मध्य प्रदेश के लिए सोयाबीन की टॉप वैरायटी कौन सी

0
21

बादलों की आवाजाही शुरू होने के बाद मध्य प्रदेश में मानसून की बारिश 20 जून के आसपास होने की संभावना बन गई है। इस वर्ष अच्छी बारिश के अनुमान से किसानों में उत्साह है। किसान  सोयाबीन की फसल का विकल्प नहीं ढूंढ पाए हैं इसलिए भले ही भाव कम बने हुए हैं, लेकिन फिर भी किसान  सोयाबीन की फसल की बोएंगे। किसान साथियों मध्य प्रदेश में खरीफ सीजन के दौरान सबसे अधिक सोयाबीन की खेती होती है। अच्छी पैदावार के लिए  बीज का अच्छा होना अति आवश्यक है। वहीं सोयाबीन की सभी किस्मों Top  Soybean varieties for MP की जानकारी होना भी जरूरी है।

किसानों की इन्हीं परेशानियों को देखते हुए चौपाल समाचार ने मध्य प्रदेश के लिए अनुशंसित सोयाबीन की सभी उन्नत किस्मों की जानकारी को संग्रह किया है। सोयाबीन की इन उन्नत किस्मों में 2024 के दौरान चिन्हित की गई  सोयाबीन की किस्में एवं रिलीज की गई सोयाबीन की वैरायटियों को भी सम्मिलित किया गया है।  सोयाबीन के उन्नत वैरायटी कौन सी है एवं बीज कहां मिलेगा।

एनआरसी 150 सोयाबीन किस्म

इस वर्ष सबसे अधिक चर्चा में सोयाबीन की यही वैरायटी है। सोयाबीन की इस वैरायटी से किसानों को पिछले वर्ष विपरीत मौसम के बावजूद अच्छी पैदावार मिली थी। सोयाबीन की यह किस्म NRC 150 आईसीएआर-भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर (मध्य प्रदेश) द्वारा विकसित की गई है। कृषि वैज्ञानिकों ने इसी का निदान निकलते हुए जेएस 9560 के समकक्ष एनआरसी 150 सोयाबीन की किस्म को विकसित किया है।

पिछले वर्ष इस  सोयाबीन को कई क्षेत्रों में बोया गया एवं ट्रायल किया गया। सभी ओर से  सोयाबीन की इस किस्म के अच्छे रिजल्ट प्राप्त हुए हैं। यह खासकर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड क्षेत्र, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र का विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्र के लिए अनुशंसित की गई है।

एनआरसी 150 की विशेषताएं :- एनआरसी 150 किस्म 91 दिन में परिपक्व होती है। यह किस्म सोयाबीन की प्राकृतिक गंध के लिए जिम्मेदार लाइपोक्सीजिनेज-2 एंजाइम से मुक्त तथा चारकोल सड़ांध रोग के लिए प्रतिरोधी है। सोयाबीन की यह किस्म 7 क्विंटल प्रति बीघा की पैदावार देगी। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार  सोयाबीन की इस किस्म से 35 से 38 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार होगी।

एनआरसी 152  सोयाबीन किस्म

सोयाबीन की NRC 152 किस्म आईसीएआर-भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर (मध्य प्रदेश) द्वारा विकसित की गई है। यह एक अति शीघ्र पकने वाली किस्म है। यह किस्म मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड क्षेत्र, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र का विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्र के लिए अनुशंसित की गई है।

एनआरसी 152 की विशेषताएं :- एनआरसी 152 के पकने की अवधि 90 दिनों से कम की है। खाद्य गुणों के लिए उपयुक्त तथा अपौष्टिक क्लुनिट्ज़ ट्रिप्सिंग इनहिबिटर और लाइपोक्सीजेनेस एसिड -2 जैसे अवांछनीय लक्षणों से मुक्त है।  सोयाबीन की नई किस्म एनआरसी 152 अधिकतम 38 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार देने में सक्षम है।

