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बीज निरीक्षक एवं लाइसेंसिंग प्राधिकारी जिम्मेदार क्यों नहीं ?

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बीज कृषि का प्रधान अदान है अतः उसका चरित्रवान होना आवश्यक है। बीज की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए बीज कानून जैसे बीज अधिनियम 1966, बीज नियम-1968, बीज नियन्त्रण आदेश-1983, भारतीय न्यूनतम बीज प्रमाणीकरण मानक में बीज निरीक्षक एवं बीज लाइसेंसिंग प्राधिकारी को अपार शक्तियाँ दी गई हैं जिससे बीज की गुणवत्ता उत्तम ही नहीं उत्तमोत्तम बनाए रखा जाए।

1. अमानक बीज के प्रति दण्ड :-

अमानक बीज बेचने वाले व्यक्ति को कठोरत्तम दण्ड दिया जाना चाहिए। किसान को अमानक बीज उपलब्ध करवाना उसे आत्म हत्या के लिए प्रेरित करना है। जिस हसरत से किसान धरती का सीना चीर कर उत्पादन करना चाहता है उसे उत्तम बीज नहीं मिलता। अतः कहा गया है:-

अबीजम् विक्रयीचैवः बीजोत्कृष्ठतम तथैवः चः मर्यादा भेदम कश्चैवः विक्रताम् वाप्नुयाद्विधम् ।

अर्थात अबीज यानि चरित्रहीन बीज विक्रय करना या अबीज को उत्तकृष्ठतम बता कर बेचने वाला व्यक्ति सामाजिक मर्यादाओं का उलंघन करता है और ऐसे व्यक्ति के अंग भंग कर देने चाहिए। यह राजशाही के समय की परिस्थितियाँ थी परन्तु वर्तमान गणतन्त्र शासन व्यवस्था में अंग-भंग नहीं किया जा सकता परन्तु बीज कानूनों के तहत कठोरत्तम दण्ड दिया जाना चाहिए। दण्ड ऐसा हो कि दूसरे बीज व्यापारी भी सबक लें और अमानक बीज उत्पन्न करने का साहस न कर सके। बीज उत्पादन बीज विक्रय में कहीं कोई उलंघन होता है तो बीज निरीक्षक / लाइसेंसिंग अथॉर्टी तुरन्त बीज व्यापारी को कारण बताओ नोटिस जारी करते हैं उससे हमेशा असन्तुष्ट होकर न्यायालय में वाद डाल देते हैं और व्यापारी अपने कौशल से निर्दोष निकल आता है परन्तु न्यायालय की थका देने वाली कार्यप्रणाली व्यापारी के जीवन को 8-10 साल के लिये नारकीय बना देती है। कई विवादें में उसे न्यायालय से दण्ड भी मिलता है।

2. अधिकारी जिम्मेदार क्यों नहीं :-

बीज विक्रेता या अन्य कृषि आदान विक्रेता गलती करे तो उसे अवश्य कठोरत्तम दण्ड दिया जाए परन्तु उन अधिकारियों को भी दण्ड दिया जाए जिन्होंने बीज या कृषि आदानों के अन्य कानूनों के बाहर जाकर अपनी ना समझी से, विद्वेषवश पूर्ण व्यवहार से व्यापारी के विरूद्ध कार्यवाही की। यदि अधिकारियों को भी उनकी गलती के लिये उत्तरदायी माना जाए तो न्यायालयों में बीज, उर्वरक, कीटनाशी के विवादों की संख्या एक चौथाई रह जायेगी।

Protection of action taken in good faith :-

प्रत्येक अधिनियम में निरीक्षक भय रहित कार्य कर सके उनके विरूद्ध कोई वाद न कर सके इसलिए सही नियत Good faith में किए गये कार्यों के प्रति संरक्षण प्राप्त है। वाजिब है, परन्तु अधिकारियों को शक्ति मिलने पर नाजायज बातें मनवाते हैं नैतिक तथा अनैतिक कार्यों में संलिप्त हो जाते हैं। बीज अधिनियम की धारा 22 में, कीटनाशी अधिनियम की धारा 35 में और आवश्यक वस्तु अधिनियम में अधिकारियों को संरक्षण प्राप्त है। परन्तु ये अधिकारी निर्कुश, हो जाते हैं और भेदभाव पूर्ण कार्य करने में पथ भ्रष्ट हो जाते हैं ऐसे अधिकारियों को क्यों दण्डित नहीं किया जाता ?

