गौरव मोहता
देश में लंबे समय से ‘अपनी छत’ की इंतजार कर रहे लोगों का यह ख्वाब सस्ते और किफायती हाउसिंग सेक्टर जिसे ‘अफोर्डेबल हाउसिंग’ भी कहते हैं, पूरा कर रहा है. इसलिए जरूरी है कि इतने अहम सेक्टर का भविष्य स्थायी और टिकाऊ हो. यह सेगमेंट बदलाव के दौर से गुजर रहा है. सेक्टर में अब टिकाऊ निर्माण के साथ-साथ जीवन जीन के तौर तरीकों में भी यही टिकाऊपन लाने का चलन बढ़ रहा है. इसके मायने यह हैं कि यह निर्माण किफायत भरा होने के साथ-साथ टिकाऊ भी हो. यह इस स्व निर्मित क्षेत्र में अपनी तरह का बिलकुल नया चलन है. इसे ‘हरित पथ’ नाम दिया गया है. क्योंकि इस पथ पर चलकर बनने वाले ग्रीन होम्स न केवल अफोर्डेबल या किफायती घरों के सेगमेंट को स्थाई दर से आगे बढ़ाने में मददगार साबित होंगे, बल्कि इससे पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा.
हालांकि अभी अफोर्डेबल हाउसिंग सेगमेंट में इस उन्नत तकनीकी पूरी तरह से अपनाया नहीं गया है. क्योंकि घर बनाने के परंपरागत तरीकों से इतर जाना लोगों के लिए बिलकुल वैसा ही जैसे अपनी मान्यताओं से परे जाना. लागों को यह समझने में समय लगेगा कि घर बनाने के पर्यावरण सम्मत या ‘ईको फ्रेंडली’ तरीके ‘लक्जरी’ नहीं है और कम खर्च में भी ग्रीन हाउस बनाना संभव है. इस तरह के बदलाव साझे प्रयासों से ही आ सकते हैं.
सौभाग्य से ग्रीन होम्स के लिए अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से मान्यता प्राप्त मानक उपलब्ध हैं. अब तक जहां इन तरीकों को आजमाया गया वह पर्यावरण, लंबी अवधि के लिए टिकाऊ एनर्जी बनाने और “यूटिलिटी बिल’ की बचत के लिए उपयोगी साबित हो चुके हैं. साथ ही लोगों को इसके लिए अपने आराम से कोई समझौता नहीं करना पड़ा. यह भी पाया गया है कि “किफायती हाउसिंग सेगमेंट’ में “स्व निर्मित ग्रीन हाउस’ से बिजली और घर में होने वाले कामकाज से बनने वाली एनर्जी की 20% तक बचत हुई. साथ ही निर्माण की लागत भी घटी.
इन “स्व निर्मित ग्रीन हाउस’ में परंपरागत रूप से “लाल ईंटों’ का उपयोग होता है. इन ‘लाल ईंटों’ को बनाने के लिए बड़े पैमान पर जीवाश्म ईंधन को जलाना पड़ता है. यह बेहद कमजोर होती हैं. लाने-ले जाने और एकत्र करके रखने में कई ईंटे टूट जाती हैं. नुकसान होता है. “ग्रीन होम्स’ में इन ईंटों का जो विकल्प दिया गया है वह टिकाऊ और एनर्जी बचाने वाला है. ‘फ्लाई एश’ और ‘कांक्रिट की ईंटे’ बनाने के लिए ‘रिसाइकिल उत्पादों’ की जरूरत होती है.
यहां ईंधन को जलाने की जरूरत ही नहीं है. कुल मिलाकर यह केवल खर्चे नहीं बचाता, बल्कि इससे निर्माण भी तेज गति से होता है. क्योंकि इन्हें “लाल ईंटों’ की तुलना में ज्यादा तेजी से बनाया जा सकता है. यह मजदूरी और प्रोजेक्ट को पूर्ण करने का समय दोनों को कम करता है. कुल मिलाकर बात यह है कि निर्माण का हरित पथ आपकी लागत घटाने के साथ लंबी अवधि के लिए टिकाऊ घर बनाते हैं. इसके लिए गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं करना पड़ता.
‘ग्रीन होम्स’ की ‘प्लंबिग’ में भी एक छोटा सा फायदा है. इन तरीकों से पानी उपयोग की आदतों को बदलने बिना पानी की खपत घटाई जा सकती है. इस प्लंबिंग में जब आप को कम पानी की जरूरत हो तो पानी के फोर्स को नियंत्रित करने के लिए “मिस्ट’ बनता है जो पानी के “बार प्रेशर’ को बनाए रखता है. बेशक इन तौर तरीकों का असर सीमित हो लेकिन ये पानी की बर्बादी रोककर बचत कराते हैं. आपकी जेब पर बोझ घटता है. अगर आपके घर के सभी इलेक्ट्रानिक सामान जैसे छत पंखे, टीवी, फ्रीज और एसी अगर फाइव स्टार होते हैं तो उनकी बिजली की खपत कम होती है.
साथ ही इनके उपयोग और आराम से कोई समझौता नहीं करना पड़ता. इससे लंबी अवधि में इन सभी इलेक्ट्रानिक सामान में होने वाली बिजली की खपत घटती है. बिल में कमी आती है. “ओव्हरहेंग’ और छत पर सफेद पेंट करने से आपका ‘थर्मल कंफर्ट’ बढ़ता है. यह भी बिजली बचाता है. क्योंकि आपको घर को ठंडा रखने के लिए पंखा एसी नहीं चलाना पड़ता. ‘ग्रीन होम्स’ बेहद किफायती होते हैं. इन्हें खासतौर पर नई पीढ़ी की पूरी आरामदायक लाइफस्टाइल को ध्यान में रखकर ही बनाया जाता है.
सरकार हाउसिंग सेक्टर का मजबूती से प्रचार प्रसार कर रही है. ‘ईको फ्रेंडली लाइफस्टाइल’ के प्रति उसकी प्रतिबद्धता बढ़ी है. इससे मुख्यधारा में ‘ग्रीन होम्स’ को अपनाने को बढ़ावा मिला है. यह लोगों का ध्यान आकर्षित कर रहा है. चर्चा का विषय भी बन रहा है. लोग ‘ग्रीन होम्स’ में निवेश कर रहे हैं. सीख रहे हैं. भरोसा बढ़ा रहे हैं. ‘सब्सिडी’ और और दूसरे मदद की योजनाओं के मदद से यह हरित पथ लोगों के लिए मददगार सबित हो रहा है.
भारत की ‘क्लाइमेंट चेंज’ से लड़ाई में आवास क्षेत्र ‘स्व-निर्मित ग्रीन होम’ की मदद से अपना योगदान दे रहा है. यह ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन घटाकर ‘टिकाऊ संसाधनों’ के उपयोग को प्रोत्साहित करता है. इसकी लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही है. ‘ग्रीन होम्स’ के उपायों को ‘अफोर्डेबल हाउसिंग सेगमेंट’ में ज्यादा जगह मिल रही है. एक ऐसा देश ‘टिकाऊ विकास’ की राह पर चलने का प्रयास कर रहा है, उसके लिए ‘ग्रीन होम्स’ पर्यावरण की चुनौतीयों का सामना करने के लिए एक प्रमुख हथियार है. ‘वैश्विक क्लाइमेट संकट’ को देखते हुए यह एक चलन से ज्यादा जरूरत बन गया है. यह कोई अपवाद नहीं है कि जल्द ही पर्यावरण सम्मत तरीके से रहना एक आदर्श माना जाएगा.