एनआरसी 181  सोयाबीन किस्म

सोयाबीन की यह एनआरसी 181 किस्म सीमित वृद्धि वाली है। जिसके सफेद फूल, गहरी भूरी नाभिका, भूरे रोयें होते हैं। कुनिट्ज़ ट्रिप्सिन इनहिबीटर मुक्त, पीला मोजेक एवं टारगेट लीफ ऑफ स्पॉट के लिए प्रतिरोधी यह किस्म राइजोक्टोनिया एरियल ब्लाईट, चारकोल सड़न एवं एन्थ्रेक्नोज के प्रति संवेदनशील है। मध्य क्षेत्र के लिए अनुशंसित इस किस्म की परिपक्वता अवधि 93 दिन है और इसका औसत उत्पादन 26-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

आरवीएस 1135  सोयाबीन वैरायटी

सोयाबीन की आर. वी. एस. एम 11-35 राजमाता सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय (RVSKV) द्वारा विकसित की गई है। यह किस्म लगातार दो वर्षों तक ए.आई.सी.आर.पी. नेटवर्क के तहत राष्ट्रीय स्तर पर सर्वोच्च उत्पादन देने के कारण प्रथम स्थान प्राप्त किया है जो कि तकनीकी दृष्टी से एक बहुत बड़ी बात है व इस किस्म की एक बहुत बड़ी सफलता एवं उपलब्धि है। हमारी भाषा में समझे तो पूरे भारत में एक नहीं दो-दो बार गोल्ड मेडल लेने वाली भारत की यह एक मात्र किस्म है जो कि अपने उच्चतम गुणवत्ता स्तर को स्वयं सिद्ध करती है।

आई.सी.ए.आर. की कमेटी द्वारा  सोयाबीन अनुसंधान केन्द्र मुरैना से विकसित नवीन  सोयाबीन किस्म आर.वी.एस.एम 11-35 को जो कि दो विभिन्न पैतृक किस्म जे.एस 335 एवं पी.के. 1042 के संकरण से तैयार की गई है, को अधिक पैदावार, पीला मोजेक वायरस एवं चारकोल रॉट एवं जड़ सड़न के प्रति प्रतिरोधकता के आधार पर एक नई सोयाबीन किस्म के रूप में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र. राजस्थान, गुजरात एवं बुंदेलखंड क्षेत्र के लिये अनुशंसा के रूप में चिन्हित किया गया है।

सोयाबीन किस्म आर.वी.एस.एम.11-35 का औसत उत्पादन क्षमता लगभग 25-30 क्विं. हेक्ट. अधिकतम उत्पादन क्षमता व्यवहारिक एवं आदर्श परिस्थितियों में 30-35 क्विं. हेक्टे. है। इस किस्म की मध्यम परिपक्वता अवधि लगभग 94 से 96 दिवस अधिक वर्षा एवं देर तक वर्षा की स्थिति बहुत गहरी जमीनों में इस अवधि में स्वाभाविक रूप से परिवर्तन संभव है। इस किस्म में येलो मोजेक एवं चारकोल रॉट आदि के प्रति प्रतिरोधकता क्षमता है, वहीं फली चटकने (शेटरींग) की समस्या बिल्कुल नही। विपरित जलवायु परिस्थितियों मे मजबूत जडतंत्र एवं गहरी जड़े होने से इस किस्म में कम वर्षा या जल्दी वर्षा जाने की स्थिति या सूखा होने पर जमीन में गहराई में उपलब्ध नमी एवं न्यूट्रीएंट (तत्वों) को पौधे को उपलब्ध करवाने से पौधे पर तनाव (स्ट्रेस) कम आता है, जिससे उत्पादन पर विपरीत प्रभाव कम पड़ता है। उसी प्रकार अधिक वर्षा या देर या लम्बी अवधि तक वर्षा की स्थिति में इस किस्म में मजबूत जडतंत्र होने व चारकोल रॉट एवं जड़ गलन की समस्या नही आती।

