देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के तहत आने वाला बुंदेलखंड क्षेत्र किसी समय में सूखे और किसानों की आत्महत्या के लिए जाना जाता था. लेकिन आज यहां पर तस्वीर बदल रही है. आज इसी बुंदेलखंड को ऑर्गेनिक खेती के लिए जाना जा रहा है. यहां के किसान प्रेम सिंह ने अपनी सफलता की कहानी लिखी है.
देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के तहत आने वाला बुंदेलखंड क्षेत्र किसी समय में सूखे और किसानों की आत्महत्या के लिए जाना जाता था. लेकिन आज यहां पर तस्वीर बदल रही है. आज इसी बुंदेलखंड को ऑर्गेनिक खेती के लिए जाना जा रहा है. यहां के किसान प्रेम सिंह ने अपनी सफलता की जो कहानी लिखी है, उसने बाकी किसानों को भी रास्ता दिखाया है. अब खेती के जानकार प्रेम सिंह से संपर्क कर रहे हैं, यह जानने के लिए कि आखिर उन्होंने ऐसा क्या किया जिसने उनके खेत को इतना हरा-भरा और उपजाऊ बना डाला है.
खेती के लिए प्रेम का खास तरीका
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट ने एक एनजीओ परमार्थ समाज सेवी संस्थान के हवाले से बताया है कि अनुमान लगाया है कि जनवरी 2016 से लेकर अब तक बुंदेलखंड में करीब 113 किसान आत्महत्या कर चुके हैं. पिछले 10 सालों में इस क्षेत्र ने चार बार सूखे का सामना किया है. साथ ही फसलों के चौपट होने से 70 फीसदी किसानों पर बुरा असर पड़ा है. 53 साल के प्रेम सिंह उन चंद किसानों में शामिल हैं जिनके पास 32 एकड़ की खेती योग्य जमीन में जल स्तर के साथ एक बाग, प्रोसेसिंग यूनिट्स समृद्ध पशुधन है. सन्1989 से प्रेम सिंह जो काम करते आ रहे हैं, उसे सन् 2014 में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजास्टर की तरफ से प्रस्तावित किया जा चुका है. इंस्टीट्यूट की तरफ से विविधीकरण पर जोर दिया गया है जिसमें छोटी फसलें और पशुपालन शामिल है.
कम बारिश और सूखे से परेशान क्षेत्र
बुंदेलखंड में 13 जिले हैं इनमें से सात (झांसी, जालौन, ललितपुर, हमीरपुर, महोबा, बांदा और चित्रकूट) उत्तर प्रदेश में और छह मध्य प्रदेश (दतिया, टिकमगढ़, छतरपुर, दमोह, सागर और पन्ना) में हैं. इन सभी जिलों को औसत से भी बेहद कम और बारिश और औसत से कम पानी की उपलब्धता के साथ-साथ सूखे का भी सामना करना पड़ता है. इस परिदृश्य को ध्यान में रखकर ही बांदा के एक्टिविस्ट्स संजय और प्रेम सिंह के विविधकरण के मॉडल को सूखे की स्थिति में छोटी फसलों से बदला जा सकता है.
क्या है प्रेम सिंह की खासियत
प्रेम सिंह की प्रोसेसिंग यूनिट्स और ऑर्गेनिक फार्मिंग में उनकी विविधता, बाग और पशुधन ने उनकी कृषि को और समृद्ध किया है. आज इस गांव के 22 फीसदी लोग ने अपनी खेती योग्य भूमि को बाग में तब्दील कर दिया है. इससे उनकी आय में भी इजाफा हुआ है और साथ ही उनकी उपज भी बढ़ गई है. प्रेम सिंह के बाग को पानी से भरा हुआ देखा जा सकता है. पेड़ फलों से लदे हैं जिससे किसान की जोखिम लेने की क्षमता में सुधार हुआ है. साथ ही उनके पशु भी स्वस्थ हैं. मिट्टी की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है क्योंकि प्रेम सिंह प्राकृतिक फर्टिलाइजर का प्रयोग कर रहे हैं.
प्रेम ने लिखी किताब
प्रेम अपने तीन भाईयों के साथ खेती करते हैं. उनकी खेती की विशेषताओं में फसलों को बदल-बदल लगाना, पशुपालन, ऑर्गेनिक खेती और फूड प्रोसेसिंग शामिल है. प्रेम के पास यूनिट्स हैं जिससे दाल, दलिया के लिए प्रयोग हो सकती है, सरसों के बीज तेल के लिए, फलों से अचार और मुरब्बा बनाया जा सकता है और दूध से घी बन सकता है. प्रेम ने अपनी खेती पर एक किताब ‘आवरतणशील खेती’ भी लिखी है. प्रेम इस समय जर्मनी के एक्टिविस्ट उलरिके रेनहार्ड के साथ काम कर रहे हैं जो पन्ना में पानी के संकट को सुलझाने के लिए तरीके तलाश रहे हैं.