Home खेती किसानी कपास उत्पादन मेंलगातार तीसरे साल ग‍िरावट…आपकी जेब पर भी पड़ेगा इसका असर

कपास उत्पादन मेंलगातार तीसरे साल ग‍िरावट…आपकी जेब पर भी पड़ेगा इसका असर

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 क‍िसानों के ल‍िए ‘व्हाइट गोल्ड’ कहे जाने वाले कॉटन के उत्पादन में इस साल सरकार ने भारी ग‍िरावट का अनुमान लगाया है. इसका सीधा असर आपकी जेब पर पड़ सकता है. टेक्सटाइल इंडस्ट्री को अपनी जरूरतें पूरी करने के ल‍िए महंगा कॉटन खरीदना पड़ेगा. ज‍िससे उनकी लागत बढ़ेगी और इससे कपड़े महंगे होने की संभावना बढ़ जाएगी. इस साल कॉटन का उत्पादन प‍िछले वर्ष के मुकाबले 25.96 लाख गांठ कम हो सकता है. एक गांठ में 170 किलो ग्राम कॉटन होता है. कॉटन के उत्पादन में लगातार तीसरे साल ग‍िरावट दर्ज की गई है. यह न स‍िर्फ क‍िसानों बल्क‍ि पूरी टेक्सटाइल इंडस्ट्री के ल‍िए बड़ी च‍िंता का व‍िषय बन गया है. आख‍िर ऐसा क्या हुआ क‍ि हमारा कॉटन उत्पादन जो 2017-18 में 370 लाख गांठ था वह 2024-25 में स‍िर्फ 299.26 लाख गांठ पर आकर अटक गया है.भारत में कॉटन उत्पादन एक व‍िषम पर‍िस्थ‍ित‍ि से गुजर रहा है. उत्पादन में तेजी से ग‍िरावट हो रही है.ज‍िसमें सबसे बड़ा रोल गुलाबी सुंडी का है. देश के अध‍िकांश कॉटन उत्पादक सूबों में इस कीट ने तबाही मचाई हुई है. महंगे कीटनाशकों का छ‍िड़काव करने के बावजूद इस पर काबू नहीं पाया जा सका है. आख‍िर ऐसा क्यों है? 

इसका जवाब हमने साउथ एश‍िया बायो टेक्नॉलोजी सेंटर के संस्थापक न‍िदेशक भागीरथ चौधरी से तलाशने की कोश‍िश की. चौधरी ने कहा क‍ि भारत में कॉटन उत्पादन एक व‍िषम पर‍िस्थ‍ित‍ि से गुजर रहा है. ज‍िसमें सबसे बड़ा रोल गुलाबी सुंडी (Pink Bollworm) का है. देश के अध‍िकांश कॉटन उत्पादक सूबों में इस कीट ने तबाही मचाई हुई है. महंगे कीटनाशकों का छ‍िड़काव करने के बावजूद इस पर काबू नहीं पाया जा सका है. क्यों‍क‍ि यह कीट कॉटन के बॉल के अंदर घुस जाता है. उस पर छ‍िड़काव का कोई असर नहीं होता. इसका कंट्रोल न होने से काफी क‍िसान हताश हैं और वे कॉटन की खेती कम कर रहे हैं. क‍िसानों को अच्छी गुणवत्ता वाले बीज नहीं म‍िले, इसका भी उत्पादन पर बुरा असर पड़ा है. 

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दाम भी है वजह? 

कॉटन का उत्पादन कम हुआ है, इसकी एक वजह यह है क‍ि इसकी खेती का रकबा घट रहा है. रकबा घटने की एक वजह गुलाबी सुंडी है, जबक‍ि दूसरी वजह यह है क‍ि अब क‍िसानों को बाजार में अच्छा दाम नहीं म‍िल रहा है. प‍िछले साल कई सूबों में क‍िसानों को कॉटन का एमएसपी तक नसीब नहीं हुआ. कपास उत्पादक किसानों को 2021 में 12000 रुपये प्रति क्विंटल तक का रेट मिला था, 2022 में 8000 रुपये तक का भाव म‍िला, लेकिन उसके बाद दाम गिरता चला गया. इसलिए रकबा भी कम होता चला गया. भागीरथ चौधरी का कहना है क‍ि सरकार को कॉटन की खेती में बड़े पर‍िवर्तन के ल‍िए टेक्नोलॉजी म‍िशन लाना होगा और यह सुन‍िश्च‍ित करना होगा क‍ि क‍िसानों को एमएसपी से कम कीमत न म‍िले.