स किस्म की फलियों का छिलका मोटा होता है व फलियों रुएदार नही चीकनी होती है जिससे भारी वर्षा की स्थिति में जब फसल कि परिपक्वता अवधि होती है। फलियाँ सुख जाती है तब भी फली रुएदार नहीं चिकनी होने से वर्षा का पानी फली पर नही ठहरता है नीचे गिर जाता है व फली का छिलका मोटा होने से वर्षा की नमी सुखे दाने तक नही पहुंच पाती जिससे दाना दागी नही होता है व उसका अंकुरण भी प्रभावित नहीं होता है।

इस किस्म के पौधे, ऊंचाई वाले, फैलावदार, शाखायुक्त होने व फलियों भी तने के ऊपर से लगने के कारण यह किस्म हार्वेस्टर से काटने हेतु अत्यन्त सुविधाजनक एवं सुरक्षित जिससे मजदूरों की समस्या एवं पैसे व समय दोनो की बचत जिससे लागत में कमी व अप्रत्यक्ष रूप से किसानों की आय में वृद्धि। इस किस्म मे दानों की अंकुरण क्षमता अविश्वसनीय एवं असाधारण है जो कि लगभग 90-95% है।

यह किस्म मध्यप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात एवं बुंदेलखण्ड एवं देश के अन्य क्षेत्रों में अपने सदाबहार असाधारण गुणों के कारण अपना कब्जा जमा कर सम्पूर्ण क्षेत्र पर आच्छादित हो जावेगी। सामान्य परिस्थिति में 85/90% अंकुरण होने पर इस किस्म के  बीजों की बिजाई दर 13 से 15 किलो प्रति बीघा या 25/30 किलो एकड या 65/70 किलों हेक्टेयर रखने तथा लाईन से लाइन की दूरी 18 इंच या 1.5 फीट रखने एवं आदर्श उत्पादन देती है।

JS 2303  सोयाबीन किस्म

 सोयाबीन किस्म JS 2303 इसी वर्ष मार्च 2024 में मध्यप्रदेश के लिए अनुशंसित की गई है। सोयाबीन की इस 2303 किस्म को जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर द्वारा विकसित किया है। यह किस्म 2034 और 9560 सोयाबीन किस्म की अवधि के बराबर बताई जा रही है। बेहतर उत्पादन क्षमता एवं रोग प्रतिरोधी होने के कारण किसानों के बीच 2303 सोयाबीन वैरायटी की सबसे अधिक चर्चा है। खास बात यह है कि सोयाबीन कि इस वैरायटी को रबी एवं खरीफ दोनों सीजन में बोया जा सकता है। Top  Soybean varieties for MP

इस किस्म की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसकी फली का गुच्छा तीन फलियां वाला रहता है। 2303  सोयाबीन के अंतिम छोर तक तीन फलियों का एक गुच्छा रहेगा। इस फलियां चिकनी और हाइट 2309  सोयाबीन किस्म के मुकाबले ज्यादा बताई जा रही है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार सोयाबीन की इस इस वैरायटी के पकाने की अवधि 88 से 92 दिन की बताई जा रही है। आदर्श परिस्थितियों में सोयाबीन की इस किस्म का उत्पादन अधिकतम 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर। 

सोयाबीन की नवीन अनुशंषित किस्म जे.एस. 23-09

जे.एस. 23-09 शीघ्र पकने वाली प्रजाति है, जो 88 दिन में पक जाती है। इसकी उपज क्षमता 26-28 क्वि./ हैक्टेयर है।इसके फूल का रंग गुलाबी एवं  बीज नाभि का रंग काला होता है। इसके तना एवं फली चिकनी होते हैं। इसमें अनुकूल एवं प्रतिकूल दोनों परिस्थितियों में अधिक उपज देने की क्षमता है।

यह बहुप्रतिरोधी प्रजाति है, जो जैविक व्याधियाँ जैसे पीला मोजैक, चारकोल सड़न, पर्णीय झुलसन, एन्थ्रेक्नोज एवं फली झुलसन आदि बीमारियों के लिए मध्यम रोधिता से उच्च रोधिता है। तना मक्खी, चक्रभृंग एवं पत्ति भक्षकों के लिए मध्यम रोधिता है।

