मखाने की खेती से जुड़ी कुछ महतवपूर्ण बातें

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भारत में लगभग 15 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में मखाने की खेती की जाती है, जिसमें से 80-90 फीसदी उत्पादन अकेले बिहार में ही होता है. इसके उत्पादन में 70 फीसदी हिस्सा सिर्फ मिथिलांचल का है. लगभग 120,000 टन बीज मखाने का उत्पादन होता है, जिससे 40,000 टन मखाने का लावा प्राप्त होता है. आप में से सभी ने मखाना से बना स्वादिष्ट कोई न कोई व्यंजन अवश्य खाया होगा. यह खाने में जितना स्वादिष्ट लगता है, उतना ही इसकी खेती कष्टकारी एवं श्रम साध्य है. आइए कृषि जागरण की इस पोस्ट में जानते हैं, मखाना की खेती से जुडी कुछ महतवपूर्ण बातें.

राष्ट्रीय मखाना शोध केंद्र की स्थापना

वर्ष 2002 में दरभंगा, बिहार के निकट बासुदेवपुर में राष्ट्रीय मखाना शोध केंद्र की स्थापना की गई. इस केंद्र का प्रमुख उद्देश्य था की मखाना की खेती को वैज्ञानिक ढंग से किया जाए. दरभंगा में स्थित यह अनुसंधान केंद्र भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत कार्य करता है. छोटे-छोटे कांटे की बहुलता के वजह से मखानो को कांटे युक्त लिली भी कहा जाता है. मखाना के निर्यात से देश को प्रतिवर्ष 25 से 30 करोड़ की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है. व्यापारी बिहार से मखाना को दिल्ली, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भेजते हैं.

आर्गेनिक भोजन है मखाना

परंपरागत मखाने की खेती में कृषि रसायनों का प्रयोग न के बराबर होता है, जिसकी वजह से इसे आर्गेनिक भोजन भी कहा जाता है. बहुत कम ही ऐसी चीजे होते है जो स्वाद के साथ-साथ आपकी सेहत का भी ध्यान रखे. ऐसे में मखाना आपके लिए एक वरदान साबित हो सकती है. आइये जानते है मखाने में पाए जाने वाले कुछ पौष्टिक तत्वों के बारे में. मखाना में प्रोटीन 9.7%,कार्बोहाईड्रेट 76%,नमी 12.8%,वसा 0.1%, खनिज लवण 0.5%,फॉस्फोरस 0.9%,लौह पदार्थ 1.4 मिली ग्राम प्राप्त होता है.

गंभीर बीमारियों से बचाव

शोधकर्ताओं का कहना है कि मखाना खाने से हार्ट-अटैक जैसे गंभीर बीमारियों से हम बच सकते हैं. जोड़ों के दर्द में लाभकारी है क्योंकि मखाने में कैल्शियम भरपूर मात्रा में होता है. इसको रोजाना खाने से गठिया एवं जोड़ों के रोग से छुटकारा पाया जा सकता है. पाचन में मददगार होता है, इसमें एंटी-ऑक्सीडेंट होती है जिससे इसे आसानी से पचाया जा सकता है. मखाना का सेवन किडनी के लिए लाभकारी होता है, इसका सेवन स्प्लीन को डीटोक्सिफई करता है. इसका रोजाना सेवन करने से किडनी को बहुत लाभ मिलता है. महिलाओं को प्रेगनेंसी के दौरान मखाने का सेवन रोजाना करने से लाभ मिलता है. जानकारों की माने तो मखाना पाचन में सहायक होती है. प्रेगनेंसी के दौरान शरीर को पौष्टिक आहार की जरुरत होती है जिस कारण यह बहुत लाभकारी है. इसे आप प्रेग्नेंसी के बाद भी खा सकते हैं.

अंतरराष्टीय बाजारों में भी मांग

वैसे तो पूरे भारत के कुल उत्पादन का 85% सिर्फ बिहार में ही होता है. परन्तु बिहार के अलावा बंगाल, असम, उड़ीसा, जम्मू कश्मीर, मणिपुर और मध्य प्रदेश में भी इसकी खेती की जाती है. हालांकि व्यवसायिक स्तर पर इसकी खेती अभी सिर्फ बिहार में ही की जा रही है. लेकिन केन्द्र सरकार अब बिहार के साथ ही देश के अन्य बाकी राज्यों में भी इसकी खेती को बढ़ावा देने के लिए लगातार काम कर रही है. मखाना की खपत देश के साथ ही अंतरराष्टीय बाजारों में भी है. भारत के अलावा चीन, जापान, कोरिया और रूस में मखाना की खेती की जाती है. हमारे देश में बिहार के दरभंगा और मधुबनी में मखाने की खेती सबसे ज्यादा की जाती है.

