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भारत पर केम‍िकल फ्री कॉटन की शर्तें लगा रहे हैं यूरोपीय संघ और अमेर‍िका, नहीं संभले तो कॉटन एक्सपोर्ट नहीं होगा आसान

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रासायन‍िक खादों और कीटनाशकों के उपयोग का मुद्दा अब स‍िर्फ खाने-पीने की चीजों तक की सीम‍ित नहीं रह गया है, बल्क‍ि उससे आगे बढ़कर अब यह कपड़ों तक पहुंच गया है. ऐसे में समय रहते क‍िसान अगर नहीं संभले तो आने वाले द‍िनों में अमेर‍िका और यूरोपीय यून‍ियन (EU) के देशों में कॉटन का एक्सपोर्ट आसान नहीं रह जाएगा. दरअसल, कुछ देश अब कॉटन एक्सपोर्ट को लेकर तरह-तरह की शर्तें लागू कर रहे हैं. ज‍िनमें केम‍िकल फ्री, पर्यावरण अनुकूल और चाइल्ड लेबर फ्री खेती की कंडीशन लगाई जा रही हैं. वो ऑर्गेन‍िक कॉटन की मांग कर रहे हैं. ऐसे में अब सबसे बड़ी ज‍िम्मेदारी इंडस्ट्री की है, ताक‍ि वो इससे जुड़ी बातों को क‍िसानों तक पहुंचाए और उस तौर-तरीके से खेती हो जैसा क‍ि कॉटन के प्रमुख आयातक चाहते हैं.अब यूरोपीय संघ और अमेर‍िका जैसे देश भारत पर केम‍िकल फ्री कॉटन की शर्तें लगा रहे हैं. ऐसे में क‍िसानों को अब उसी तौर-तरीकों से कॉटन की खेती करनी पड़ेगी जैसा क‍ि आयातक चाहते हैं. ऐसे में कंफेडरेशन ऑफ इंड‍ियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री ने मध्य प्रदेश के पांच ज‍िलों में क‍िसानों के ल‍िए एक प्रोजेक्ट शुरू क‍िया है. ज‍िसमें इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (ILO) मदद करेगा.

ईयू और अमेर‍िका भारत से ऑर्गेन‍िक कॉटन चाहते हैं. ऐसे में अब कंफेडरेशन ऑफ इंड‍ियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री (CITI) और कॉटन डेवलमेंट र‍िसर्च एसोस‍िएशन (CDRA) ने मध्य प्रदेश के पांच ज‍िलों में क‍िसानों को खेती के नए तौर-तरीके बताने के ल‍िए एक प्रोजेक्ट शुरू क‍िया है. ज‍िसमें इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (ILO) मदद करेगा. मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान के कुछ बेल्ट में एक्सट्रा लांग स्टेपल ऑर्गेन‍िक कॉटन होता है. सबसे पहले क‍िसानों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय कॉटन, टेक्सटाइल और गारमेंट पर लगाई जा रही शर्तों को बताएंगे. ताक‍ि वो उसी तरह से खेती करें. ऐसा करेंगे तो उनका कॉटन एक्सपोर्ट होगा और आय बढ़ेगी. 

खेती में एक गलती पड़ेगी भारी 

इस कड़ी में मध्य प्रदेश के पांच ज‍िलों रतलाम, अलीराजपुर, झाबुआ, धार और बड़वानी का चयन क‍िया गया है. यहां केम‍िकल फ्री कॉटन की खेती को बढ़ावा द‍िया जाएगा. ईयू और अमेर‍िका ने यह भी शर्त लगाई है क‍ि अगर कॉटन की खेती में चाइल्ड लेबर काम करेगी तो वो यहां से कॉटन नहीं मंगाएगा. साथ ही कॉटन केम‍िकल फ्री होना चाह‍िए. 

