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संदिग्ध है नैनो यूरिया का प्रभाव, इफको पर झूठा दावा करने का आरोप : शोध

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देश की सबसे बड़ी खाद निर्माता कंपनी इंडियन फॉर्मर्स फर्टिलाइजर को-ऑपरेटिव (इफको) ने नोवेल नाइट्रोजन फर्टिलाइजर नैनो तरल यूरिया लांच करते हुए यह प्रचार किया था कि यह पूरी तरह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध है। हालांकि एक हालिया ओपिनियन पेपर ने इसकी वैज्ञानिक प्रमाणिकता पर सवाल उठाते हुए अपने निष्कर्ष में कहा है नैनो यूरिया में शायद ही कोई विशेषता हो जो वैज्ञानिक रूप से सिद्ध या प्रमाणित हो। ओपिनियन पेपर ने इसे एक खराब उत्पाद करार दिया है। 

डाउन टू अर्थ ने अपनी रिपोर्ट में यह बताया था कि नैनो यूरिया किसानों के लिए अनुपयोगी साबित हो रहा है। दावों के विपरीत किसानों की उपज इससे प्रभावित हो रही है। 4 भाग में सीरीज पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। 

 क्रिएटिव कॉमन्स लाइसेंस के तहत प्रकाशित इस ओपिनियन पेपर को डेनमार्क स्थित कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी में डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट एंड एनवॉयरमेंट साइंसेज के शोधार्थी मैक्स फ्रैंक और कोपेनगेहन यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर सोरेन हस्टेड के जरिए लिखा गया है। शोधार्थियों ने उपलब्ध वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर नैनो यूरिया की गुणवत्ता और विशेषता पर अस्पष्टता के कारण शंका जताई है। इस ओपिनियन पेपर का शीर्षक “इज इंडियाज लार्जेस्ट फर्टिलाइजर मैनुफैक्चरर मिसलीडिंग फार्मर्स एंड सोसाइटी यूजिंग ड्यूबियस प्लांट एंड सॉयल साइंस” है। 

नैनो यूरिया के इफको के दावों को चुनौती देते हुए शोधार्थियों ने कहा कि जाने-माने जर्नल्स में मौजूद साइंटिफिक लिटरेचर से तुलना करने पर हम इस पर सवाल उठाते हैं।  

इफको ने नैनो तरल यूरिया के जरिए यह दावा किया था कि पत्तों पर छिड़काव करने वाला 250 ग्राम की मात्रा वाला एक नैनौ यूरिया बोतल जिसमें महज 20 ग्राम नाइट्रोजन होता है वह 21 किलोग्राम नाइट्रोजन रखने वाले 45 किलो के पांरपरिक यूरिया के एक बोरे की बराबरी कर सकता है। 

दावों को अस्पष्ट बताने वाले ओपिनियन पेपर के लेखकों ने कहा कि यदि ऐसा होता तो नोवेल हाईटेक फर्टिलाइज प्रोडक्ट (नैनो तरल यूरिया) में मौजूद नाइट्रोजन पारंपरिक यूरिया की तुलना में फसलों में नाइट्रोजन यूज इफिसिएंशी (एनयूई) यानी नाइट्रोजन इस्तेमाल करने की क्षमता को 1000 गुना बढ़ा देता।  

इसी वर्ष भारत सरकार और इफको ने संयुक्त रूप से मिलकर नैनो यूरिया के उत्पादन को बढ़ाने के लिए 10 नई फैक्ट्री खोलने की बात कही थी। साथ ही कहा था कि 2025 तक नैनो यूरिया का सालाना उत्पादन क्षमता 44 करोड़ बोतल (440 मिलियन) तक पहुंचाया जाएगा और 25 अन्य मुल्कों में इसका निर्यात किया जाएगा। निर्यात वाले देश प्रमुख रूप से एशिया, अफ्रीका और साउथ अमेरिका के होंगे। 

नैनो यूरिया मार्केंटिग के दौरान इफको ने कहा कि इस बात के वैज्ञानिक सबूत है कि न सिर्फ इससे उच्च फसल उपज हासिल होगी बल्कि पर्यावरणीय प्रभाव भी कम होंगे। यह बात सिर्फ नैनो यूरिया के साथ ही नहीं बल्कि नैनो जिंक, नैनो कॉपर, नैनो डाई अमोनियम फॉस्फेट के साथ भी कही गई। 

ओपिनयन पेपर के लेखकों ने अपने निष्कर्ष में स्पष्ट कहा है कि “इफको के जरिए जो उम्मीदें दिखाईं गई थीं वह वास्तिवकता से काफी दूर हैं और इसके चलते किसानों को फसल उपज में काफी नुकसान हो सकता है जो कि गंभीर खाद्य सुरक्षा और किसानों की आजीविका को जन्म दे सकता है। साथ ही इससे नए उत्पादों को भी धक्का लग सकता है।”

ओपिनयिन पेपर में कहा गया है कि यह स्पष्ट है कि बाजार में उत्पाद लांच करने से पहले उसे वैज्ञानिकता के साथ उसका प्रभाव प्रमाणित होना चाहिए। पत्तों पर छिड़काव (फोलियर स्प्रे) वाले नैनो फर्टिलाइजर्स के संबंध में उपलब्ध वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि यह गलत तरीके से झूठे दावों के साथ बाजार में लाया गया। इसके पर्यावरण पर अच्छे प्रभाव को लेकर भी कोई वैज्ञानिक दावा नहीं है। 

नाइट्रोजन फसलों की वृद्धि के लिए एक बेहद जरूरी कंपाउंड है। हालांकि, मानवीय गतिविधियों ने नाइट्रोजन की अधिकता से कई पर्यावरणीय समस्याएं भी पैदा कर दी हैं जो कि जलवायु परिवर्तन,  समुद्रों में अम्लीकरण, झीलों-तालाबों आदि में नाइट्रोजन की अधिकता, ओजोन क्षरण, प्रजातियों के विविधता की विलुप्ति का कारण बन रही हैं। 

वैज्ञानिक कम्युनिटी लगातार यह दोहरा रही है कि वैश्विक मानवों के दवारा वैश्विक स्तर पर नाइट्रोजन साइकलिंग में हो रही वृद्धि प्लेनेटरी बाउंडरी को पार कर चुकी है। इसलिए नाइट्रोजन की अधिकता पर लगाम लगाना जरूरी है। हालांकि, नैनो फर्टिलाइजर एक संदिग्ध कंपाउंड है जिसका व्यवहार अभी तक पता नहीं।

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