 सोयाबीन किस्म जे. एस. 2172

जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर (JNKVV) म.प्र. द्वारा किसानों की उक्त अपेक्षाओं को ध्यान में रखते हुए  सोयाबीन की नवीनतम किस्म जे.एस. 21-72 हाल ही में जारी की है। यह किस्म देश के मध्यक्षेत्र म.प्र., बुंदेलखण्ड, राजस्थान, गुजरात व महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र हेतु अनुशंसित की गई है जो कि मध्यम से अधिक वर्षा वाले व मध्यम से अधिक भारी मिट्टी (हेवी स्वाईल) हेतु उपयुक्त किस्म है।

इस किस्म की अवधि मध्यम लगभग 94-95 दिवस है। इसकी औसत उत्पादन क्षमता लगभग 25-28 क्विं /हेक्टे. है किंतु किसानों से प्राप्त आकड़ों एवं व्यवहारिक स्थिति में इस किस्म ने अधिकतम 30/35 क्विंटल हेक्टेयर तक उत्पादन देकर किसानों को अचरज में डाल दिया है।

इस किस्म का पौधा मध्यम ऊँचाई वाला, शाखाओं वाला, फैलावदार होता है एवं इसका तना हरा होता है। इस किस्म का दाना पीला, चमकदार, अत्यंत सुंदर, हायलम ब्राउन पत्तियाँ हरी एवं पत्तियाँ चोड़ी नुकीली (ओवेट शेप), फूलों का रंग सफेद तथा फलियाँ रोएदार चुपाई (डिबलिग) एवं चोड़ी बीजाई हेतु एक आदर्श किस्म लाईन से लाईन की दूरी 45 से.मी. पौधे से पौधे की दूरी 7-8 से.मी. रखने पर भी आदर्श परिणाम सामान्य स्थिति में 16 से 18 इंच दूरी रखने एवं  बीज दर हेक्टेअर लगभग 80 किलो रखने पर आदर्श परिणाम।

तना मजबूत होने से (लाजिंग) आड़ा पड़ने की समस्या नहीं, पौधे की ऊँचाई एवं फैलाव अच्छा होने से हरवेस्टर से काटने हेतु उपयुक्त। येलो मोजेक वायरस (YMV), चारकोल रॉट, पत्तियों पर बेक्टेरियल पाश्चुल एवं येलो स्पॉट के प्रति सहनशील किस्म होने से किसानों को बिमारियों से होने वाले नुकसान से एक सुरक्षा कवच एवं आत्मविश्वास प्रदान करती है।

 सोयाबीन जे. एस. 95-60

Top  Soybean varieties for MP जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (J.N.K.V.V.) म.प्र. द्वारा भारत में पहली अति शीघ्र पकने वाली किस्म जे.एस. 95-60 विकसित की गई है। यह हाल ही में जारी  सोयाबीन किस्म जे. एस. 93-05 से भी लगभग 8-10 दिन पूर्व में पक कर तैयार होजाती है तथा इसकी उत्पादन क्षमता एवं गुण शीघ्र पकने वाली अन्य सभी किस्मों की तुलना में सर्वाधिक है।

 बीज दर 80 किलो प्रति हेक्टेयर एवं कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. (1 फीट) रखने पर अधिकतम उत्पादन लगभग 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक फसल की अवधि कम होते हुए भी आदर्श परिस्थितियों में देने की क्षमता इस किस्म में है। इस किस्म में खरपतवार नियंत्रण खेतों में पानी भरने की स्थिति (वॉटर लागिंग) न हो इसका पूरा ध्यान रखें।

