इस बार ‘किसान’ सांसदों की संंख्‍या सबसे अधिक 

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लोकसभा में शपथ लेने के साथ ही माननीय जी आधिकारिक रूप से सांसद बन गए हैं. इसके साथ ही संविधान में प्रदत्त जनप्रतिनिधियों को मिलने वाली शक्‍तियां और जिम्‍मेदारियां माननीय सांसदों को अधिग्रत हो गई हैं. बंग्‍ला, गाड़ी, वेत्तन, भत्ते जैसी कई सुविधाएं माननीय सांसदों को मिलेंगी.बस जिम्‍मेदारी बतौर जनप्रतिनिधि अपने क्षेत्र की समस्‍याओं काे देश के निचले सदन माने जाने वाले लोकसभा के पटल पर रखना है, जिससे उस पर समुचित समझ विकसित हो सके और उस विषय पर व्‍यापक चर्चा के बाद समस्‍या समाधान के लिए कोई योजना या कानून बना सके.

अब, जब किसान आंदोलन के बीच लोकसभा चुनाव संपन्‍न हुए हैं और लोकसभा चुनाव के परिणामों पर खेती-किसानी का फैक्‍टर भी दिखाई दिया है. तो सवाल ये ही क्‍या 18वीं लोकसभा के लिए निर्वाचित सांसद महोदय खेती-किसानी के मुद्दे पर सदन में चर्चा का सार्थक माहौल बना सकेंगे.लोकसभा में किसानों के मुद्दों के समाधान तलाशने की जीवटता का ये सवाल, तब और प्रासंगिक हो जाता है, जब इस बार सबसे अधिक किसान जीत कर लोकसभा पहुंचे हैं. आइए इसी कड़ी में किसानों के मुद्दे पर लोकसभा सदस्‍यों की इस कहानी की पूरी पड़ताल कर लेते हैं. 

161 सांसद खेती-बाड़ी से जुड़े हैं

18वीं लोकसभा के लिए निर्वाचित 543 सांसदों में से 161 सांसद खेती-बाड़ी से जुड़े हैं. यानी लोकसभा के लिए निर्वाचित कुल सांसदों में से लगभग 30 फीसदी सांसदों का खेती से संबंध है. ये जानकारी लोकसभा सचिवालय की तरफ सार्वजनिक की गई है. सचिवालय की तरफ से जारी की गई जानकारी के अनुसार कुल 148 नवनिर्वाचित सांसदों ने अपना पेशा कृषि बताया है, जबकि 13 नवनिर्वाचित सांसदों ने स्‍वयं को किसान बताया है.

लोकसभा में खेती से संबंध रखने वाले सांसदों की संख्‍या 21वीं सदीं में गठित लोकसभा में सबसे अधिक मानी जा रही है. हालांकि इस पर बहस हो सकती है, लेकिन बहसों के इतर समझें तो इस लोकसभा में खेती-बाड़ी से संबंध रखने वाले सांसदों का पलड़ा भारी है, ऐसे में देशभर में दम तोड़ रही खेती और परेशान किसानों को इस लोकसभा से अधिक उम्‍मीद रखनी चाहिए.

क्‍या सदन में खेती-किसानी पर श्‍वेत पत्र आना चाहिए

लोकसभा में इस बार खेती-किसानी से संबंध रखने वाले सांसदों की संंख्‍या सबसे अधिक है.अब सवाल ये कि क्‍या ये सांसद खेती-किसानी के मुद्दों पर सदन में सार्थक बहस कराने में सफल हो पाएंगे. क्‍या खेती-किसानी पर इस लोकसभा में श्‍वेत पत्र जारी होगा. असल में श्‍वेत पत्र एक तरह से भारत सरकार की संसदीय रिपोर्ट है. ये रिपोर्ट पूरे तथ्‍यों और पूर्ण तथ्‍यों पर आधारित हाेती है. तो वहीं इसमें संबंधित विषय पर सभी सरकारी तथ्‍य, पूर्ण जानकारी और समाधान होता है. इसे भारत सरकार का सरकारी दस्‍तावेज कहा जा सकता है, जिसे संसद प्रमाणिक रूप से पेश करती है.

क्‍यों खेती पर खेती-किसानी पर श्‍वेत पत्र की जरूरत

सदन में खेती-किसानी पर श्‍वेत पत्र क्‍यों आना चाहिए? ये सवाल मौजूदा वक्‍त में पूछा जाना जरूरी है. इसके जवाब को अगर संक्षेप में दिया जाए तो कहा जा सकता है कि आजादी के बाद अर्थव्‍यवस्‍था में सबसे अधिक हिस्‍सेदारी रखने वाली खेती-किसानी की ग्रोथ माइनस में है. 21वीं के दूसरे दशक में, जब भारत दुनिया की शीर्ष अर्थव्‍यवस्‍था बनने के लिए आतुर है, तब देश के किसानों की प्रति दिन आय 28 रुपये है. खेती से पलायन हो रहा है और देश के किसानों की औसत उम्र 58 उम्र है. यानी आबादी बढ़ रही है और किसानी से युवा दूर हैं.

 कांग्रेस संविधान जैसा स्‍टैंड किसानाें के लिए भी लेगी?

18वीं लोकसभा की शुरुआत नवनिर्वाचित सांसदों के शपथ ग्रहण कार्यक्रम और कांग्रेस के संविधान बचाओ प्रदर्शन के साथ हुई है. कुल जमा कांग्रेस ने बीजेपी पर संविधान को खत्‍म करने का आरोप लगाते हुए सदन में संविधान पर मजबूत स्‍टैंड लिया है. इस मुद्दे के साथ कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव भी लड़ा था, इसके साथ ही कांग्रेस ने MSP गारंटी कानून लागू करवाने, स्‍वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुरूप MSP निर्धारित करने समेत खेती-किसानी के कई मुद्दों के समग्र समाधान के वादे पर चुनाव लड़ा था.

किसान आंदोलन के बीच संपन्‍न हुए इस लोकसभा चुनाव में इन वादों के साथ कांग्रेस को अप्रत्‍याशित जीत मिली है, वहीं उसके इंंडी गठबंधन के सहयाेगी को भी फायदा मिला है. अब सवाल ये है कि क्‍या कांग्रेस और उसके सहयोगी खेती-किसानी के मुद्दे पर संविधान जैसा स्‍टैंड लेंगे. बेशक कांग्रेस को सत्ता नहीं मिली है, लेकिन उम्‍मीद है कि 10 साल में विपक्ष में बैठी कांग्रेस को विपक्ष की ताकत का एहसास हो गया होगा और ये ताकत किसानों के मुद्दों के समाधान का आधार बनेगी.