साललाख गांठ 
2017-18370.00
2018-19333.00
2019-20360.65
2020-21352.48
2021-22311.18
2022-23336.6
2023-24325.22
2024-25299.26
एक गांठ=170 KGSource: Ministry of Agriculture 

आयात पर बढ़ेगी न‍िर्भरता 

कंफेडरेशन ऑफ इंड‍ियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री (CITI) की डीजी चंद्र‍िमा चटर्जी ने ‘क‍िसान तक’ से कहा क‍ि कॉटन उत्पादन घटने का सीधा असर इंडस्ट्री पर पड़ेगा. हमें आयात पर न‍िर्भर होना पड़ेगा. जबक‍ि आयात करने पर हम कपड़ों के दाम को लेकर प्रत‍िस्पर्धी नहीं रह जाएंगे. कॉटन आयात पर अभी सरकार ने 11 फीसदी ड्यूटी लगाई हुई है. इसे हटाना पड़ेगा वरना इसका असर कपड़ों की महंगाई पर पड़ सकता है. 

चटर्जी ने कहा क‍ि दुन‍िया में सबसे ज्यादा कॉटन का एर‍िया भारत में है, लेक‍िन हम उत्पादन में चीन से पीछे हैं. हम इस मामले में दूसरे नंबर पर हैं, क्योंक‍ि हमारी उत्पादकता बहुत कम है. भारत में प्रत‍ि हेक्टेयर कॉटन की उत्पादकता स‍िर्फ 436 क‍िलोग्राम है. इसे नहीं बढ़ाएंगे तो उत्पादन नहीं बढ़ेगा. उत्पादकता तब बढ़ेगी जब क‍िसानों को अच्छे बीज म‍िलेंगे और फसलों में गुलाबी सुंडी का प्रकोप कम होगा. क‍िसान आज भी कॉटन के अच्छे बीज के ल‍िए तरस रहे हैं.

कहां कम हुआ रकबा 

केंद्रीय कृष‍ि मंत्रालय के अनुसार 2024-25 में स‍िर्फ 112.75 लाख हेक्टेयर में कॉटन की खेती हुई है, जबक‍ि 2023-24 में इसका रकबा 123.71 और 2022-23 में 127.57 लाख हेक्टेयर था. बहरहाल, वर्तमान साल में महाराष्ट्र, पंजाब और राजस्थान में कॉटन की खेती का एर‍िया कम हो गया है. ज‍िसका असर उत्पादन पर द‍िखाई दे रहा है. 

महाराष्ट्र में प‍िछले साल 42.2 लाख हेक्टेयर में कॉटन की खेती हुई थी, जो इस साल घटकर स‍िर्फ 40.8 लाख हेक्टेयर रह गई थी. जबक‍ि पंजाब में तो एर‍िया आधे से भी कम हो गया. साल 2023-24 के दौरान पंजाब में 2.14 लाख हेक्टेयर में कॉटन की खेती हुई थी जो इस साल घटकर स‍िर्फ 1 लाख हेक्टेयर में स‍िमट गई है. जबक‍ि राजस्थान में प‍िछले वर्ष के 7.90 लाख हेक्टेयर के मुकाबले इस बार कपास महज 5.19 लाख हेक्टयर रह गया था. 

कॉटन की खेती में भारत 

चीन के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कपास उत्पादक है. कपास भारत की अहम कॅमर्श‍ियल क्रॉप है. जिससे सीधे तौर पर 60 लाख लोग जुड़े हुए हैं. यह खरीफ सीजन की फसल है. भारत की इकोनॉमी में इसका अहम योगदान है. हम दुनिया का लगभग 24 फीसदी कॉटन पैदा करते हैं. खरीफ मार्केट‍िंग सीजन 2024-25 के ल‍िए सरकार ने मीड‍ियम स्टेपल कॉटन का एमएसपी 7121 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल तय क‍िया है, जबक‍ि लांग स्टेपल का सरकारी भाव 7521 रुपये क्व‍िंटल तय है.  

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