जे. एस. 95-60 के दाने का आकार अण्डाकार, बोल्ड, नाभिका (हायलम) हल्का भूरा (धूसर), दाने का रंग पीला, चमकदार, अंकुरण क्षमता 85-90 प्रतिशत, पौधे का प्रकार बौनी किस्म, ऊँचाई 45-50 से.मी., पत्ती का रंग गहरा हरा, रोएँ तने, पत्तियाँ, फली, चिकनी, रोएँदार नहीं, आधे फूल आने की अवधि 30 दिवस, फूलों का रंग नीला, फली का रंग गहरा भूरा, फली का प्रकार 3-4 दानों की फलियाँ व 4 दानों की फलियाँ 25-30 प्रतिशत, फली चटकने की समस्या नहीं, अधिकतम उत्पादन क्षमता 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर व्यावहारिक रूप से आदर्श परिस्थितियायें में, फसल की अवधि 85-88 दिवस।

 सोयाबीन जे.एस. 20-34

Top  Soybean varieties for MP तीन फसल लेने की योजना का समायोजन करने हेतु, कृषकों का आकर्षण अर्ली (जल्दी) आने वाली किस्मों की तरफ बढ़ता जा रहा है। अर्ली  सोयाबीन किस्म में जे.एस. 95-60 किस्म के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था किंतु जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय ने देश के मध्यक्षेत्र मध्यप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र हेतु जे.एस. 20-34 अनुशंसित है। यह किस्म जे. एस. 95-60 के लगभग व जे.एस. 93-05 से लगभग 8-10 दिन पूर्व पककर तैयार हो जाती है।

इसी उत्पादन क्षमता एवं गुण शीघ्र पकने वाली अन्य सोयाबीन किस्मों की तुलना में सर्वाधिक है। गोल अण्डाकार पत्तियाँ होने के कारण कॉम्पेक्ट या सघन  प्लांट होने से शाखाएं बहुत अधिक न होने के कारण हवा प्रकाश एवं पौध संरक्षण औषधि छिड़काव के समय नीचे तक आसानी से पहुँचते हैं जिससे कीट-व्याधि नियंत्रण अधिक आसान एवं प्रभावशाली रहता है। देरी से बोनी होने एवं आखरी पानी न गिरने या देरी से गिरने की दशा में भी यह वैरायटी अच्छा अच्छी पैदावार देने में सक्षम है।

इस किस्म का  बीज उत्तम अंकुरण क्षमता होने के कारण 75-80 किलो प्रति हेक्टेयर, कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. (एक फीट) रखने पर फसल की अवधि कम होने की स्थिति में भी इस किस्म में आदर्श परिस्थितियों में 25 क्विं. प्रति हेक्टेयर या इससे अधिक उत्पादन देने की क्षमता भी इस किस्म में है। इस किस्म के दानों का आकार – गोलाकार, मध्यम बोल्ड, 100 दानों का वजन 11-12 ग्राम, दाने का प्रकार पीला चमकदार, नाभिका (हायलम) काला, अंकुरण क्षमता – उत्तम 80-90 प्रतिशत तक, पौधे का प्रकार – बौनी किस्म 40-45 से.मी. परिमित वृद्धि (डिटरमिनेट  प्लांट), कम फैलने वाला, सीधा  प्लांट (इरेक्ट)।

पत्तियों का रंग – गहरा हरा, पत्ती का आकार – गोल अण्डाकार, रोएं – फलियाँ रोएंदार नहीं। आधे फूल आने की अवधि 34-36 दिवस (अर्ली) फूलों का रंग – सफेद, फली का रंग- पीला, फली का प्रकार – 2-3 दाने की फलियाँ, फलियाँ चटकने की समस्या नहीं, आदर्श पोध संख्या – 6 लाख पौधे प्रति हेक्टेयर फसल की अवधि 85-88 दिवस, तेल की मात्रा 20-22 प्रतिशत, प्रोटीन की मात्रा 40-41 प्रतिशत।

 सोयाबीन जे.एस. 93-05

Top Soybean varieties for MP सोयाबीन की यह नवीनतम किस्म जे.एस. 93-05 अभी हाल ही में अधिसूचित होकर जारी की गई है। यह किस्म जे.एस. 335 की तुलना में लगभग एक सप्ताह पूर्व पककर तैयार हो जाती है। इसकी अवधि लगभग 90 – 92 दिवस है तथा इसकी उत्पादन क्षमता शीघ्र पकने वाली अन्य किस्मों को विस्थापित करने में सक्षम हैं।

