न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के मुद्दे पर किसानों का आंदोलन पार्ट-2 जारी है. एमएसपी की लीगल गारंटी को किसानों ने अपनी नाक का सवाल बना लिया है. इसी मुद्दे पर लोकसभा चुनाव में बीजेपी को भारी नुकसान उठाना पड़ा है. लेकिन अब तक केंद्र सरकार की ओर से गठित एमएसपी कमेटी क्या कर रही है, इसका किसी को कुछ पता नहीं चल रहा है. इस कमेटी का गठन जुलाई, 2022 में किया गया था. यानी गठन के दो साल बीत चुके हैं, लेकिन इसकी रिपोर्ट अब तक नहीं आई है. बहरहाल, इसी साल फरवरी में लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में तत्कालीन केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने बताया था कि एमएसपी कमेटी ने अब तक 37 बैठकें और कार्यशालाएं आयोजित की हैं. अभी तक कमेटी की उपलब्धि यही है.
दरअसल, इस कमेटी को बनाने की घोषणा 19 नवंबर, 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को रद्द करने के साथ ही की गई थी. लेकिन आंदोलनकारी लिखित चाहते थे. जब 9 दिसंबर 2021 को तत्कालीन कृषि सचिव ने किसान संगठनों को एक पत्र जारी किया तब जाकर आंदोलनकारी किसान दिल्ली बॉर्डर से वापस अपने घरों को गए थे.
आठ माह बाद हुआ गठन
इस घोषणा के करीब आठ माह बाद 12 जुलाई, 2022 को कमेटी के गठन का नोटिफिकेशन जारी किया गया. लेकिन इस कमेटी का अध्यक्ष उन्हीं संजय अग्रवाल को बना दिया गया, जिनके कृषि सचिव रहते तीन कृषि कानून लाए गए थे और 13 महीने लंबा किसान आंदोलन चला था. इसके अलावा सरकार के कई घोर समर्थकों और बीजेपी नेताओं को कमेटी में जगह दी गई. यहीं से किसानों ने मान लिया था कि इस कमेटी से कोई खास उम्मीद नहीं रखनी चाहिए. इस कमेटी में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार ने एसकेएम से तीन नाम मांगे थे, लेकिन उन्होंने नाम नहीं दिए. एसकेएम का कोई भी धड़ा इस कमेटी में आज तक शामिल नहीं हुआ.
कमेटी के सदस्यों ने क्या कहा?
कमेटी के सदस्य गुणवंत पाटिल का कहना है कि कमेटी की संस्तुतियों को फाइनल टच दिया रहा है. लोगों के आब्जेक्शन लिए गए हैं. एमएसपी का लाभ ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे और ज्यादा से ज्यादा दाम मिले, इसकी कोशिश जारी है. इस रिपोर्ट को कई भाषाओं में लाया जाएगा. संभवत: इसी सप्ताह फाइनल मीटिंग होगी और उसके बाद सरकार को रिपोर्ट दी जाएगी. कमेटी के दूसरे सदस्य प्रमोद चौधरी का कहना है कि हम लोग कोशिश कर रहे हैं कि किसानों के हित में रिपोर्ट आए. किसानों के पास ज्यादा पैसे आएं इसकी कोशिश है.
गारंटी की बात किसने की?
जब से एमएसपी कमेटी का गठन किया गया है तब से किसान नेता यह कह रहे हैं कि सरकार ने एमएसपी गारंटी देने का वादा किया था. लेकिन क्या यह दावा सच है? सरकार ने एमएसपी कमेटी के गठन के नोटिफिकेशन में गारंटी जैसी कोई बात ही नहीं की है. ऐसे में रिपोर्ट आने के बाद भी झगड़ा कायम रहेगा. दरअसल, इस समिति का नाम तक एमएसपी कमेटी नहीं है. यह कमेटी कृषि सुधार के लिए बनाई गई है.
