आज के समय में एग्रीकल्चर एरिया में भी काफ़ी तरक्की हुई है। बड़ी तादाद किसान हैं जो टेक्नोलॉजी का खूब इस्तेमाल कर रहे हैं और इससे उनकी इनकम में इज़ाफा हो रहा है। हम यहां पर ड्रिप सिंचाई प्रणाली या टपक सिंचाई तकनीक के बारें में बात करने वाले हैं। इसकी मदद लेकर किसान अपना खर्च, समय और पानी की बचत कर सकता है। इस टेक्नोलॉजी से उन किसानों को सबसे ज़्यादा फ़ायदा होता है जहां पानी की कमी है। ड्रिप इरिगेशन यानी टपक सिंचाई तकनीक खेतों, बगीचों में बड़े आराम से की जा सकती है।
नीति आयोग (NITI Aayog) की एक रिपोर्ट है जिसमें इस बात पर ज़ोर देते हुए बताया गया है कि भारत भविष्य में पानी की भारी कमी से जूझने वाला है। इस रिपोर्ट में ये साफ़तौर से बताया गया है कि साल 2050 तक देश में खेती के लिए पानी उपलब्धता मात्र 68 फीसदी हो जाएगी। देश के 6,000 से ज़्यादा इलाकों को ब्लैक ज़ोन घोषित किया जा चुका है। इसीलिए भारत के कई सारे वैज्ञानिकों ने इस रिपोर्ट या टपक सिंचाई तकनीक पर फ़ोकस किया जा रहा है।
खेती में ड्रिप इरिगेशन प्रणाली
ड्रिप इरिगेशन प्रणाली या टपक सिंचाई तकनीक सिंचाई का एक ऐसा सिस्टम है जो बहुत ही कम पानी की मात्रा में पूरे खेत को सिंचिंत करती है। इस प्रणाली में पानी सिर्फ़ सिंचाई की ज़रूरत के अनुसार ही इस्तेमाल में लाया जाता है। ये सिस्टम पानी की बर्बादी को बचाता है। ड्रिप इरिगेशन (Drip Irrigation Technique) में, खेतों में पानी की बूंदें हल्की स्पीड के साथ पौधों पर गिरती हैं। पानी सीधे जड़ों में पहुंचता हैं। इस सिस्टम के ज़रिए नालियों या फिर पाइपों के माध्यम से पानी खेतों में लगे पौधों और फसलों तक पहुंचता है।
ड्रिप इरिगेशन प्रणाली के घटक
ड्रिप इरिगेशन प्रणाली के मुख्य घटकों में पाइपलाइन, सब-मेन पाइपलाइन, ड्रिपर्स, वाल्व्स, और फिल्टर आते हैं। मुख्य पाइपलाइन से पानी सब-मेन पाइपलाइन में जाता है, जहां से ड्रिपर्स के ज़रिए पानी को पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है। वाल्व्स और फिल्टर इस प्रणाली में पानी की मात्रा और गुणवत्ता को नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभाते हैं।
पाइपलाइन: ये पानी को स्रोत से पौधों तक पहुंचाती है। ये पाइपलाइन कई आकार और मटेरियलस में उपलब्ध होती है, जो फसल और क्षेत्र के मुताबिक चुनी जाती है।
ड्रिपर्स या इमीटर्स प्रणाली: ये दूसरा प्रमुख घटक है। ये छोटे नोज़ल होते हैं जो पाइपलाइन से जुड़े होते हैं और जल को नियंत्रित मात्रा में पौधों की जड़ों तक पहुंचाते हैं। ड्रिपर्स की विशेषता है कि ये जल की बर्बादी को कम करते हैं और पौधों को ज़रूरी नमी देते हैं।
वाल्व: ये जल प्रवाह को कंट्रोल करते हैं। पाइपलाइन के हर हिस्से में पानी पहुंचे हिस्सों में जल के वितरण को सुनिश्चित करने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। कई तरह के वाल्व जैसे कि मैनुअल, इलेक्ट्रिक और सोलोनॉइड वाल्व, कई कृषि ज़रूरतों के अनुसार इस्तेमाल किए जाते हैं।
फ़िल्टर्स: ये पानी में मौजूद अशुद्धियों को हटाने का काम करते हैं, जिससे ड्रिपर्स और पाइपलाइन के बीच का कनेक्शन सही रहे। कई तरह के फ़िल्टर्स जैसे कि स्क्रीन फिल्टर, सैंड फिल्टर और डिस्क फिल्टर, जल की गुणवत्ता और स्रोत के अनुसार उपयोग किए जाते हैं।
इनके अलावा, ड्रिप सिंचाई प्रणाली में प्रेशर रेगुलेटर्स, कनेक्टर्स और टाइमर्स जैसे उपकरण भी होते हैं, जो इसे सुचारु तरीके से चलाने में मददगार होते हैं।
कैसे हुई ड्रिप इरिगेशन की शुरुआत?