इस किस्म के दानों का आकार मध्यम, बोल्ड रंग गहरा पीला आकर्षक चमकदार, काली नाभि 100 दानों का वजन 12-13 ग्राम, अंकुरण क्षमता अत्यधिक 90 से 95 प्रतिशत तक है। इसकी पत्तियाँ हरी, नुकीली लम्बी, फूलों का रंग बैंगनी तथा आधे फूल आने की अवधि 30-35 दिवस, फलियाँ बनने की अवधि 55 दिवस। अर्द्ध सीमित वृद्धि वाला मध्यम ऊँचाई का पौधा। तना व फलियाँ रोए रहित। फलियाँ पकने पर गहरे भूरे रंग की हो जाती है।

फलियों में चार दाने वाली फलियों की संख्या काफी होती है। इसकी फली में चटकने की समस्या लगभग नहीं के बराबर होती है। पौधे की ऊँचाई अच्छी होने से हार्वेस्टर से कटाई के लिए उपयुक्त यह किस्म जड़ सड़न रोग के लिए प्रतिरोधी पाई गई है। सूखा तथा मौसम की अन्य प्रतिकूलता के प्रति यह किस्म सहनशील पाई गई है। बेक्टेरियल पाश्चुल व अन्य बिमारियों के प्रति भी यह किस्म सहनशील पाई गई। स्टेम फ्लाई (तना मक्खी) तथा गार्डल बीटल के अटैक इस किस्म में कम देखे गए हैं।

तीखी संकरी पत्तियाँ (नेरो लीफ) होने से एवं कॉम्पेक्ट  प्लांट होने के कारण हवा, प्रकाश व पौध संरक्षण औषधि छिड़काव के समय नीचे तक पहुँचते हैं जिससे कीट नियंत्रण अधिक आसान व काफी प्रभावशाली रहता है। शीघ्र पकने, सीधे बढ़ने के गुण के कारण यह किस्म अंतरवर्तीय फसल पद्धति के लिए एकदम उपयुक्त है। 25-30 किलो प्रति एकड़  बीज दर कतार से कतार की दूरी 18 इंच रखने पर श्रेष्ठ उत्पादन औसत 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक फसल की अवधि कम होते हुए भी आदर्श परिस्थितियों में लिया जा सकता है। 

 आर.वी.एस. 2001-4

Top  Soybean varieties for MP राजमाता सिंधिया कृषि विश्व विद्यालय द्वारा हाल ही में जारी  सोयाबीन की इस नवीनतम किस्म ने अपने पहले ही उत्पादन वर्ष में इसके दर्शाये गये गुणों के अनुसार किसानों को चमत्कारी परिणाम दिये हैं। सेमिडिटरमिनेट की अवधि लगभग 93 दिवस। तेल की मात्रा 21.5 प्रतिशत प्रोटी 42 प्रतिशत औसत उत्पादन लगभग 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, मजूबत जड़ तंत्र होने से जड़ सड़न, पीला मोजेक रोग, फलियाँ रोएंदार होने से गार्डल बीटल, सेमिलूपर आदि के लिए सहनशील किस्म।

अधिक फैलाव वाला मजबूत जड़ तंत्र होने से सूखा पड़ने की स्थिति में पौधे की नमी बनाए रखता है। जिससे इस किस्म में सूखा निरोधक जाति के गुण भी जाये जाते हैं। अत्यधिक अंकुरण क्षमता 90/95 प्रतिशत तक व फैलाव वाला पौधा होने व दाना छोटा होने से कम  बीज दर में अधिकतम उत्पादन व डिबलिंग हेतु सर्वश्रेष्ठ किस्म । इस किस्म ने पौधों की ऊँचाई अच्छी होने से हारवेस्टर से काटने हेतु उपयुक्त। 

j.एस. 20-69

Top  Soybean varieties for MP जवाहरलाल कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर (J.N.K.V.V.) मध्य प्रदेश द्वारा किसानों के लिए  सोयाबीन की चमत्कारी किस्म जे.एस. 20-69 हाल ही में जारी एक नवीनतम किस्म है। यह एक शीघ्र पकने वाली प्रजाति व्याधियों जैसे पीला, मोजेक, चारकोल सड़न, झुलसन, जीवाणु धब्बा, पर्णीय धब्बे, तना मक्खी, चक्र भंग एवं पत्तिभक्षकों के लिए रोधी एवं सहनशील है। इसमें अंकुरण एवं दीर्घजीवी क्षमता उत्तम है।

