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टैस्ला व गूगल को चैलेंज देने वाले पंजाब के गुरसिमरन व गगनदीप ‘फोर्ब्स 30’ सूची में

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जालंधर  फोर्ब्स की तरफ से 30 अंडर एशिया लिस्ट जारी की गई है, जिसमें युवा भारतीयों को भी जगह मिली है। इस सूची में जहां मनोरंजन जगत से अपर्ण कुमार चंदेल तथा पवित्राचारी जैसे लोगों के नाम है, वहीं ए. आई. टैक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर मार्कीट में छाने को तैयार कुश जैन जैसे युवाओं के भी नाम हैं। इस सूची में अर्थ चौधरी, देवांत भारद्वाज, ओशी कुमारी जैसे युवाओं के भी नाम हैं, जो ड्रोन तथा अन्य प्रकार के उत्पाद से जुड़े हुए हैं। इस सूची में 2 ऐसे नाम हैं, जिन्होंने सबको चौंका दिया है और वह नाम हैं पंजाब के जालंधर से गुरसिमरन और गगनदीप सिंह।

ये दोनों वही युवा हैं, जिन्होंने करीब एक साल पहले भारत में टैस्ला और गूगल जैसी कंपनियों को ओपन चैलेंज + किया था। इन दोनों युवकों ने ज्जी-पॉड नामक एक कार बनाई थी, जो बिना ड्राइवर के चलती है। भारत में इस तरह की कार पहली बार किसी ने बनाई थी क्योंकि अभी तक दुनिया भर में ड्राइवर लैस कार के नाम पर गूगल और टैस्ला का ही नाम है। लेकिन इन दोनों युवाओं ने ड्राइवरलैस कार बनाकर दुनिया भर के लोगों को दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर कर दिया। यह उनके अभियान का आगाज था लेकिन अब फोर्ब्स की सूची में नाम आने के बाद गुरसिमरन व गगनदीप के हौंसले बुलंद हो गए हैं।

स्कूल के बाद 4 साल बाद दोबारा मिले

‘पंजाब केसरी’ के साथ विशेष तौर पर बातचीत करते हुए गुरसिमरन सिंह ने बताया कि वह तथा गगनदीप स्कूल में इकट्ठे पढ़ते थे। गगनदीप उनसे एक क्लास सीनियर थे। गगनदीप का शुरू से ही रुझान तकनीक से जुड़ा रहता था, जबकि गुरसिमरन खुद बिजनैस में रुचि रखते थे। गुरसिमरन ने बताया कि स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे दोनों अलग- अलग फील्ड में निकल गए, लेकिन करीब 4 साल बाद गगनदीप का सोशल मीडिया पर एक मैसेज मिला, जिसमें उसने एक साथ काम करने की ऑफर दी।

कोविड काल में किया था कार का डैमो 

गुरसिमरन कहते हैं कि उन दोनों ने मिलकर काम शुरू किया। 2020 में यही सोच कर काम शुरू किया था कि कुछ अलग करेंगे। उसके बाद 2021 में जब कोविड फैल रहा था, तब उन्होंने ड्राइवरलैस कार तैयार कर दी और पहली बार इसका डैमो किया। इसके बाद कोविड के कारण कई तरह की रुकावटें लग गई थीं, लेकिन इस समय को उन्होंने बखूबी इस्तेमाल किया तथा अपने प्रोजैक्ट को आगे बढ़ाया। गुरसिमरन जोकि जालंधर के अर्बन एस्टेट में रहते हैं, जबकि गगनदीप सिंह रामा मंडी निवासी हैं। दोनों इस समय बेंगलूर में अपनी रिसर्च पर काम कर रहे हैं।

विकासशील देशों के बाजार पर दोनों की नजर

गुरसिमरन सिंह बताते हैं कि उनका रुझान भारत में ड्राइवरलैस गाड़ी लांच करने का नहीं है, बल्कि वह इस टैक्नोलोजी के साथ आटोमेकर कंपनियों के साथ काम करना चाहते हैं। उनकी कुछेक कंपनियों से बात चल भी रही है। जिस तरह से ए. आई. तकनीक लगातार आगे बढ़ रही है तो आने वाले समय में भारत की गाड़ियों में इस तकनीक का बखूबी इस्तेमाल होगा।
गुरसिमरन यह मानते हैं कि टैस्ला तथा गूगल जैसी कंपनियां विकसित देशों के लिए काम कर रही हैं, जबकि दुनिया भर में करीब 85 प्रतिशत विकासशील देश हैं, जिनके लिए वे काम करना चाहते हैं।

काफी चैलेंजिंग भरा थाजी-पॉड का निर्माण

गुरसिमरन तथा गगनदीप माइन्स जीरो नामक कंपनी के तहत काम कर रहे हैं तथा उनका कहना है कि युवाओं को ज्यादा से ज्यादा ए.आई. तकनीक के क्षेत्र में आना चाहिए क्योंकि यह एक बड़ा मैदान है। उन्होंने विदेश जाने वाले विद्यार्थियों के लिए भी संदेश दिया कि भारत में बहुत स्कोप है और यहां रह कर भी काम किया जा सकता है। गुरसिमरन खुद कहते हैं कि अगर उन्हें कभी विदेश में अपनी ब्रांच खोलने का मौका भी मिलेगा तो भी वह अपना हैडक्वार्टर भारत में ही रखेंगे।

जी-पॉड जोकि एक ड्राइवरलैस कार है, को बनाने के लिए गुरसिमरन तथा गगनदीप को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। गुरसिमरन का कहना है कि जो जरूरी सामान कार बनाने के लिए चाहिए था वह भारत में न तो उपलब्ध था और न ही उसका कोई अता-पता था। उसको मुहैया करवाना सबसे बड़ा चैलेंज था। उन्होंने बताया कि जी-पॉड कार ए.आई. तकनीक से चलती है तथा उसमें 360 डिग्री के कैमरा सैंसेंज लगे हैं, जिसके माध्यम से कार को चलाया जाता है।

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