हाल के वर्षो में मखाना की खेती बिहार के कटिहार एवं पूर्णिया में भी आधुनिक दंग किया जा रहा है. जनसंख्या वृद्धि के दबाव में तालाबों की संख्या बहुत कम हो गई है जिसकी वजह से मखाना की परंपरागत खेती में कमी आ रहा है लेकिन मखाना अनुसंधान संस्थान, दरभंगा के वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक विकसित की है, जिसमें अब खेतों में भी मखाना की खेती हो सकेगी. उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल, तराई और मध्य यूपी के कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां पर खेतों में साल भर जल जमाव रहता है. ऐसे में इन खेतों में मखाना की खेती करके किसान आर्थिक रूप से समृद्ध हो सकते हैं.

मखाने की खेती

मखाने की खेती के लिए ज्यादातर तालाबों या तालों में किया जाता है, लेकिन इसके अलावा मखाने की खेती खेत में भी की जा सकती है, जिसके लिए खेत में 6 से 9 इंच तक पानी जमा होने की व्यवस्था करनी होती हैं. आप चाहे तो खुद से भी एक तालाब तैयार कर मखाने के बीज की रोपाई कर सकते हैं. बीजरोपण से पहले तालाब के पानी से खरपतवार निकाल लेते है. अप्रैल माह में मखाना के पौधों में फूल आने लगते हैं. फूल पौधों पर 3-4 दिन तक टिके रहते हैं. और इस बीच पौधों में बीज बनाने की प्रक्रिया चलते रहती बनते हैं. एक से दो महीनों में बीज फलों में बदलने लगते हैं. फल जून-जुलाई में 24 से 48 घंटे तक पानी की सतह पर तैरते हैं और फिर नीचे जा बैठते हैं. मखाने के फल कांटेदार होते है. एक से दो महीने का समय कांटो को गलने में लग जाता है, सितंबर-अक्टूबर महीने में पानी की निचली सतह से किसान उन्हें इकट्ठा करते हैं, फिर इसके बाद प्रोसेसिंग का काम शुरू किया जाता है. धूप में बीजों को सुखाया जाता है. बीजों के आकार के आधार पर उन की ग्रेडिंग की जाती है. मखाना के फल का आवरण बहुत ही सख्त होता है, उसे उच्च तापमान पर गर्म करते है एवं उसी तापमान पर उसे हथौड़े से फोड़ कर लावा को निकलते है, इसके बाद इसके लावा से तरह-तरह के पकवान एवं खाने की चीजे तैयार की जाती है.

मखाना उत्पादन की समस्याएं

मखाना का फल कांटेदार एवं छिलकों से घिरा होता है, जिससे की इसको निकालने एवं उत्पादन में और भी कठिनाई होती है. यह बताते चले कि पानी से मखाना निकालने में लगभग 20 से 25 प्रतिशत मखाना छूट जाता है और लगभग इतना प्रतिशत मखाना छिलका उतारते समय खराब हो जाता है. ज्यादातर मामलों में मखाने की खेती पानी में की जाती है, ऐसे में पानी से निकालने में किसानों को तरह-तरह के समस्याओं का सामना करना पड़ता है. ज्यादा गहराई वाले तालाबों से तो मखाना निकालने वाले श्रमिकों का डूबने का डर भी बना रहता है. समुचित सुरक्षा के साधनों के अभाव में किसान को पानी में रहने वाले जीवों से भी काफी खतरा रहता है. जल में कई ऐसे विषाणु भी होते हैं, जो गंभीर बीमारियां पैदा कर सकते हैं.

मखाना के बीजों को एकत्र

मखाना उत्पादक किसानों को मखाना का बीज को एकत्र करने के क्रम में पानी में गोता लगाते है और बीज को एकत्र करते हैं. ऐसे में मखाना के बीज को एकत्र करने के लिए बारबार गोता लगाना पड़ता है, जिससे समय, शक्ति और मजदूरी पर अधिक पैसा खर्च होता है. इस तरह से किसान एक बार में दो मिनट से ज्यादा गोता पानी के अंदर नही लगा पता है, यदि उसे ऑक्सीजन सिलेंडर  मुहैया करवा दिया जाय तो वह ज्यादा समय तक पानी के अंदर गोता लगा सकता है एवं अधिक से अधिक मखाना के बीज को एकत्र कर सकता है.

बीज से लावा के निकल जाने के बाद आप चाहे तो मखाने को सीधा अपने बाजार में लोकल कस्टमर के बीच उतार सकते है. आप इसे रिटेल भी कर सकते हैं  एवं बेहतर डील मिलने पर व्होलसेल की दर पे भी बेच सकते हैं. इसके कई व्यापारी आपको एडवांस तक देते हैं. ये एक नकद बिकने वाली फसल है तथा देश से लेकर विदेश तक इसकी मांग लगातार  बढ़ रही है. ऑनलाइन के इस दौर में आप चाहे तो अपने मखाने की पैकेजिंग कर फ्लिपकार्ट, अमेज़न इत्यादि ऑनलाइन साइट पर भी बेच सकते है.