शीघ्र पकने के कारण यह द्विफसली प्रणाली के लिए अति उपयुक्त है। यह अर्ध सीधे बढ़ने वाली प्रजाति है अतः अन्तरवर्तीय फसल प्रणाली के लिए भी उपयुक्त है। इस किस्म के दाने चमकदार, 100 दानों का वजन 10-11 ग्राम, फूलों का रंग सफेद, फूल आने की अवधि 40 दिन, फलियाँ भूरे रंग की, चटकने की समस्या नहीं। इस किस्म में अधिक वर्षा व बीमारी के प्रति विशेष प्रतिरोधकता व उच्च उत्पादन क्षमता होने के कारण यह नवीन किस्म किसानों के लिए वरदान सिद्ध होगी।

 जे.एस. 20-98

जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय (जे.एन.के.वी.वी.) मध्यप्रदेश द्वारा पुरानी  सोयाबीन किस्मों के श्रेष्ठ विकल्प के रूप में किसानों की आवश्यकता एवं समस्याओं को ध्यान में रखते हुए निरन्तर गहन रिसर्च के पश्चात् सोयाबीन की नवीनतम किस्म जे.एस. 20-98 जारी की है, सोयाबीन की यह किस्म बोनी हेतु म.प्र. राजस्थान, गुजरात, बुन्देलखण्ड, मराठवाड़ा एवं विदर्भ क्षेत्र हेतु अनुशंसित की गई है। सोयाबीन की यह किस्म जे. एस. 335 से पहले व सोयाबीन जे. एस. 93-05 के लगभग पककर तैयार हो जायेगी।

उत्तम अंकुरण क्षमता एवं पौधे में फैलाव की अनुकूल स्थितियों होने के कारयण 75 किलो प्रति हेक्टेयर  बीज दर रखने एवं 14 से 16 इंच कतार से कतार की दूरी रखने पर आदर्श परिणाम हेतु भी एक उपयुक्त किस्म है।

पत्ती का आकार तीखी-सकरी फलियाँ रोयेंदार (चिकनी नहीं) रोएं एवं फली का रंग भूरा, आधे फूल आने की अवधि लगभग 40-42 दिवस, फूलों का रंग सफेद, दो से तीन दाने की फलियाँ, फलियाँ चटकने की समस्या (शेटरिंग) नहीं। फसल की अवधि लगभग 94 दिवस। व्यवहारिक तरीकों से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर एवं उससे भी अधिक।

 सोयाबीन आर.वी.एस. 18 (प्रज्ञा)

राजमाता सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय द्वारा जारी  सोयाबीन की इस किस्म ने अपने पहले ही उत्पादन वर्ष में अपने चमत्कारी गुणों के कारण कृषकों का दिल जीत लिया है। यह किस्म देश के मध्य क्षेत्र म.प्र., राजस्थान, गुजरात, बुन्देलखण्ड, मराठवाडा, विदर्भ आदि क्षेत्रों के लिये अनुशंसित की गई है। सोयाबीन की यह किस्म मध्यम अवधि लगभग 91-93 दिवस की होने के कारण सोयाबीन जे.एस. 9305 के लगभग पककर तैयार हो जायेगी।