कमेटी को एमएसपी को अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने, प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने और देश की बदलती जरूरतों को ध्यान में रखते हुए फसल पैटर्न में बदलाव करने के लिए सुझाव देने का काम सौंपा गया है. हालांकि, 9 दिसंबर 2021 को कृषि सचिव ने किसान संगठनों के नाम जो पत्र जारी किया था उसमें लिखा था कि …कमेटी का एक मेंडेट होगा कि देश के किसानों को एमएसपी मिलना किस तरह “सुनिश्चित” किया जाए.
एमएसपी पर विवाद क्यों?
किसान आंदोलन करने वाले लोग फसलों की एमएसपी की लीगल गारंटी की मांग कर रहे हैं. जबकि केंद्र सरकार ने इससे साफ इनकार कर दिया है. केंद्र ने कई बार लोकसभा में कहा है कि कमेटी का गठन फसलों की एमएसपी की लीगल गारंटी देने के लिए नहीं बल्कि इसे और प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए किया गया है.
सरकार समर्थक एग्रीकल्चर इकोनॉमिस्ट यह तर्क देते हैं कि एमएसपी की लीगल गारंटी देने से देश की अर्थव्यवस्था बर्बाद हो जाएगी. क्योंकि फसलों की खरीद पर सरकार को लगभग 17 लाख करोड़ रुपये खर्च करने पड़ेंगे. जबकि किसानों के समर्थक इकोनॉमिस्ट कहते हैं कि एमएसपी की लीगल गारंटी देने से इकोनॉमी को फायदा होगा. किसानों की जेब में ज्यादा पैसा आएगा, इसलिए यह फैसला इकोनॉमी के लिए बूस्टर डोज का काम करेगा.
कौन फैला रहा है भ्रम
दरअसल, सरकार समर्थक इकोनॉमिस्ट यह भ्रम फैला रहे हैं कि अगर किसानों को एमएसपी की लीगल गारंटी मिली तो फिर सरकार को सारी फसलों की खरीद करनी पड़ेगी. जिससे देश का अधिकांश पैसा इसी काम में खर्च हो जाएगा. यह इकोनॉमी के लिए ठीक नहीं होगा. लेकिन ऐसा कहने वाले लोग सच नहीं बोल रहे हैं. क्योंकि किसी भी किसान नेता ने कभी भी यह नहीं कहा कि एमएसपी की लीगल गारंटी देने के बाद उनकी सारी फसलें सरकार ही खरीदे.
किसानों का बस इतना ही कहना है कि लीगल गारंटी मिलने से निजी खरीद भी एमएसपी से कम कीमत पर नहीं हो सकेगी. किसानों के साथ जो व्यापारी या प्राइवेट सेक्टर के लोग लूट करते हैं वह बंद होगी. हर साल सरकार 23 फसलों की एमएसपी बढ़ाती है, यह बात बिल्कुल सच है. लेकिन सच यह भी है कि गेहूं, धान और गन्ना छोड़कर किसी और फसल की पूरी खरीद नहीं हो पाती.
रिजर्व प्राइस का प्रस्ताव
अभी एमएसपी की व्यवस्था सरकार के लिए है न कि बाजार के लिए. ऐसे में एमएसपी के होते हुए भी बाजार में किसानों का शोषण होता है. बाजार पर यानी निजी क्षेत्र पर एमएसपी लागू नहीं है. अब तक किसी भी सरकार ने बाजार के लिए रेट का कोई बेंच मार्क नहीं बनाया. इसलिए लीगल गारंटी की मांग उठ रही है. कमेटी के एक सदस्य कृष्णवीर चौधरी ने कमेटी के चेयरमैन के सामने रिजर्व प्राइस तय करने की लिखित तौर पर मांग उठाई है.
चौधरी ने इसके लिए कमेटी के चेयरमैन संजय अग्रवाल को एक पत्र लिखा है. उनके पत्र पर कमेटी के चार सदस्यों के हस्ताक्षर भी हैं. बहरहाल, देखना यह है कि हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों से पहले किसानों को एमएसपी की गारंटी जैसा कोई तोहफा मिलेगा या फिर इस मुद्दे पर सरकार और किसानों के बीच गतिरोध कायम रहेगा.