4, उर्वरक नियन्त्रण आदेश-1985 :-

किसी उर्वरक विक्रेता का सैम्पल राजकीय उर्वरक परिक्षणशाला से फेल होने पर, उर्वरक निरीक्षक एफ.आई.आर., लाइसैंस निलम्बन, लाइसैंस निरस्तीकरण की तलवार उठा लेते हैं, ऐसे अधिकारियों को दण्ड क्यों नहीं जो कानूनों में दिये गये प्रावधानों से हट कर व्यापारियों पर अनावश्यक अनुशासनात्मक कार्यवाही कर उनका शोषण करते हैं। उर्वरक नियन्त्रण आदेश 1985 की धारा-32 (A) (2) में प्रावधान है कि राज्य उर्वरक परिक्षणशाला से परिणाम अमानक होने पर व्यापारी को पुनः केन्द्रीय उर्वरक परिक्षणशाला में परिक्षण करवा कर पुष्टि करवाने का प्रावधान है क्योंकि राज्य उर्वरक परिक्षणशाला का परिणाम निर्णायक (Conclusive) नहीं माना जाता है। ऐसी चेतावनी केन्द्र सरकार के उप सचिव (INM) द्वारा मध्य प्रदेश राज्य के कृषि निदेशक को दिनांक 15. 11.2019 को जारी करनी पड़ी, उसके बाद भी निदेशक कृषि द्वारा दिनांक 23.06.2022 को सम्बन्धित उप-निदेशकों को 947 दिन में प्रेषित की ऐसा विलम्ब से कार्यवाही करने वाले अधिकारी दण्डित क्यों नहीं किए जाते हैं?

यह पत्र दिनांक 23.06.2022 अब भी सोशल मीडिया में तैर रहा है। इसका मतलब कुछ अधिकारी अभी तक भी पत्र की पालना नहीं कर रहे हैं। ऐसे अधिकारियों को क्यों नहीं दण्डित किया जा रहा है ?

5, मूंगफली बीज का गिरी

केन्द्रीय बीज प्रमाणन बोर्ड की 12वीं मिटिंग 17-18 जून 2005 को हुई उसमें मूंगफली का गिरी/ दाने के रूप में प्रमाणीकरण का प्रस्ताव निरस्त होने के बाद 14वीं मिटिंग 21-22 जून 2008 को एक्सपैरीमैन्टल आधार पर मूंगफली की दाने / Kernel के रूप में बीज प्रमाणीकरण लागू किया। केन्द्र सरकार ट्रायल के रूप में लागू करने के बाद प्रमाणीकरण बोर्ड भूल गई परन्तु आर.टी.आई. में पूछा तो बताया कि Expert कमेटी की सिफारिश पर 2013 के प्रमाणीकरण मानकों द्वारा बन्द कर दिया परन्तु आज तक भी मूंगफली का फली के बजाए दाने में प्रमाणीकरण एवं विपणन हो रहा है। यह अविधिक कार्य बन्द हो और दोषी अधिकारियों की पहचान कर उन्हें कानूनों की अवहेलना के लिए दण्ड दिया जाए।

6. ढेंचा बीज बिक्री :-

भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए बाजार से खरीद कर ढेंचा कृषि उत्पाद को बीज के रूप में वितरित किया जाता है। वितरित किया जाने वाला ढेंचा बीज की परिभाषा में नहीं आता है और अनुदान पर वितरित किया जाता है। यह राज्य सरकारों या राज्य की बीज निगमों द्वारा किया जा रहा है। इस अपराधिक कृत्य को राज्य सरकार के अधिकारी करवाते हैं जिनके कन्धों पर बीज कानूनों को लगाने / पर्वतन / Enforcement का दायित्व है। इस अविधिक कार्य को करने वाली बीज निगमों के अधिकारी और अमानक बीज पर नियन्त्रण न करने वाले अधिकारी दण्डित क्यों नहीं किये जाते ?

7. कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा बीज बिक्री :

आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 से बीज नियन्त्रण आदेश-1983 की रचना करने से बीज आवश्यक वस्तु की परिभाषा में आ गया अर्थात सभी प्रकार के बीज ब्रीडर, न्यूकलियस, लेबल (टी.एल.) आधार, स्टॉक सीड प्रमाणित, सभी आवश्यक वस्तु की श्रेणी में आ गये अतः इनका विक्रय लाइसैंस लेकर किया जाना आवश्यक है परन्तु सभी विश्वविद्यालय, शासकीय संस्थाएं ब्रीडर बीज का विक्रय बिना लाइसैंस अविधिक ही नहीं अपराधिक कृत्य है। इन विश्वविद्यालयों के सम्बन्धित अधिकारी इस अपराधिक कृत्य के लिये दण्डित क्यों नहीं किये जाते। उन जिलों के उपनिदेशक / मुख्य कृषि अधिकारी दण्डित क्यों नहीं किए जाते जो इस कृत्य को रोक नहीं पा रहे।

8. आई.ए.आर.आई. करनाल :-

आई.ए.आर.आई. करनाल ने बिना लाइसैंस पी.बी. 1509 टी.एल. वर्ग का वर्ष 2020 का पुराना बीज खरीफ-2022 में 774 किसानों को वितरित किया। बीज नहीं उगा। संस्था ने अखबारों में विज्ञापन देकर बीज अमानक की स्वीकारोक्ति की यानि स्वयं अपराध कबूल (Confess) किया पर न तो आज तक विभाग से लाइसैंस लिया और न ही उपनिदेशक कृषि करनाल ने कोई दण्डात्मक कार्यवाही विभाग के विरूद्ध की। आई.ए. आर.आई. करनाल ने 69 किसानों का बीज का पैसा वापिस भी किया परन्तु 705 किसानों को क्या मिला ? निजी बीज उत्पादकों / विक्रेताओं का ऐसा बीज कृषकों में वितरित हो जाए तो क्या निजी बीज विक्रेता बीज की कीमत देकर समस्या सुलझाने का मौका सरकार देगी ? नहीं। बल्कि उसका शोषण होगा। ऐसे अधिकारियों के विरूद्ध दण्डात्मक कार्यवाही क्यों नहीं ?

9. बी.टी. कपास का वितरण :-

कुछ वर्षों से बी.टी. कपास में गुलाबी सुन्डी का प्रकोप आ रहा है। राज्य सरकारें अपने अनुसन्धान केन्द्रों पर प्रतिवर्ष ट्रायल करवा कर व्यापारिक उत्पादन के लिये किस्में जारी करती है और उसमें गुलाबी सुन्डी का प्रकोप होने पर बीज विक्रेताओं को दोषी माना जाता है। कृषक धरने प्रदर्शन इन विक्रेताओं की दुकानों पर लगाते हैं परन्तु ट्रायल के आधार पर अनुमति देने के बाद गुलाबी सुंडी आने पर इन अधिकारियों को जिम्मेदार क्यों नहीं ठहराया जाता? किसान इन अधिकारियों के कार्यालय के सामने धरने / प्रदर्शन क्यों नहीं करते ?

10. बीज निरीक्षक / बीज जाइसेंसिंग अधिकारी का क्षेत्राधिकार :-

बीज निरीक्षक और लाइसेंसिंग अधिकारी राज्य सरकारों की अधिसूचना द्वारा नियुक्त होते हैं और इन अधिसूचनाओं में ही उनका कार्यक्षेत्र भी निर्धारित होती है। उदाहरण के लिए हरियाणा की किसी कम्पनी का बीज बूंदी राजस्थान में अमानक रिपोर्ट हुआ तो वह सीधा कारण बताओ नोटिस, हिसार की कम्पनी को जारी करता है, जबकि उसकी बून्दी जिला के बाहर अधिकारिता नहीं है। ऐसे अनेकों कारण बताओ नोटिस रोजाना जारी होते रहते हैं और इन अधिकारियों को दण्डित किया जाए।

11. बीज परिक्षण :-

उपरोक्त उद्दत उर्वरक नमूने की तरह परन्तु कुछ भिन्नता के साथ बीज के सैम्पल के पुनः परिक्षण के कानूनी प्रावधान है। सैन्ट्रल लैब से पुनः परीक्षण बीज निरीक्षक द्वारा न्यायालय में दोषी बीज व्यापारी के विरूद्ध वाद दायर करने के बाद पुनः बीज परिक्षण का अधिकार उत्पन्न होता है परन्तु अधिकारी 28 दिन, कई 30 दिन के भीतर बीज सैन्ट्रल लैब से परिक्षण की सलाह देते हैं। यानि उनको बीज कानून का सही पता नहीं है ऐसे अधिकारी भी दण्डित हों ?

:: लोकोक्ति::
अद्भुत है बीज का अंकुरण
स्वयं को होम कर, करता नया सृजन।

– सौजन्य से –
श्री संजय रघुवंशी, प्रदेश संगठन मंत्री, कृषि आदान विक्रेता संघ मप्र

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