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खेती में कॉपरपोरेट का निवेश महज 2-3%

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खेती-बाड़ी क्षेत्र की भारत के जीडीपी में भले ही हिस्सेदारी घट रही हो, लेकिन यह अभी भी देश में सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार उपलब्ध कराता है। लेकिन दिक्कत यह है कि इस क्षेत्र में अभी भी कारपोरेट सेक्टर का पर्याप्त निवेश नहीं हो पा रहा है। नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद का कहना है कि कृषि क्षेत्र में तेज वृद्धि दर चाहिए तो यहां कारपोरेट सेक्टर को निवेश बढ़ाना ही होगा।

प्रो. रमेश चंद ने शनिवार को यहां रूरल वॉयस एग्रीकल्चर कॉन्क्लेव 2023 का उद्घाटन करते हुए कहा कि कृषि क्षेत्र की तेज वृद्धि दर के बगैर विकसित भारत के लक्ष्य को पाना मुश्किल होगा। उन्होंने कहा कि भारत दो लक्ष्य के साथ चल रहा है- भारत को विकसित बनाना है और इस विकास में सबको साथ लेकर चलना है। उन्होंने कहा कि विकसित भारत बनने के लिए अगले 24-25 वर्षों तक 7 से 8 प्रतिशत की विकास दर होनी चाहिए। विश्व बैंक के अनुसार विकसित देश होने के लिए प्रति व्यक्ति आय 12000 डॉलर यानी 10 लाख रुपये होना चाहिए। अभी हमारी प्रति व्यक्ति आय 1,70,000 रुपये के आसपास है। इसे अगले 24 वर्षों में 6 से 7 गुना बढ़ाना पड़ेगा। अगर कृषि क्षेत्र 3.5 से 4% की दर से नहीं बढ़ता है तो 2047 तक विकसित भारत बनना लगभग असंभव हो जाएगा। कृषि में ऊंची विकास दर हासिल किए बिना हम विकसित भारत नहीं बन सकते हैं।
खेती में कारपोरेट निवेश नगण्य

उन्होंने बताया कि भारत में कृषि में तीन तरह के निवेश होते हैं। पहला निवेश किसान करता है। कृषि में 80 से 82% निवेश किसान खुद या कर्ज लेकर करता है। उसके बाद 15 से 16% निवेश सरकार करती है। यह नहरों के रूप में, गांव में बिजली उपलब्ध कराने के तौर पर, वेयरहाउस बनवाकर आदि के रूप में होता है। तीसरा निवेश कारपोरेट सेक्टर का है। अपेक्षा तो की जाती है कि कारपोरेट सेक्टर कृषि क्षेत्र में निवेश करेगा लेकिन अभी यह ज्यादा मार्केटिंग तक सीमित है। उत्पादन के क्षेत्र में उनका निवेश सिर्फ 0.5% है। जहां भी कारपोरेट सेक्टर ने अच्छा निवेश किया है उसके नतीजे भी बेहतर आए हैं।

सरकार भी किसान के बदले कंज्यूमर को चुनती है

इंडियन डेयरी एसोसिएशन के प्रेसीडेंट डॉ. आर. एस सोढ़ी ने इस अवसर पर कहा कि जब भी किसान और शहरी उपभोक्ता के बीच किसी एक को चुनने की बारी आती है तो नीति निर्माता अक्सर कंज्यूमर की ओर झुक जाते हैं। इससे शेयर बाजार का सेंसेक्स बढ़ता है तो उसे खुशहाली के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है, लेकिन जब सब्जियों के या खाने-पीने की चीजों के दाम बढ़ते हैं तो उसे खाद्य महंगाई करार दे दिया जाता है। इसकी जगह फूड प्रॉस्पेरिटी इंडेक्स आए। इसके लिए माइंडसेट बदलने की जरूरत है।

डेयरी सेक्टर में भी बढ़ेगा खूब रोजगार

उन्होंने बताया कि अभी संगठित क्षेत्र में रोजाना 12 करोड़ लीटर दूध का उत्पादन होता है। अगले 7 वर्षों में यह 24 करोड़ लीटर हो जाएगा। इस तरह देखें तो अगले 7 से 8 वर्षों के दौरान दूध क्षेत्र में एक लाख करोड़ रुपए का निवेश होगा। जहां तक नौकरियों की बात है तो संगठित क्षेत्र में जब एक लाख लीटर दूध का उत्पादन होता है तो उससे 6000 लोगों को काम मिलता है। इस तरह देखें तो 12 करोड़ लीटर दूध उत्पादन बढ़ेगा तो साथ-साथ में 72 लाख नौकरियां निकलेंगी।

करने होंगे कई तरह के कार्य

एमसीएक्स के चेयरमैन तथा नाबार्ड के पूर्व चेयरमैन हर्ष कुमार भनवाला ने कहा कि आज हम कृषि को सिर्फ कृषि के तौर पर नहीं देख सकते। कृषि को विकसित करने के लिए कई तरह कार्य करने पड़ेंगे। 2047 तक कृषि को अच्छी सड़कें, बिजली, मार्केट, डिजिटल प्लेटफॉर्म और इंटरनेट की जरूरत है। आज युवा इंटरनेट पर हर चीज का आर्डर देते हैं। इंटरनेट के माध्यम से फूड कंजप्शन बढ़ रहा है। यह ऐसा क्षेत्र है जो रोजगार दे सकता है। अनेक ग्रामीण इलाकों में कनेक्टिविटी की समस्या है। गांव तक अच्छी कनेक्टिविटी हो साल 2047 तक विकसित भारत का सपना पूरा होगा।

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