तीसरे, चौथे और पांचवें चरण के चुनाव में महाराष्ट्र की ऐसी 14 लोकसभा सीटें आ रही हैं जहां पर प्याज की बड़े पैमाने पर खेती होती है. एक्सपोर्ट बैन की वजह से किसानों को हुए लाखों के नुकसान का गुस्सा कहीं ‘वोट की चोट’ से न निकले, इसे लेकर केंद्र सरकार सतर्क है. इस बीच उपभोक्ता मामले मंत्रालय प्याज की मांग और आपूर्ति का गुणाभाग लगाने में जुटा है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या सरकार एक्सपोर्ट बैन को खोल सकती है.
महाराष्ट्र की 48 सीटों पर पांच चरणों में वोटिंग होनी है. जिसमें से दो चरण बीत चुके हैं. लेकिन तीसरे, चौथे और पांचवें चरण में सत्ताधारी बीजेपी के लिए यहां किसान बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकते हैं. इन तीनों चरणों में कम से कम 14 ऐसी लोकसभा सीटें हैं जहां पर बड़े पैमाने पर प्याज की खेती होती है. प्याज उत्पादक किसान सरकार से खासे नाराज बताए जाते हैं क्योंकि आरोप है कि एक्सपोर्ट बैन की वजह से उनका लाखों रुपये का चूना लग चुका है. यही नहीं गुजरात के सफेद प्याज निर्यात पर की गई केंद्र की मेहरबानी ने महाराष्ट्र के किसानों के जले पर जैसे नमक रगड़ दिया है. ऐसे में कुछ सीटों पर बीजेपी प्रत्याशियों को किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा है. बहरहाल, चुनाव में प्याज बेल्ट से बीजेपी को नुकसान की आशंका है. इस बीच सूत्रों का कहना है कि उपभोक्ता मामले मंत्रालय ने प्याज की मांग-आपूर्ति का गुणा-भाग लगा लिया है. ऐसा माना जा रहा है कि सरकार एक्सपोर्ट बैन के डैमेज कंट्रोल के लिए तीसरे चरण की वोटिंग से पहले कोई बड़ा फैसला ले सकती है.
केंद्र सरकार ने प्याज के दाम को काबू में रखने को लेकर पिछले साल से ही काम कर रही है. आरोप है कि सरकार को उपभोक्ताओं के आंसू नजर आ रहे हैं लेकिन किसानों के नहीं. इसलिए उसने प्याज सस्ता करने का रास्ता चुना. इसके तहत प्याज के एक्सपोर्ट पर 17 अगस्त 2023 को 40 फीसदी एक्सपोर्ट ड्यूटी लगाई गई. लेकिन उसके बाद भी दाम कम नहीं हुए. फिर 800 डॉलर प्रति टन की एमईपी लगाई गई. यानी यह शर्त रखी गई कि 800 डॉलर प्रति टन से कम दाम पर कोई भी प्याज एक्सपोर्टर नहीं कर सकता. लेकिन इससे भी हालात नहीं सुधरे. तब 7 दिसंबर 2023 को एक्सपोर्ट पर बैन कर दिया गया. इससे किसानों में सरकार के खिलाफ नाराजगी बढ़ गई, क्योंकि इस फैसले से दाम काफी गिर गए. इसलिए विपक्ष के लगभग सभी नेता प्याज के मुद्दे पर केंद्र और राज्य सरकार पर आरोपों की बौंछार कर रहे हैं.
आग में घी पड़ गया
एक्सपोर्ट बैन 31 मार्च 2024 तक के लिए लागू किया गया था. किसान इंतजार कर रहे थे कि एक्सपोर्ट अब खुल जाएगा और रबी सीजन में वो अच्छे दाम पर प्याज बेच सकेंगे. लेकिन उनके सपनों पर तब पानी फिर गया जब 22 मार्च को सरकार ने एक नोटिफिकेशन जारी करके कहा कि एक्सपोर्ट बैन अनिश्चितकाल के लिए बढ़ा दिया गया है.
इसके बाद किसानों ने एलान किया वो इस नुकसान का वोट की चोट से बदला लेंगे. किसानों के गुस्से की आग में घी तब पड़ा जब 25 अप्रैल को सरकार ने गुजरात के 2000 मीट्रिक टन सफेद प्याज के निर्यात की मंजूरी दी. इसके बाद यह मुद्दा गुजरात बना महाराष्ट्र बन गया. महाराष्ट्र के किसानों को यह लगने लगा कि गुजरात के किसानों को चुनाव में जान बूझकर फायदा दिया गया.
