जीएम फसलों पर व्यापक परामर्श के साथ राष्ट्रीय नीति बनाने के लिए किसान संगठनों ने सरकार को लिखा पत्र, संयुक्त राज्य अमेरिका में पहली जीएम फसल के व्यावसायीकरण के 30 साल बाद भी दुनिया भर के अधिकांश देश जीएम फसल की खेती की अनुमति नहीं देते हैं। वास्तव में, दुनिया के अधिक से अधिक क्षेत्र और क्षेत्र इस अनियंत्रित और अपरिवर्तनीय जीवित तकनीक पर प्रतिबंध और गंभीर प्रतिबंध लगा रहे हैं। कई देश (14) जिन्होंने कुछ मौसमों के लिए जीएम फसल की खेती की अनुमति दी थी, अब अपने कदम पीछे खींच रहे हैं और तकनीक पर प्रतिबंध लगा रहे हैं। झूठे दावे गलत साबित हुए हैं और वादे पूरी तरह से विफल रहे हैं।दरअसल किसान संगठन सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ द्वारा 23 जुलाई को दिए गए आदेश के बाद से जीएम फसलों के लिए राष्ट्रीय नीति तैयार करने में बतौर हितधारक व्यापक परामर्श की मांग कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद आनुवांशिक रूप से संशोधित यानी जेनेटिक मोडिफाईड (जीएम) फसलों पर एक राष्ट्रीय नीति विकसित करने को लेकर किसानों के सामूहिक संगठन जीएम फ्री इंडिया ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को चिट्ठी लिखकर व्यापक लोकतांत्रिक परामर्श की मांग की है। संगठन ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश अक्षरशः लागू होना चाहिए।
जीएम फ्री इंडिया के सामूहिक किसान संगठन की ओर से केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की सचिव लीना नंदन को 16 अगस्त, 2024 को एक ई-मेल भेजा गया। इसमें विभिन्न संगठनों के करीब 267 लोगों ने सहमति दी है।
दरअसल 23 जुलाई, 2024 को सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने जेनेटेकली मोडिफाइड यानी जीएम सरसों की भारत में व्यावसायिक खेती करने की सरकारी मंजूरी के खिलाफ दायर याचिका पर खंडित फैसला दिया था। इसमें न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति संजय करोल शामिल थे। हालांकि, दोनों न्यायाधीश इस बात पर एकमत थे कि केंद्र सरकार को जीएम फसलों पर एक राष्ट्रीय नीति तैयार करनी चाहिए।
इस आधार पर जीएम फ्री इंडिया ने पर्यावरण मंत्रालय को पत्र लिखकर कहा है कि यह पत्र आपको यह सुनिश्चित करने के लिए लिख रहे हैं कि नीति निर्माण प्रक्रिया में अपने इनपुट देने के इच्छुक सभी नागरिकों के साथ व्यापक और सार्थक परामर्श द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेश को अक्षरशः लागू किया जाए।
सामूहिक संगठन ने मंत्रालय को यह याद दिलाया है कि जिस तरह भारत में वाणिज्यिक खेती के लिए बीटी बैंगन के पर्यावरणीय विमोचन के मामले में तत्कालीन यूपीए सरकार में पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश द्वारा आयोजित सार्वजनिक परामर्श किया गया था, ठीक उसी तरह की प्रक्रिया को अपनाया जाना चाहिए।
संगठन ने कहा कि बीटी बैंगन के मामले में देश में विचार-विमर्श वाली लोकतांत्रिक प्रक्रिया चलाई गई थी, वह ऐतिहासिक और अभूतपूर्व थी। 15 अक्टूबर 2009 से 31 दिसंबर 2009 के बीच लिखित इनपुट प्राप्त किए गए, उसके बाद जनवरी 2010 के महीने में सात व्यक्तिगत परामर्श हुए, जिसके परिणामस्वरूप 9 फरवरी 2010 को निर्णय लिया गया। भारत के विभिन्न क्षेत्रों को कवर करने वाले 7 परामर्शों में 6000 नागरिकों ने पंजीकरण कराया और भाग लिया, और तत्कालीन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश को 9000 से अधिक लिखित प्रस्तुतियां पेश की गईं थीं, जिसके बाद पर्यावरण मंत्री ने व्यक्तिगत रूप से 25 घंटे से अधिक समय तक परामर्श में भाग लिया था।