इसल‍िए अब क‍िसानों को इन सब बातों को लेकर ट्रेन‍िंग देने की जरूरत है. वरना कॉटन की खेती में हुई एक गलती की सजा पूरे वैल्यू चेन में शाम‍िल लोगों को भुगतनी होगी. क‍िसानों को इस बारे में ट्रेंड करने के ल‍िए यह एक साल का प्रोजेक्ट है. व‍िशेषज्ञ बताएंगे क‍ि अगर फसल में रोग लगा है तो उससे क‍िस तरह से न‍िपटना है. प्रोडक्ट‍िव‍िटी कैसे बढ़ेगी.  

क‍िसानों के ल‍िए क्यों अहम है प्रोजेक्ट 

इसी स‍िलस‍िले में मंगलवार को द‍िल्ली के इंड‍िया हैब‍िटेट सेंटर में एक कार्यक्रम का आयोजन क‍िया गया. ज‍िसमें कंफेडरेशन ऑफ इंड‍ियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री की महासचिव चंद्रिमा चटर्जी ने कहा क‍ि उनके संगठन और आईएलओ के बीच यह सहयोग हमारे कपास किसानों की तरक्की के ल‍िए काफी महत्वपूर्ण साब‍ित होगा. हमारा लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि मेहनती क‍िसानों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिले, सम्मान मिले और वे ग्लोबल वैल्यूचेन में अपनी जगह बना सकें. 

चटर्जी ने कहा क‍ि भारत के करीब 65 लाख कपास किसानों के ल‍िए यह प्रोजेक्ट अहम साब‍ित होने वाला है. जिनमें से लगभग 40 फीसदी महिलाएं हैं. प्रोजेक्ट के दौरान, उन क‍िसानों पर खास फोकस क‍िया जाएगा जो पट्टे पर जमीन लेकर कपास की खेती करते हैं. मध्य प्रदेश से पहले तेलंगाना (2019-2022) में इस तरह की कोश‍िश की गई थी. वहां के क‍िसानों को कपास को लेकर आए अंतरराष्ट्रीय बंधनों के बारे में जानकारी है. दिल्ली में लॉन्च कार्यक्रम में वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों, उद्योग जगत के लीडर, ट्रेड यूनियनों और कृषि वैज्ञानिकों ने श‍िरकत की.

भारतीय कपास की प्रत‍िष्ठा बढ़ेगी 

फेडरेशन के चेयरमैन राकेश मेहरा ने कहा कि हम जो कपास उगाते हैं, वह न केवल हमारे घरेलू उद्योग को सहायता प्रदान करता है बल्कि वैश्विक कपड़ा उद्योग को भी लाभ पहुंचाता है. दुनिया भर के बाजारों और अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित करता है. यह सुनिश्चित करके कि हमारा कपास उचित तौर तरीके से पैदा हो, हम न केवल अपने किसानों का व‍िकास करेंगे बल्क‍ि वैश्विक मंच पर भारतीय कपास की प्रतिष्ठा भी बढ़ाएंगे. कॉटन टेक्सटाइल प्रमोशन काउंस‍िल (TEXPROCIL) के कार्यकारी निदेशक डॉ. सिद्धार्थ राजगोपाल ने कृषि क्षेत्र के माध्यम से कपास के वैल्यू चेन को मजबूत करने की आवश्यकता और रणनीतियों को साझा किया.

ऑर्गेन‍िक कॉटन क्या है? 

ऑर्गेन‍िक कॉटन नॉन-जेन‍िट‍िकली मोड‍िफाइड पौधों से उगाया जाता है. इसमें उर्वरकों या कीटनाशकों जैसे किसी भी सिंथेटिक कृषि रसायनों का उपयोग नहीं किया जाता है. यह मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए फायदेमंद है. आंध्र प्रदेश में सेंटर फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर की एक स्टडी के अनुसार, ऑर्गेन‍िक कॉटन का उत्पादन जीएम कपास की तुलना में अधिक पर्यावरण अनुकूल और स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर है. जबक‍ि बीटी कॉटन कीटों और बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील पाया गया है. सामान्य कपास जेन‍िट‍िकली मोड‍िफाइड बीजों और कीटनाशकों के भंडार पर निर्भर करता है. 

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