मध्यम अवधि व मजबूत जड़ तंत्र फैलावदार पौधा होने के कारण कम व अधिक वर्षा तथा वर्षा के जल्दी या देर तक वर्षाहोने की स्थिति बने रहने पर भी दोनों ही परिस्थितियों में समायोजन का असाधारण गुण होने के कारण कृषकों को वर्षाजन्य परिस्थितियों में भी कृषक को उच्च गुणवत्ता वाले अधिकतम  सोयाबीन का उत्पादन प्राप्त होने की पूरी-पूरी संभावना रहती है।

उपरोक्त गुणों को देखते हुए लगभग 70 किलो प्रति हेक्टेयर  बीज दर रखने, लाईन से लाईन की दूरी 14″ से 16” रखने, आदर्श पौध संख्या 4.5 से 5.5 लाख पौध संख्या प्रति हेक्टेयर रखने तथा आदर्श कृषि कार्यमाला अनुसार कृषि कार्य करने पर आदर्श परिणाम सामान्य परिस्थितियों में 22 से 24 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन। किन्तु व्यवहारिक रूप से किसानों द्वारा गतवर्षों में लिये गये वास्तविक अधिकतम उत्पादन का आंकड़ा इस किस्म में 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर व इससे अधिक भी बताया गया है।

इस किस्म के दाने का आकार गोल, मध्यम बोल्ड 100 दानों का वजन 10 से 11 ग्राम दाने का रंग पीला, चमकदार नाभिका (हायलम) का रंग काला, अंकुरण क्षमता लगभग 80 से 85 प्रतिशत, पोधे का प्रकार मध्यम ऊँची किस्म, ऊँचाई लगभग 60 से 70 से.मी. है।

पत्तियों का आकार तीखी सकरी, फलियाँ रोएँदार नहीं (चिकनी), फली का रंग भूरा, तीन से चार दाने की फलियाँ, फलियों में चटकने (शेटरिंग) की समस्या नहीं, फूल आने की अवधि 32-36 दिवस, फूलों का रंग सफेद, पौधे की ऊँचाई अच्छी होने से हारवेस्टर से काटने हेतु उपयुक्त। मल्टीपल रेजिस्टेंस याने बहुरोधक किस्म होने से इस किस्म में अनेक कीट एवं बिमारियों के प्रति विशेष प्रतिरोधकता एवं सहशीलता का गुण। विशेष रूप से येलो मोजेक एवं कॉलर रॉट बीमारी के प्रति सहशीलता।

 सोयाबीन आर.वी.एस.- 24

Top  Soybean varieties for MP राजमाता सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय द्वारा हाल ही में जारी  सोयाबीन की यह एक अत्यंत उन्नत किस्म है। यह देश के मध्य क्षेत्र के लिए अनुशंसित की गई है। सोयाबीन की यह किस्म लगभग मध्यम अवधि लगभग 91-94 दिवस में आने वाली तथा अपने मोजेक निरोधक किस्म के गुण के कारण जो कि आज की बहुत बड़ी समस्या है व अपनी उच्च उत्पादन क्षमता के कारण शीघ्र ही किसानों में अपना एक मजबूत स्थान बना लेगी।

नोट :– उपरोक्त समस्त फसलों एवं  बीजों का विवरण / विशेषताएं आदर्श कृषि कार्यमाला एवं आदर्श परिस्थितियों के अनुसार प्राप्त जानकारी के आधार पर तथा कृषकों से प्राप्त व्यावहारिक / वास्तविक आँकड़ों के आधार पर दिये गये हैं। इन आदर्श स्थितियों में परिवर्तन होने पर उपरोक्त विशेषताओं / परिणाम के आँकड़ों में भी परिवर्तन हो सकता है।  सोयाबीन की इन किस्म के बीज कहां से लें, जानिए

किसान साथी  सोयाबीन की सभी उन्नत किस्मों के  बीज लेने के लिए प्रदीप खड़ीकर, वसुंधरा सीड्स उज्जैन से संपर्क करें –

  • पता – 51, राजस्व कॉलोनी, टंकी पथ, उज्जैन-456010 (म.प्र.)
  • फोन – 0734-2530547,
  • मोबाईल – 9301606161 , 94253-32517
  • ई-मेल – vasundharabio@yahoo.co.in