यक कचरा) का आंशिक विच्छेदन (Partial decomposition) जिसमें 15 से 20 दिन का समय लगता है करना अति आवष्यक है।
  2. आंशिक विच्छेदन की पहचान के लिए ढेर में गहराई तक हाथ डालने पर गर्मी महसूस नहीं होनी चाहिए। ऐसी स्थिति में कचरे की नमीं की अवस्था में पलटाई करने से आंशिक विच्छेदन हो जाता है।
  3.  वर्मीबेडों में भरे गये कचरे में कम्पोस्ट तैयार होने तक 30 से 40 प्रतिशत नमी बनाये रखें। कचरे में नमीं कम या अधिक होने पर केंचुए ठीक तरह से कार्य नही करतें।
  4.  वर्मीबेडों में कचरे का तापमान 20 से 27 डिग्री सेल्सियस रहना अत्यन्त आवश्यक है। वर्मीबेडों पर तेज धूप न पड़ने दें। तेज धूप पड़ने से कचरे का तापमान अधिक हो जाता है परिणामस्वरूप केंचुए तली में चले जाते हैं अथवा अक्रियाशील रह कर अन्ततः मर जाते हैं।
  5.  वर्मीबेड में ताजे गोबर का उपयोग कदापि न करें। ताजे गोबर में गर्मी (Heat) अधिक होने के कारण केंचुए मर जाते हैं अतः उपयोग से पहले ताजे गोबर को 4-5 दिन तक ठण्डा अवश्य होने दें।
  6.  केंचुआ खाद तैयार करने हेतु कार्बनिक कचरे में गोबर की मात्रा कम से कम 20 प्रतिशत अवश्य होनी चाहिए।
  7.  कांग्रेस घास को फूल आने से पूर्व गाय के गोबर में मिला कर कार्बनिक पदार्थ के रूप में आंशिक विच्छेदन कर प्रयोग करने से अच्छी केंचुआ खाद प्राप्त होती है।
  8.  कचरे का पी. एच. उदासीन (7.0 के आसपास) रहने पर केंचुए तेजी से कार्य करते हैं अतः वर्मीकम्पोस्टिंग के दौरान कचरे का पी. एच. उदासीन बनाये रखे। इसके लिए कचरा भरते समय उसमें राख (ash) अवश्य मिलायें।
  9.  केंचुआ खाद बनाने के दौरान किसी भी तरह के कीटनाशकों का उपयोग न करें।
  10.  खाद की पलटाई या तैयार कम्पोस्ट को एकत्र करते समय खुरपी या फावड़े का प्रयोग कदापि न करें। इन यंत्रों के प्रयोग से केंचुओं के कट कर मर जाने की सम्भावना बनी रहती है।
  11.  कचरे में से काँच के टुकड़े, कील, पत्थर, प्लास्टिक, पोलीथीन आदि को छाँट कर अलग कर दें।
  12.  केंचुओं को चिड़ियों, दीमक, चींटियों आदि के सीधे प्रकोप से बचाने के लिए क्यारियों के कचरे को बोरियो से अवश्य ढकें।
  13.  केंचुए को अंधेरा अति पसंद है अतः वर्मी बैंड को हमेशा टाट बोरा/सूखी घास-फूस इत्यादि से ढक कर रखना चाहिए।
  14. केंचुए के अधिक उत्पादन हेतु बेड में नमी 30 से 35 प्रतिशत तथा केंचुआ खाद के अधिक उत्पादन के लिए नमीं 20 से 30 प्रतिशत के बीच रखनी चाहिए।
  15.  वर्मीबेड में नमीं की मात्रा 35 प्रतिशत से अधिक होने से वायु संचार में कमीं हो जाती है जिसके कारण केंचुए बेड की ऊपरी सतह पर आ जाते हैं।
  16.  अच्छी वायु संचार के लिए वर्मी बेड में प्रत्येक सप्ताह कम से कम एक बार पंजा चलाना चाहिए जिससे केंचुओं को वर्मी कम्पोस्ट बनाने हेतु उपयुक्त वातावरण मिल सके।
  17. केंचुओं के अधिक उत्पादन हेतु बेड पर केंचुआ छोंड़ने के समय 500 मि.ली. मट्ठा/500 मि. ली. शीरे को 5 से 10 लीटर पानी में घोलकर प्रति बैड पर छिड़काव करने से केंचुओं का प्रजनन तथा कम्पोस्टिंग तेजी के साथ होता है।
  18.  बोकाशी का मिश्रण जिसमें गेहूँ की भूसी, चने का छिलका / पाउडर एवं नीम / सरसों की खली के समान मिश्रण की 500 ग्राम मात्रा 5 से 10 लीटर पानी में घोलकर प्रति बैड पर छिड़कने से केंचुओं की प्रजनन बढ़ाई जा सकती है।
  19. केंचुओं की अच्छी बढ़वार एवं गुणवत्तायुक्त उत्पादन के लिए वर्मी शैडों में अंधेरा, नमी, वायु संचार, आंशिक रूप से विच्छेदित कचरा, नियमित देखभाल तथा अच्छा प्रबंधन होना अति आवश्यक है।
  20.  केंचुआ खाद में प्रयुक्त कृषि अवशेषों के तीव्र विच्छेदन (डिकम्पोजीशन) के लिए गाय के गोबर की स्लरी या ट्राईकोडर्मा पाउडर 50 से 100 ग्राम मात्रा प्रति बेड में मिला सकते हैं।
  21.  यदि पौधों व जानवरों के अवशेष के अतिरिक्त कोई प्रोसेस किए हुए कार्बनिक अवशेष का प्रयोग करना है तो केचुओं को धीरे-धीरे नयी माध्यम सामग्री पर अपने को ढ़ालने एवं स्वीकार करने के लिए गाय के गोबर के साथ भिन्न-भिन्न अनुपातों में मिला कर देना चाहिए।
  22.  सब्जी आदि के अवशेषों में यदि कीट आदि के प्रकोप होने व उसके अंडे लार्वा होने का अंदेशा है तो नीम आधारित कीटनाशक का 100 मि.ली. घोल 5 से 10 किलो व्यर्थ पदार्थ की दर से डिकम्पोजीशन से पूर्व छिड़काव कर सकते हैं।
  23.  एजोटोबेक्टर तथा पी.एस.बी. पाउडर जो कि विच्छेदन के कार्य में सहायक है 50 से 100 ग्राम मात्रा प्रति बेड में शुरूआत में ही छिड़क कर मिलाने से खाद जल्दी परिपक्व होती है।
  24.  अच्छे प्रजनन हेतु बेड का तापक्रम 25 से 32 डिग्री के बीच होना चाहिए।
  25.  वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए हमेंशा ऊँचे स्थान का चुनाव करें।
  26. केंचुए को लाल चींटियों से बचाने के लिए चारकोल पाउडर का छिड़काव किया जा सकता है।

स्रोत-  राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र 

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