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नर्मदा किनारे की मिट्टी हल्‍दी के खेती के लिए सफलता की गारंटी बनकर उभरी 

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नर्मदापुरम, नर्मदा नदी के किनारे बसा है और इसकी उपजाऊ काली मिट्टी को खेती के लिए वरदान माना जाता है. अब नर्मदा किनारे की यही मिट्टी यहां पर हल्‍दी के खेती के लिए सफलता की गारंटी बनकर उभरी है.  हल्‍दी की इस सफल खेती का लीडर अगर कंचन वर्मा को कहा जाए तो गलत नहीं होगा.  बेहतर रिटर्न की इच्छा और रोज नए प्रयोग करने की आदत से प्रेरणा लेकर कंचन वर्मा ने साल 2020 में हल्दी की खेती में कदम रखा.

हल्‍दी को भारतीय शास्‍त्रों में एक लकी चार्म माना जाता है और यकीन मानिए यह वाकई में मध्‍य प्रदेश में एक किसान का सौभाग्‍य बन गई है. मध्‍य प्रदेश के जिले होशंगाबाद से कुछ दूरी पर स्थित नर्मदापुरम जिले की किसान कंचन वर्मा की सफलता की कहानी आपको हैरान कर देगी. नर्मदापुरम, नर्मदा नदी के किनारे बसा है और इसकी उपजाऊ काली मिट्टी को खेती के लिए वरदान माना जाता है. अब नर्मदा किनारे की यही मिट्टी यहां पर हल्‍दी के खेती के लिए सफलता की गारंटी बनकर उभरी है.  हल्‍दी की इस सफल खेती का लीडर अगर कंचन वर्मा को कहा जाए तो गलत नहीं होगा. 

साल 2020 में शुरू की खेती 

बेहतर रिटर्न की इच्छा और रोज नए प्रयोग करने की आदत से प्रेरणा लेकर कंचन वर्मा ने साल 2020 में हल्दी की खेती में कदम रखा. ग्रेजुएट और एक अनुभवी किसान कंचन ने एक टीवी शो में दिखाई गई क्षमता से प्रेरणा ली और उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) से इस दिशा में मार्गदर्शन मांगा.  केवीके से मिले ज्ञान से लैस, कंचन ने हल्दी की सांगली किस्म को चुना. हल्‍दी की यह किस्‍म अपनी उच्च करक्यूमिन सामग्री और औषधीय गुणों के लिए मशहूर है. यह विकल्प उनकी सफलता में सहायक साबित हुआ. गहरे नारंगी रंग और मजबूत जड़ों के कारण इसकी बंपर फसल हुई और पारंपरिक फसलों की तुलना में उनकी आय दोगुनी हो गई. 

कंचन ने की खूब मेहनत 

कंचन ने मिट्टी की गुणवत्‍ता को समझा और ह्यूमस मैटेरियल से भरपूर अच्छी तरह से पानी सोखने वाली रेतीली दोमट मिट्टी का चयन करते हुए सावधानी से खेती योग्य भूमि तैयार की. ऑर्गेनिक फार्मिंग के तरीकों को अपनाते हुए, उन्होंने मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और कीड़ों के हमलों को कम करने के लिए गाय के गोबर और जीवामृत पर भरोसा किया. इससे हल्दी की वृद्धि के लिए सर्वश्रेष्‍ठ परिस्थितियां तैयार हुईं. सही तरह से देखभाल और ध्यान रखने के साथ ही साथ कंचन ने अंकुरित हल्दी के बीज बोए. साथ ही उन्‍होंने उसके विकास की बारीकी से निगरानी की. कंचन ने बीज रोपण के एक महीने बाद पौधों को ‘मिट्टी लगाने’ की कला सीखी. 

8 महीनों में 100 क्विंटल की खेती 

हल्दी के लंबे मौसम के बावजूद, कंचन की दृढ़ निश्‍चय और मेहनत रंग लाई और सिर्फ आठ महीनों में 100 क्विंटल की भरपूर फसल उन्‍हें हासिल हुई. हल्दी प्रसंस्करण की मूल्य संवर्धन क्षमता को पहचानते हुए, कंचन ने कटे हुए रिजोम्‍स यानी प्रकंदों को सावधानी से धोया, उबाला, सुखाया, छीला और पीसकर हाई क्‍वालिटी वाला हल्दी पाउडर बनाया. उनके इस कदम से न सिर्फ हाई रिटर्न उन्‍हें मिला बल्कि उन्‍होंने स्थानीय मांग को  भी आकर्षित किया. इससे बाजार में मध्यस्थों की जरूरत खत्‍म हो गई और उपभोक्ताओं को सीधी बिक्री सुनिश्चित हुई.  

30 लाख रुपये की आमदनी 

आज, कंचन वर्मा हल्दी की खेती में एक लीडर बन गई हां. वह साथी किसानों को विविधता और नए प्रयोगों के लिए प्रेरित कर रही हैं. 10 एकड़ भूमि पर खेती और इस सीजन में 30 लाख रुपये की अपेक्षित आय के साथ, उनकी सफलता की कहानी एग्रीकल्‍चर एंटरप्रेन्‍योरशिप और सस्‍टेनेबल प्रैक्टिस का सबूत हैं. कंचन किसी समय में गेहूं की खेती करती थीं लेकिन आज उन्‍हें हल्‍दी की खेती ने एक नया मुकाम दिया है. 

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