एनसीईएल से किसानों के सवाल
एक तरफ एक्सपोर्ट बैन है तो दूसरी ओर कुछ देशों को अलग-अलग समय पर नोटिफिकेशन जारी करके 7 दिसंबर 2023 के बाद से अब तक 99,150 लाख मीट्रिक टन प्याज एक्सपोर्ट करने की अनुमति दी गई है. इसमें से अधिकांश हिस्सा सहकारिता मंत्रालय की ओर से बनाई गई कंपनी नेशनल कोऑपरेटिव एक्सपोर्ट लिमिटेड (NCEL) को मिला है. महाराष्ट्र के किसान सवाल पूछ रहे हैं कि एनसीईएल यह बताए कि उसने एक्सपोर्ट करने के लिए सीधे किसानों से प्याज खरीदा है या फिर बड़े व्यापारियों से. अगर किसानों से खरीदा है तो उनके नाम सार्वजनिक करे.
प्याज बेल्ट की सीटें
- तीसरे चरण में 7 मई को सोलापुर, सांगली, सतारा, कोल्हापुर में वोट पड़ेंगे.
- चौथे चरण में 13 मई को अहमदनगर, नंदुरबार, शिरूर, जलगांव, औरंगाबाद, पुणे, बीड में वोटिंग है.
- पांचवें चरण में 20 मई को प्याज बेल्ट धुले, डिंडोरी और नासिक में वोटिंग है.
- ये 14 सीटें ऐसी हैं जिनमें प्याज की बंपर खेती होती है और एक्सपोर्ट बैन ने उन्हें लाखों का नुकसान हुआ है.
- क्या प्याज के आंसू रोएंगे नेता
महाराष्ट्र प्याज उत्पादक संगठन के अध्यक्ष भारत दिघोले का कहना है कि लोकसभा चुनाव के बीच में ही सरकार इस तरह के फैसले ले रही है कि जैसे उसे किसानों की कोई परवाह ही नहीं है. हमने न किसी का सपोर्ट किया न विरोध किया. लेकिन एक्सपोर्ट बैन के दो सीजन हो गए हैं. पूरा खरीफ सीजन बर्बाद कर दिया और रबी सीजन भी निकला जा रहा है. महाराष्ट्र में प्याज की खेती करने वाला हर किसान औसतन 200 क्विंटल प्याज उगाता है.
एक्सपोर्ट से दाम काफी कम हो गए हैं. इसलिए प्याज की खेती करने वाले हर किसान को सरकार के फैसले से औसतन तीन लाख रुपये का नुकसान हुआ है. इस नुकसान का बदला तो किसान लेंगे ही. अभी तक प्याज किसानों को रुला रही है और अब नेताओं के रोने की बारी है. एक्सपोर्ट बैन नहीं हटता है तो चुनाव में असर दिखेगा. अगर बैन हटता है तो किसानों का गुस्सा खत्म हो सकता है. अब यह सरकार को तय करना है कि वो कौन सा रास्ता अपनाएगी.
ग्रीन सिग्नल का इंतजार
इस बीच ऐसी खबर आई है कि उपभोक्ता मामले मंत्रालय के उच्चाधिकारियों ने प्याज की मांग और आपूर्ति का गुणा-भाग लगा लिया है. ऐसा अनुमान है कि मंत्रालय की ओर से एक्सपोर्ट खोलने का ग्रीन सिग्नल मिल सकता है, ताकि प्याज की वजह से बीजेपी प्रत्याशियों के आंसू न बहे. ऐसी संभावना है कि शर्तों के साथ एक्सपोर्ट खोला जा सकता है. क्योंकि कुछ विशेषज्ञों ने दावा किया है कि इस समय भारत में मांग से ज्यादा प्याज मौजूद है. अगर एक्सपोर्ट नहीं किया गया तो उतना प्याज को रखे-रखे भी सड़ सकता है. बता दें कि प्याज समय के साथ सड़ता और वजन में हल्का होता रहता है.
क्या इस आधार पर मिलेगी राहत
कृषि विशेषज्ञ दीपक चव्हाण के अनुसार अप्रैल 2024 से मार्च 2025 तक भारत में प्याज की अनुमानित मांग, निर्यात और घाटे को छोड़कर 218 लाख टन है. अप्रैल से सितंबर 2024 की घरेलू मांग लगभग 108 लाख टन बताई गई है. जबकि आपूर्ति 147 लाख टन है. प्रति व्यक्ति खपत 15 किलोग्राम अनुमानित है. यानी प्रति माह 1.25 किलोग्राम. यह भी बताया गया है कि अक्टूबर से दिसंबर तक देश में 60 लाख टन प्याज की मांग होगी. जबकि आपूर्ति 84 लाख टन की हो सकती है. ऐसे में 24 लाख टन की अतिरिक्त आपूर्ति हो सकती है. इसलिए एक्सपोर्ट खुलने का रास्ता बन सकता है. हालांकि, ये सरकारी आंकड़े नहीं हैं.