इन परामर्शों में उनके साथ अधिकारी और नियामक व साथ ही विभिन्न राज्य सरकार के प्रतिनिधि भी शामिल थे। इसमें कृषि और स्वास्थ्य/चिकित्सा/पोषण विशेषज्ञ, जैव प्रौद्योगिकी और आणविक जीव विज्ञान के क्षेत्र के वैज्ञानिक, किसान, किसान नेता, उपभोक्ता अधिकार कार्यकर्ता, पर्यावरणविद और पारिस्थितिकीविद, सामाजिक कार्यकर्ता, उद्योग प्रतिनिधि, निर्यातक, भारतीय चिकित्सा पद्धति के चिकित्सक, अन्य कृषि-सहायक आजीविका का प्रतिनिधित्व करने वाले लोग आदि शामिल थे।
इस बार पर्यावरण मंत्रालय को भेजे गए पत्र में भी 2010 के दौरान हस्ताक्षर करने वाले कई लोगों ने सार्वजनिक परामर्शों में भाग लिया था।
संगठन ने मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आधार पर सार्वजनिक परामर्श को स्थानीय भाषाओं में सभी प्रमुख स्थानीय समाचार पत्रों, दृश्य मीडिया और वेबसाइटों में अच्छी तरह से प्रचारित किया जाना चाहिए और ऐसा जनता को कम से कम तीन सप्ताह पहले सूचना देकर किया जाना चाहिए।
वहीं, इस तरह के परामर्श देश के सभी राज्यों में आयोजित किए जाने चाहिए, ताकि राज्य सरकार के प्रतिनिधियों सहित सभी हितधारकों की व्यक्तिगत भागीदारी हो सके। उत्तर प्रदेश जैसे कुछ बड़े राज्यों को राज्य के भीतर भी अधिक क्षेत्रीय परामर्श की आवश्यकता हो सकती है। स्थानों को राज्य सरकार में सत्ता में विभिन्न प्रकार के राजनीतिक दलों का प्रतिनिधित्व करने दें ताकि बाद में पक्षपात का कोई आरोप सामने न आए।
इसके अलावा संगठन ने पत्र में मांग की है कि परामर्श सभी नागरिकों के लिए अपने इनपुट प्रदान करने के लिए खुला होना चाहिए जैसा कि 2009-2010 में बीटी बैंगन पर सार्वजनिक परामर्श के दौरान हुआ था, और इसे आमंत्रित किए गए कुछ चुनिंदा लोगों तक सीमित नहीं किया जाना चाहिए।
जीएम फ्री इंडिया ने मंत्रालय को कहा है कि परामर्शों में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सभी हितधारक सक्रिय रूप से और व्यवस्थित रूप से शामिल हों, जिसमें किसान संगठन, उपभोक्ता संगठन, पर्यावरणविद, पारिस्थितिकीविद, मधुमक्खी पालक, कृषि श्रमिक संघ, भारतीय चिकित्सा पद्धति के चिकित्सक और विशेषज्ञ, जैविक/प्राकृतिक खेती संघ और चिकित्सक, जैविक खेती उद्यम, निर्यातक और व्यापारी आदि शामिल हों।
परामर्शों में नीति निर्माण के लिए स्थानीय भाषा के इनपुट शामिल होने चाहिए। साथ ही इसकी वीडियो रिकॉर्डिंग की जानी चाहिए और उन्हें सार्वजनिक डोमेन में संग्रहित किया जाना चाहिए।
सार्थक सार्वजनिक परामर्श प्रक्रियाओं में जनता से लिखित रूप में (ईमेल या पोर्टल पर) विस्तृत या अन्यथा प्रतिक्रिया प्राप्त करने की व्यवस्था भी शामिल होनी चाहिए। सभी लिखित प्रतिक्रियाओं को स्कैन करके वेब साइटों पर अपलोड किया जाना चाहिए। और कई हितधारकों तक सक्रिय रूप से पहुंचने और उनकी भागीदारी को सुविधाजनक बनाने के लिए, भारत सरकार पर्यावरण शिक्षा केंद्र (सीईई) जैसे संगठन को शामिल करने पर विचार कर सकती है जैसा कि बीटी बैंगन परामर्श के दौरान किया गया था। उस समय, सीईई ने प्राप्त सभी प्रतिक्रियाओं को एक रिपोर्ट में संकलित किया था जिसे एमओईएफसीसी द्वारा सार्वजनिक डोमेन में रखा गया था।