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ददरी मेला: पशुओं की खरीद-बिक्री के साथ ही वर – वधू की भी तलाश

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ऐतिहासिक ददरी मेले के नंदीग्राम में लगने वाले दो दिवसीय गर्दभ बाजार की एक और खासियत है। बाजार के माध्यम से जाति विशेष के लोगों द्वारा रिश्तों की नई पौध भी रोपित की जाती है।इससे न सिर्फ उनमें आपसी लगाव बढ़ता है बल्कि दो व्यापारियों परिवारों के बीच संबंधों की डोर भी बंधती है। यही कारण है कि ददरी मेले का जाति विशेष के लोगों द्वारा इंतजार किया जाता है। वर्ष 2021 में करीब 300 से अधिक कारोबारियों ने अपने बच्चों के लिए रिश्ते की बात की थी।

इतिहासकार डॉ. शिकुमार सिंह कौशिकेय गर्दभ बाजार की विशेषता का जिक्र करते हुए बताते हैं कि ददरी मेले की ऐतिहासिकता और व्यापकता को देखते हुए यहां दूर-दूर से पशु कारोबारी आते हैं। पशुओं की खरीद-बिक्री के साथ ही अपने लड़के-लड़कियों के लिए वर और वधू की भी तलाश करते हैं। अपने काम धंधे में व्यस्त होने के कारण ये लोग एक दूसरे से मिलने से वंचित रहते हैं, ऐसे में इस दो दिवसीय बाजार में अपनों से मिलकर उन पर खूब स्नेह लुटाते हैं। बल्कि वैवाहिक निमंत्रणों का भी आदान-प्रदान करते हैं।

डॉ. शिकुमार सिंह कौशिकेय ने कहा कि इससे मेले की महत्ता और बढ़ जाती है। मेले में विशेष जाति के स्थानीय लोगों के साथ ही बिहार के निवासी आते हैं। अपनी पसंद और नापसंद के लिहाज से उन्हें जीविका के साथ-साथ जीवन साथी मिल जाता है। पहले नंदीग्राम में गाजियाबाद, प्रयागराज, जम्मू-कश्मीर, कौशांबी, जयपुर, वाराणसी के अलावा नेपाल, बिहार के कारोबारी आते थे। दिन में जानवरों की खरीद-फरोख्त करते थे।

रात में लोक नृत्य पखावज के बीच अपने लड़के और लड़कियों के लिए रिश्तों की बात करते थे। वर्ष 2021 में करीब 300 से अधिक कारोबारियों ने रिश्ते की बात की थी। जबकि मेले के गर्दभ बाजार में 2000 के करीब कारोबारी आए थे। इसके बाद दो वर्ष तक मेले का आयोजन नहीं हुआ।

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