तमिलनाडु के किसानों ने किया प्रदर्शन: नरकंकाल और हड्डियों के साथ सड़कों पर उतरे किसान

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तमिलनाडु के करीब 200 किसान फसल की कीमतों और नदियों को आपस में जोड़ने के मुद्दे पर केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए राष्ट्रीय राजधानी जंतर मंतर पर आए हैं. प्रदर्शनकारी उन किसानों की खोपड़ी और हड्डियों के साथ आए हैं, जिन्होंने पिछले सालों में आत्महत्या की है.

नेशनल साउथ इंडियन रिवर इंटरलिंकिंग फार्मर्स एसोसिएशन, तमिलनाडु के अध्यक्ष अय्याकन्नू ने आज तक टीवी से बात करते हुए कहा, “2019 के चुनावों के दौरान पीएम ने घोषणा की थी कि मैं फसलों का दोगुना मुनाफा दूंगा और नदियों को आपस में जोड़ूंगा”. लेकिन अभी तक ऐसा कुछ नहीं हुआ है. जिसके बाद नाराज किसानों ने अपनी ओर से विरोध प्रदर्शन जारी किया है.

नहीं मिली थी प्रदर्शन करने की अनुमति

किसानों ने कहा कि पहले उन्हें प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं दी गई और फिर पुलिस ने उन्हें रोक दिया. किसानों का कहना है कि “हम एक लोकतांत्रिक देश में रह रहे हैं और हमें प्रदर्शन करने का अधिकार है, लेकिन पुलिस ने रोक दिया”. बाद में उन्हें अदालत से प्रदर्शन करने की अनुमति मिल गई.

पीएम के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे किसान

किसानों के मुताबिक, अगर सरकार ने उनकी मांगें नहीं मानी तो वे वाराणसी जाकर पीएम के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे. अय्याकन्नु ने कहा, ”अगर सरकार हमारी बात नहीं सुनती है तो हम वाराणसी जाएंगे और पीएम मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे.” किसानों ने यह भी कहा कि उन्होंने अपनी मांगों को लेकर पहले भी विरोध प्रदर्शन किया है, “हम पीएम के खिलाफ नहीं हैं या किसी राजनीतिक दल से हमारा कोई संबंध नहीं है. हम सिर्फ उनकी मदद चाहते हैं.” किसानों के मुताबिक केंद्र सरकार ने कृषि क्षेत्र में आय दोगुनी करने का वादा किया है, लेकिन फसलों के दाम नहीं बढ़ाए गए हैं.

तमिलनाडु के किसानों ने किया प्रदर्शन

पहले भी किसानों ने किया था ऐसा प्रदर्शन

साल 2017 में भी तमिलनाडु के किसानों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर ऐसा ही प्रदर्शन किया था. जहां किसानों ने हाथों में खोपड़ियां लेकर अपना गुस्सा जाहिर किया. दरअसल, ये खोपड़ियां उन किसानों की थीं, जिन्होंने कर्ज के बोझ या पानी की कमी के कारण अपने खेतों को सूखता देख आत्महत्या कर ली थी। किसानों ने कहा कि सरकार ने दिखावे के लिए छोटे किसानों को तो मदद की, लेकिन अधिकांश किसानों को कोई मदद नहीं मिली. हमारी मांग थी कि किसानों का कर्ज माफ किया जाए. उन्हें नया ऋण दिया जाना चाहिए ताकि वे अपना काम जारी रख सकें। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, जिसके बाद किसानों ने आत्महत्या कर ली. (अनमोल नाथ बाली की रिपोर्ट)