कोको की खेती का लंबा इतिहास रहा है. इसे देवताओं का भोजन भी कहा जाता है. केरल और आंध्र प्रदेश में भारत का लगभग 80% खेती होती है. इसकी खेती से कोई भी अच्छी खासी कमाई कर रहा है. चॉकलेट बनाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है.ऐसे ही वायुसेना से रिटायरहोकर वेंकट सुब्बा राव एडपगंटी ने कोको की खेती शुरू की और आज करोड़ों रुपये की कमाई कर रहे हैं.वेंकट सुब्बा राव एडपगंटी आंध्र प्रदेश के एलुरु जिले के रहने वाले हैं. जिनके पास खेती का बेहतर अनुभव हैं. 78 साल के वेंकट सुब्बा राव 1990 में एयरफोर्स से रिटायर हुए थे.
वेंकट सुब्बा राव एडपगंटी आंध्र प्रदेश के एलुरु जिले के रहने वाले हैं. जिनके पास खेती का बेहतर अनुभव हैं. 78 साल के वेंकट सुब्बा राव 1990 में एयरफोर्स से रिटायर हुए थे. रिटायर होने के बाद उनके सामने कई चुनौतियां आई. वे पास नारियल का बागान था, लेकिन केवल उससे घर चलना मुश्किल हो रहा था. जिसके बाद उन्होंने फसलों के बारे में रिसर्च करनी शुरू की.
रिसर्च में उन्हें यह पता चला कि कोको की खेती काफी फायदेमंद हो सकती है. जिसके बाद उन्होंने साल 1992 में नारियल के पेड़ों के बीच में ही कोको के पेड़ भी लगा दिए. शुरुआत के दो साल तक उन्हें मुनाफा नहीं हुआ. लेकिन तीसरे साल से उन्हें मुनाफा होने लगा.
शुरुआत में कोको की कीमत 45 रुपये प्रति किलो थी. लेकिन केवल सात से आठ सालों में ही कोको की कीमत में भारी वृद्धि हुई. वे एक एकड़ जमीन में लगभग 500 किलो कोको निकालते हैं. वेंकट कहते हैं कि कोको की खेती नारियल की खेती से कहीं ज्यादा अच्छी कमाई का जरिया है. वे अपनी खेती में नई टक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके तगड़ा मुनाफ़ा कमा रहे हैं.
मौसम के अनुसार रखते हैं खास ख्याल
वेंकट मौसम के हिसाब से कोको के पेड़ों की सिंचाई करते हैं. ताकि पेड़ों को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचे. उन्होंने दो एकड़ जमीन में कोको और चंदन के पेड़ लगाए हैं. इसके अलावा दो एकड़ जमीन में नारियल और कोको के पेड़ लगे हैं. केवल चार एकड़ जमीन से वे सालभर में चार लाख रुपये से लेकर पांच लाख रुपये की कमाई कर रहे हैं.