अखरोट की खेती देती है भारी मुनाफा, होगी लाखों रुपए की कमाई
किसान डाईफ्रूट की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। इसमें अखरोट की खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद हो सकती है। अखरोट की मांग भी बाजार में काफी रहती है। इसका उपयोग व्यंजन बनाने में किया जाता है। इसका तेल भी निकाला जाता है। इसकी खेती मुख्य रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है। लेकिन अब इसकी खेती भारत के कई राज्यों में होने लगी है। यदि सही तरीके और उन्नत किस्मों का चयन कर इसकी खेती की जाए तो काफी अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। अखरोट की खेती करके किसान लाखों रुपए की कमाई कर सकते हैं। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से हमारे किसान भाइयों को अखरोट की खेती की जानकारी दे रहे हैं और उम्मीद करते हैं ये जानकारी आपके लिए फायदेमंद साबित होगी।
देश में कहां-कहां होती है अखरोट की खेती
अखरोट मुख्य रूप से उत्तर-पश्चिमी हिमालय का फल है और इसके पौधे समुद्रतल से 1200 से 2150 मीटर की ऊंचाई तक उगते हैं। अखरोट की खेती या बागवानी भारत देश में मुख्य रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है। वर्तमान में अखरोट की खेती जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल और अरुणाचल प्रदेश में होती है। अखरोट का प्रमुख उत्पादन जम्मू और कश्मीर में किया जाता है।
अखरोट में पाए जाने वाले पौषक तत्व
अखरोट की गिरी में 14.8 ग्राम प्रोटीन, 64 ग्राम वसा, 15.80 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 2.1 ग्राम रेशा, 1.9 ग्राम राख, 99 मिलीग्राम कैल्शियम, 380 मिलीग्राम फासफोरस, 450 मिलीग्राम पोटैशियम प्रति 100 ग्राम में पाया जाता है। आधी मुट्ठी अखरोट में 392 कैलोरी ऊर्जा होती हैं, 9 ग्राम प्रोटीन होता है, 39 ग्राम वसा होती है और 8 ग्राम कार्बोहाइड्रेट होता है। इसमें विटामिन ई और बी 6, कैल्शियम और मिनेरल भी पर्याप्त मात्रा में होते हैं।
कैसा होता है अखरोट का पेड़
अखरोट का वानस्पतिक नाम जग्लान्स निग्रा है। इसे अंग्रेजी में Walnut कहते हैं। इसका पेड़ बहुत सुंदन और सुगंधित होता है। अखरोट की छाल का रंग काला होता है।
अखरोट के प्रकार/जातियां
अखरोट दो प्रकार का होता है। या यूं कहे कि इसकी दो जातियां पाई जाती हैं। पहली जंगली अखरोट और दूसरी कृषि जन्य अखरोट।
- जंगली अखरोट : जंगली अखरोट का पेड़ 100 से 200 फीट तक ऊंचे होते हैं और अपने आप उगते हैं। इसके फल का छिलका मोटा होता है।
- कृषिजन्य अखरोट : कृषिजन्य अखरोट का पेड़ 40 से 90 फुट तक ऊंचा होता है और इसके फलों का छिलका पतला होता है। इसे कागजी अखरोट भी कहते हैं। इससे बंदूकों के कुन्दे बनाये जाते हैं।
अखरोट के उपयोग
अखरोट का फल एक प्रकार का सूखा मेवा है जो खाने के लिए उपयोग में लाया जाता है। अखरोट का बाह्य आवरण एकदम कठोर होता है और अंदर मानव मस्तिष्क के जैसे आकार वाली गिरी होती है। इसके कुछ उपयोग इस प्रकार से हैं।
- अखरोट की गिरी का अधिकतम उपयोग मिष्ठान उद्योग में किया जाता है।
- मस्तिष्क रूपी अखरोट दिमाग की सेहत के लिए अत्यंत लाभदायक होता है। इसकी गिरी को खाने के उपयोग में लिया जाता है।
- अखरोट के अधपके फलों का प्रयोग अचार, चटनी, मार्मेलेड, जूस तथा सीरप बनाने में किया जाता है।
- अखरोट का तेल खाने, वार्निश तथा साबुन बनाने में प्रयोग किया जाता है।
- अच्छी खुशबू के कारण इसके सूखें फलों को खाने में प्रयोग किया जाता है।
अखरोट खाने से क्या होते हैं फायदें / अखरोट के फायदे / अखरोट खाने के फायदे (Benefits of Walnut)
अखरोट को छीलकर ऐसे ही या भून कर खाया जाता है। अखरोट का सेवन करने से वृद्धावस्था में भी शरीर की कार्यप्रणाली सुचारू रूप से चलती है। अखरोट वजन कम करने में और दिल की बीमारियों से बचाने में सहायक होता है।
