निरसा के किसान रिंकु कुमार साव अब अमरुद एवं पपीते की खेती में हाथ आजमा रहे हैं। लगभग 10 माह पूर्व उन्होंने एक सौ थाई वैरायटी के अमरुद के पौधे लगाए हैं। साथ ही पपीता के भी थाई वेराइटी रेड लेडी 786 के लगभग 1000 पौधे लगाए हैं।
हरे छिलके के अंदर पीले गुदेवाला तरबूज, पीले छिलके के अंदर लाल गुदेवाला तरबूज, स्ट्रॉबेरी आदि की खेती कर जिले में अपनी अलग पहचान बनाने वाले निरसा के किसान रिंकु कुमार साव अब अमरुद एवं पपीते की खेती में हाथ आजमा रहे हैं। लगभग 10 माह पूर्व उन्होंने एक सौ थाई वैरायटी के अमरुद के पौधे लगाए हैं। साथ ही पपीता के भी थाई वेराइटी रेड लेडी 786 के लगभग 1000 पौधे लगाए हैं। अमरुद के पौधों ने फल देना शुरू भी कर दिया है, वहीं अगस्त माह से पपीते में भी फल आ जाएंगे।
रिंकु के अनुसार, अमरुद से लगभग एक लाख तथा पपीता से इस सीजन में लगभग 10 लाख रुपये रुपए की आय होने की संभावना है।
अमरूद के एक पौधे से एक सीजन में 50 से 60 किलो फल की प्राप्ति
किसान रिंकु कुमार साव ने बताया कि थाई वेरायटी के अमरुद के पौधे उन्होंने पश्चिम बंगाल से मंगवाए हैं। एक पौधे की कीमत 100 रुपये पड़ी थी। 15 से 16 माह में अमरुद के पौधे में फल आना शुरू हो जाता है। पौधा जब 36 माह का हो जाता है, तब एक पौधे से कम से कम 30 से 40 किलो अमरुद एक सीजन में आसानी से प्राप्त हो सकता है। यदि फसल अच्छी रही तथा सभी परिस्थितियां आपके अनुकूल रहीं तो एक पौधे से 50 से 60 किलो तक भी अमरुद प्राप्त किया जा सकता है। अमरुद का पौधा 6 फीट से यदि ऊंचा होने लगे तो उसकी कटाई कर देनी पड़ती है, ताकि पौधा ज्यादा ऊंचा ना हो, बल्कि वह चारों तरफ फैले। इससे पौधे की चौड़ाई एवं पौधे में दवाई एवं कीटनाशक छिड़काव करने में आसानी होती है।
पौधा ज्यादा बड़ा नहीं होने पर कृषि कार्य में भी आसानी होती है। वर्ष में दो बार अमरुद का फल प्राप्त कर सकते हैं। जब सीजन नहीं होता है, उस वक्त अमरुद का फल लगभग 60 रुपये प्रति किलो की दर से बिकता है। कहा कि इस वर्ष ज्यादा नहीं, लेकिन लागत के अलावा कम से कम एक लाख रुपये की कमाई अमरुद के फल से होने की संभावना है।
36 माह बाद अमरूद से प्रति वर्ष 3 से 5 लाख की आमदनी
रिंकु साव ने बताया कि थाई वेरायटी के अमरुद का पौधा 36 माह में पूर्ण रूप से पेड़ बन जाता है। एक पौधे से एक वर्ष में कम से कम 60 किलो से लेकर 120 किलो तक अमरुद का फल प्राप्त कर सकते हैं। 2 वर्ष के बाद पौधा लगाने एवं उसके रखरखाव का सारा खर्च निकल जाता है। 36 माह बाद अमरुद के फल से 80% तक शुद्ध आमदनी होती है। 36 माह बाद 100 पेड़ से कम से कम 3 से 5 लाख रुपए की कमाई प्रति वर्ष किसान को हो सकती है।
पपीते से 1 वर्ष में 10 लाख रुपये की आमदनी होने की संभावना
रिंकु साव ने बताया कि इस वर्ष उन्होंने नमूने के तौर पर लगभग 1000 से 1200 थाई वेरायटी रेड लेडी 786 पपीते के पौधे लगाए हैं। एक पौधे से कम से कम 50 किलोग्राम तक पपीते का फल प्राप्त होने की संभावना है। 8 माह में पपीते का पौधा फल देने लगता है। यदि फसल सही रही तो 1 वर्ष में कम से कम 10 लाख रुपए तक की आमदनी होने की संभावना है। उन्होंने बताया कि पपीते की खेती में जब पौधा 3 माह का होता है, उस वक्त एक वायरस का प्रकोप होता है। यह वायरस पूरी फसल को बर्बाद कर देता है। इसलिए पपीते की खेती करने वाले किसान को कम से कम 3 महीने तक पपीते की फसल की सही से देखरेख करनी होती है तथा समय-समय पर वायरस से बचाव के लिए वायरस रोधी दवा का छिड़काव करना पड़ता है।
मल्चिंग विधि का प्रयोग
उन्होंने बताया कि वह ज्यादातर फसलों को लगाने के लिए मल्चिंग विधि (इस विधि में लंबी कतार बनाई जाती है तथा कतार के ऊपर प्लास्टिक ढंक दिया जाता है प्लास्टिक के नीचे पाइप द्वारा टपक विधि से सिंचाई की जाती है) अपनाई है। उन्होंने कहा कि इससे कई फायदे हैं। एक बार की जुताई में ही आप दो बार से तीन बार फसल उपजा सकते हैं। साथ ही निकाई गुड़ाई का खर्च भी बचता है। उन्होंने मल्चिंग विधि से तरबूज की खेती की है। तरबूज के फसलों को निकालकर उस स्थान पर जैविक खाद डालकर पपीते की फसल लगाई है। इसके लिए उन्हें अलग से जुताई एवं निकाई गुड़ाई की आवश्यकता नहीं हुई। इससे मजदूरी बचती है तथा समय भी बचता है।