खाद्य वस्तुओं ने एक बार फिर आम लोगों की चिंता बढ़ा दी है. आम लोगों को आगामी कुछ महीनों तक भारी महंगाई का सामना करना पड़ सकता है. दरअसल, स्थानीय बाजार में दाल की मांग अधिक और सप्लाई कम होने की वजह से इसकी कीमतों में लगातार उछाल देखने को मिल रहा है, जिसकी वजह से अगले पांच-छ महीनों तक कीमतों में बढ़ोतरी होने का अनुमान है.
अधिक डिमांड और सप्लाई कम
विशेषज्ञों का मानना है कि अक्टूबर में नई फसल बाजार में आनी शुरू होगी, तब तक अधिक मांग और कम सप्लाई के कारण इसकी कीमतों में इजाफा होने की संभावना है. सरकार की ओर से अरहर, चना और उड़द दाल की कीमतों को कंट्रोल करने के लिए कई उपाए किए हैं, लेकिन अधिक मांग ने एक बार फिर चिंता बढ़ा दी है.
प्रतिकूल मानसून की वजह से कीमतें बढेंगी
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य एकोनॉमिस्ट मदन सबनवीस ने कहा ,”नई फसल अक्टूबर के बाद आती है, और यह देखते हुए कि पिछले साल तुअर का प्रोडक्शन कम था, स्टॉक कम होगा, जिससे कीमतों पर दबाव पड़ेगा.” सबनवीस ने कहा कि मॉनसून की वजह से दालों की कीमतें बढ़ेंगी. वहीं, इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के सीनियर एनालिटिस्ट पारस जसराई ने कहा, ” दलहन महंगाई 11 महीनों से दोहरे अंक में है और वित्त वर्ष 2024 की दूसरी तिमाही के अंत तक इसके कम होने की संभावना नहीं है.” जसराई ने कहा, यह खाद्य मुद्रास्फीति को बढ़ावा देने वाले कारकों में से एक होगा. उन्होंने कहा, “यदि मानसून की स्थिति अनुकूल नहीं रही, तो दाल मुद्रास्फीति और भी लंबी अधिक समय तक बरकरार रह सकती है.
ऑल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन के प्रेसिडेंट सुरेश अग्रवाल ने कहा कि दलहनों की अगली बुआई – मुख्य रूप से तुअर और उड़द – मानसून की शुरुआत के बाद जून-जुलाई में शुरू होगी, उड़द की कटाई अक्टूबर-नवंबर में होगी जबकि तुअर की कटाई जनवरी से शुरू होगी.” हालांकि कुछ दालें, मुख्य रूप से मूंग, रबी और ख़रीफ़ के बीच गर्मी के मौसम में भी बोई जाती हैं, लेकिन उनका उत्पादन इतना नहीं होता कि कीमतों पर कोई बड़ा प्रभाव पड़े.
मालूम हो कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा दाल उत्पादक है, लेकिन देश में दाल की डिमांड ने सरकार की चिंता बढ़ा दी है. फसल वर्ष 2022-23 में भारत का दालों का प्रडोक्शन 26.05 मिलियन टन था. वहीं, मौजूदा साल के लिए 2 करोड़ 80 लाख टन वार्षिक खपत का अनुमान लगाया गया है. लेकिन दाल की बढ़ती डिमांड के बाद यह अनुमान बढ़ने की आशंका है.