अखरोट की खेती कैसे करें (Akhrot ki kheti)
अखरोट की खेती (Walnut Cultivation) करने से पहले हमें ये जान लेना चाहिए कि इसकी खेती के लिए आवश्यक दशाएं और अनुकूलता क्या है। अखरोट की खेती के लिए न तो जल्दा गर्म जलवायु अच्छी मानी जाती है और न ही ज्यादा ठंडी। इसकी खेती के लिए पाला नुकसानदेय होता है। अधिक गर्मी वाले इलाके इसकी खेती के लिए अनुकूल नहीं माने जाते हैं। इसलिए इसकी खेती ऐसे इलाको में होती है जहां गर्मी कम पड़ती हो। इसकी खेती के लिए वे इलाके अच्छे माने जाते हैं जहां ज्यादा समय के लिए छाया आती हो। इसकी खेती के लिए -2 से लेकर 4 डिग्री सेल्सियस तापमान अनुकूल होता है। इसके लिए वार्षिक रूप से आवश्यक बारिश 800 मिमी है।
अखरोट उगाने के लिए भूमि का चयन
अखरोट की बागवानी के लिए उचित जल निकासी वाली दोमट भूमि जिसमें जैविक पदार्थ हो। ऐसी भूमि इसके लिए उपयुक्त मानी जाती है। वहीं रेतीली और सख्त सतह वाली मिट्टी अखरोट के लिए ठीक नहीं होती है। क्षारीय गुणों वाली मिट्टी के प्रति अखरोट अत्याधिक संवेदनशील होता है अत: क्षारीय मिट्टी में इसे नहीं लगाना चाहिए।
उन्नत किस्में / अखरोट के बीज
अखरोट की खेती हेतु उन्नत किस्मों में पूसा अखरोट, पूसा खोड़, गोबिंद, काश्मीर बडिड, यूरेका, प्लेसैन्टिया, विलसन, फ्रेन्क्वेट, प्रताप, सोलडिंग सलैक्शन व कोटखाई सलैक्शन आदि मुख्य हैं। इनका किस्मों का उपयोग व्यवसायिक बागवानी केे लिए किया जाता है। वर्तमान में उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में मोटे छिलके की बजाय कागजी अखरोट की खेती को अधिक बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके लिए स्थानीय प्रशासन ने एक योजना बनाई है जिसके तहत जिले में अखरोट के 4000 पौधे लगाए जाएंगे। कागजी अखरोट के पेड़ पांच वर्ष में फल देने लायक हो जाते हैं, साथ ही अखरोट की दूसरी किस्मों के बजाय ज्यादा फल देते हैं।
अखरोट की खेती का उचित समय
सर्दियों के दौरान इसे दिसंबर से मार्च माह तक उगा सकते हैं। इसके अलावा कुछ जगहों पर इसे बारिश के मौसम में भी उगाया जाता हैं। लेकिन दिसंबर में इसे उगाना सबसे अच्छा माना जाता हैं। क्योंकि दिसंबर में उगाने के बाद पौधों को काफी ज्यादा वक्त तक उचित मौसम मिलता हैं। जिससे पौधा अच्छे से विकास करता हैं। पर ध्यान रहे पाले से इसका बचाव करना आवश्यक है।
खेत की तैयारी
अखरोट के पौधों को खेत में गड्डे तैयार कर लगाया जाता हैं। गड्डों को तैयार करने से पहले खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ देना चाहिए। इसके बाद खेत में रोटावेटर चला दें। इससे खेत में मौजूद ढले भुरभुरी मिट्टी बदल जाते हैं। मिट्टी को भुरभुरा बनाने के बाद खेत में पाटा लगाकर भूमि को समतल बना देना चाहिए। भूमि को समतल करने के बाद खेत में उचित दूरी रखते हुए दो फीट चौड़े और एक से डेढ फीट गहरे गड्ढे तैयार करते हैं। इस बात का ध्यान रखे की गड्ढे से गड्ढे और पंक्तियों के बीच की दूरी पांच मीटर होनी चाहिए।
अखरोट की पौध तैयार करने का तरीका
अखरोट की पौध नर्सरी में रोपाई से करीब एक साल पहले मई और जून माह में तैयार की जाती हैं। नर्सरी में इसकी पौध तैयार करने के लिए ग्राफ्टिंग विधि का इस्तेमाल किया जाता है। अखरोट की पौध ग्राफ्टिंग विधि से तैयार करने पर पौधों में मुख्य पौधे वाले सभी गुण पाए जाते हैं। इसके अलावा बीज से तैयार पौधे 20 से 25 साल बाद पैदावार देते हैं. जबकि ग्राफ्टिंग से तैयार पौधे कुछ साल बाद ही पैदावार देने लग जाते हैं।
ग्राफ्टिंग विधि से अखरोट उगाने का तरीका
