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किसानों ने खुले बाजार में गेहूं बेचना किया शुरू, लक्ष्य के मुताबिक खरीदी मुश्किल

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 “बहुत कठिन है डगर पनघट की” की कहावत फिलहाल सरकारी गेहूं क्रय केंद्रों पर सटीक बैठ रही है. क्योंकि किसान गेहूं क्रय केंद्रों का मुंह भी देखना नहीं चाहते हैं. सरकारी खरीद दर से अधिक भाव से खुले बाजारों में किसानों का गेहूं व्यवसाई खरीद रहे हैं. कारण यही है कि इस साल सरकारी गेहूं क्रय केंद्रों पर लक्ष्य के मुताबिक खरीदारी होना कठिन दिखाई दे रहा है. पिछले कई दिनों में बैरिया तहसील क्षेत्र में किसी भी सरकारी गेहूं क्रय केंद्रों पर एक भी किसान अपना गेहूं बेचने या सूची में नाम दर्ज करने नहीं पहुंचा है. सरकारी गेहूं का खरीद दर 2275 है. वही खुले में व्यापारी इससे अधिक रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से गांव में घूम-घूम कर गेहूं खरीद शुरू कर दिए हैं.

ऐसे में बिना किसी औपचारिकता के नगद मूल्य पर गेहूं बेचना किसान पसंद कर रहे हैं. रियल टाइम खतौनी निकालने में काफी परेशानी है. सर्वर डाउन होने के चलते गेहूं बिक्री के लिए पंजीकरण भी आसान नहीं है. वही अपने किराए से गेहूं लेकर लाइन लगाकर क्रय केंद्रों पर बेचे और उसके बाद भुगतान के लिए हाकिमों का चक्कर लगाना, यह किसानों के लिए काफी परेशानी की प्रक्रिया है. फलस्वरुप किसान बिना किसी मेहनत की नगद गेहूं बेचना पसंद करते हैं.

इसी क्रम में कुछ किसानों का कहना है कि अभी 50 फ़ीसदी राजस्व गांव का रियल टाइम खतौनी राजस्व विभाग के पोर्टल पर तैयार नहीं है. ऐसे में खतौनी नहीं निकल पा रही है. बिना खतौनी विक्रय के लिए पंजीकरण नहीं होगा और पंजीकरण के बिना क्रय केंद्रों पर गेहूं की खरीद नहीं हो सकती है. यह सबसे बड़ी परेशानी का कारण है. सरकारी महकमे किसानों का सहयोग की बात तो दूर, सीधे बात करना भी उचित नहीं समझते हैं. स्वाभाविक है किसान क्रय केंद्रों पर जाने की बजाय खुले बाजार में गेहूं बेचना पसंद करेंगे. अधिक रेट मिलना सोने पर सुहागा है. यह बात अजय सिंह, करमानपुर, ने कही है.

किसान परमात्मा, शिवाल मठिया, ने कहा कि गेहूं बेचने के लिए ऑनलाइन पंजीकरण करना काफी कठिन प्रक्रिया हो गई है. बाजार में सरकारी दर से अधिक पैसा मिल रहा है. हम किसान क्यों जाएं, सरकारी क्रय केंद्रों पर जब घर बैठे ही अधिक मूल्य मिल रहा है.

बलराम सिंह, रामपुर, के किसान का कहना है कि, क्रय केंद्रों पर गेहूं बेचने के बाद भुगतान के लिए क्रय केंद्रों के प्रभारी के यहां बार-बार मक्खन लगाना पड़ता है. इसके बावजूद इसकी भुगतान में काफी देरी होती है. किसानों को यही उत्पादन बेचकर घर खर्च भी उठाना और अगली खेती की तैयारी भी करनी है. ऐसे में अगर बाजार में अधिक पैसा मिल रहा है तो हम लोग कतई सरकारी क्रय केंद्रों पर नहीं जाएंगे.

किसान विकास सिंह का कहना है कि, क्रय केंद्रों पर गेहूं बेचना आसमान से तारे तोड़ने के बराबर है. सरकार की घोषणाओं एवं धरातल की व्यवस्था में काफी अंतर है. प्रभावशाली लोगों को छोड़ दिया जाए तो जिम्मेदार कर्मचारी और अधिकारी किसानों को तवज्जो नहीं देते हैं. ऐसे में अगर बाजार से अधिक पैसा मिल रहा है तो हम लोग क्यों जाएंगे गेहूं क्रय केंद्रों पर

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