ग्राफ्टिंग विधि से पौध तैयार करने के लिए पहले किसी भी अखरोट के मूल पौधे की 5 से 7 महीने पुरानी शाखा के सभी पत्ते ग्राफ्टिंग करने से 15 दिन पहले तोड़ दें। उसके बाद पत्ती रहित शाखा को पौधे से हटाकर उसे एक तरफ से तिरछा काटकर किसी दूसरे जंगली पौधे के साथ जोडक़र अच्छे से बांध दे। इसके अलावा-ग्राफ्टिंग विधि से भी इसकी पौध आसानी से तैयार की जा सकती है।
खाद एवं उर्वरक
अखरोट के पौधों की रोपाई से पहले गड्ढों की तैयारी के समय प्रत्येक गड्ढों में 10 से 12 किलो गोबर की खाद और लगभग 100 से 150 ग्राम रासायनिक उर्वरक की मात्रा को मिट्टी में अच्छे से मिलाकर गड्ढों में भर देना चाहिए। इसके अलावा खेत की मिट्टी में अगर जस्ता की कमी हो तो पौधों को हल्की मात्रा में जिंक भी देनी चाहिए।
अखरोट की सिंचाई
सर्दियों के मौसम में पौधों को 20 से 30 दिन के अंतराल में सिंचाई करनी चाहिए। वहीं सर्दियों में अधिक पाला पडऩे की स्थिति में पौधों को हल्का पानी देने से पौधों पर पाले का प्रभाव कम दिखाई देता है। अखरोट के पौधे पूर्ण विकसित होने के बाद इसके पेड़ों को साल भर में 7 से 8 सिंचाई की ही जरूरत होती हैं।
फल तुड़ाई/ कटाई
अखरोट के पौधे खेत में रोपाई के लगभग 4 साल बाद फल देना शुरू कर देते हैं। जब अखरोट के फलों की ऊपरी छाल फटने लगे तब करनी चाहिए। अखरोट के फल पकने के बाद खुद टूटकर गिरने लगते हैं। जब पौधे से लगभग 20 प्रतिशत फल गिर जाएं तब एक लंबा बांस लेकर पौधे से इसके फल गिरा लेने चाहिए। अखरोट के नीचे गिरे हुए फलों को एकत्रित कर उन्हें पौधे की पत्तियों से ढक देना चाहिए।
पैदावार और लाभ
वर्तमान में तैयार की गई विभिन्न किस्मों के पौधे रोपाई के तीन से चार साल बाद ही पैदावार देना शुरू कर देते हैं, जो 20 से 25 साल बाद सालाना औसतन 40 किलो प्रति पौधे की दर से पैदावार देते हैं। अब बात करें इससे कमाई
की तो अखरोट का बाजार भाव काफी अच्छा रहता है। इससे किसानों की काफी अच्छी कमाई हो सकती है।
बाजार में अखरोट का भाव/कीमत
अखरोट ड्राई फ्रूट की श्रेणी में आता है और त्योहारों और अन्य अवसरों पर काम आता है। इसका बाजार भाव क्वालिटी के हिसाब से 350 रुपए से लेकर 2 हजार रुपए तक है।अखरोट की खेती सें संबंधित प्रश्न और उत्तर
प्रश्न1. अखरोट की खेती के लिए सबसे अच्छा महीना कौनसा होता है?
उत्तर- वैसे तो अखरोट की खेती सर्दियों के दौरान इसे दिसंबर से मार्च माह तक की जा सकती है। लेकिन दिसंबर माह में इसे उगाना सबसे अच्छा माना जाता हैं। क्योंकि दिसंबर में उगाने के बाद पौधों को काफी ज्यादा वक्त तक उचित मौसम मिलता हैं। जिससे पौधा अच्छे से विकास करता हैं। लेकिन पाले से इसका बचाव करना जरूरी है।
प्रश्न 2. भारत में बेहतर उत्पादन की दृष्टि से अखरोट की कौनसी किस्म अच्छी है?
उत्तर- भारत के जम्मू और कश्मीर मेें लेक इंग्लिश, ड्रेनोवस्की और ओपक्स कॉलचरी किस्में, हिमाचल प्रदेश के लिए गोबिन्द, यूरेका, प्लेसेन्टिया, विल्सन फ्रैंकुयेफे और कश्मीर अंकुरित किस्में, उत्तरांचल के लिए चकराता सिलेक्शन्स किस्म बेहतर उत्पादन देने वाली किस्में है। उत्तरप्रदेश में पूसा अखरोट किस्म अच्छा उत्पादन दे रही है। आप अपने क्षेत्र के अनुसार अखरोट की किस्म का चुनाव कर सकते हैं।
प्रश्न 3. अखरोट की खेती के लिए भूमि का चुनाव कैसे करें?
उत्तर- अखरोट की बागवानी के लिए उचित जल निकासी वाली दोमट भूमि जिसमें जैविक पदार्थ हो ऐसी भूमि का चयन किया जाना चाहिए। वहीं रेतीली और सख्त सतह वाली मिट्टी अखरोट के लिए अच्छी नहीं होती है।
प्रश्न 4. पूसा अखरोट की किस्म कितने साल बाद फल देना शुरू कर देती है?
उत्तर- पूसा अखरोट की कागजी किस्म है। ये जल्दी फल देना शुरू कर देती है। ये किस्म तीन से चार साल बाद ही फल देना शुरू कर देती है।
प्रश्न 5. अखरोट के एक पौधे से कितना उत्पादन मिल सकता है?
उत्तर- उन्नत किस्म के बीज तैयार किए गए अखरोट के एक पौधे से 20 से 25 साल बाद सालाना औसतन 40 किलो प्रति पौधे की दर से पैदावार मिल सकती है।