इजरायल में पानी की कमी को झेलते हुए इजराइली इंजीनियर सिमका ब्लोग ने 1964 में ड्रिप इरिगेशन प्रणाली ईज़ाद की। उन्होंनेदेखा कि पाइप से निकलने वाले पानी से पौधों में वृद्धि दूसरे एरिया के पौधों की तुलना में ज़्यादा है। इसी को देखकर उन्होंने ड्रिप इरिगेशन सिस्टम को डेवलप किया।
ड्रिप इरिगेशन कितने तरह के होते हैं?
सब्सर्फेस ड्रिप इरिगेशन
सब्सर्फेस ड्रिप इरिगेशन एक के माध्यम से वितरित किया जाता है। इस तकनीक का उद्देश्य पानी की बचत और पौधों को उनकी जरूरत के अनुसार उचित मात्रा में पानी पहुँचाना है।
टॉप फीड ड्रिप इरिगेशन
टॉप फीड ड्रिप इरिगेशन भी एक सिंचाई तकनीक है, जिसमें पानी को पौधों की जड़ों तक पहुंचाने के लिए ड्रिपर्स का उपयोग किया जाता है। इसमें भूमि की सतह पर लगे ड्रिपर्स के ज़रिए पौधों को पानी दिया जाता है। ये तकनीक छोटे खेतों के साथ ही फूलों, गार्डन प्लांट और पत्तेदार सब्जियों के लिए आराम से इस्तेमाल में लाई जा सकती है।
ड्रिप सिंचाई प्रणाली के फ़ायदे
- जहां पानी की कमी होती है वहां पर ड्रिप इरिगेशन या टपक सिंचाई तकनीक सबसे अच्छी और काम की तकनीक है। इससे पानी वेस्ट नहीं होता है, वो सीधे पौधों की जड़ों में जाता है।
- ड्रिप इरिगेशन या टपक सिंचाई तकनीक से आपको पानी पड़ने के दौरान खेत में रुकने की ज़रूरत नहीं होती है। बस टाइम सेट करके पानी जाने के लिए टंकी या नल खोलना होगा। पानी अपने आप फसल की जड़ों तक पहुंचता रहता है।
- बड़े खेतों में पानी लगाने के लिए लेबर की ज़रूरत होती है। इस सिस्टम को अपनाने से मज़दूर नहीं रखना पड़ेगा यानि लेबर पर लगने वाला खर्च बच जाएगा।
- ड्रिप इरिगेशन या टपक सिंचाई तकनीक की मदद से किसान अपने खेतों में फर्टिलाइज़र भी डाल सकते हैं। लेकिन इसके लिए लिक्विड न्यूट्रिएंट्स का इस्तेमाल किया जाता है। किसान इसको पानी में मिलाकर खेतों में पाइप के ज़रीये सप्लाई कर सकते हैं।
- ऑटोमेटिक ड्रिप इरिगेशन और फर्टिगेशन सिस्टम
- सिंचाई की फर्टिगेशन तकनीक में सिंचाई के पानी में ही उर्वरकों को मिलाया जाता है। फिर इंटरसेप्टर की मदद से ड्रिपर्स द्वारा उर्वरकों को सीधे पौधों तक पहुंचाया जाता है।
- ड्रिप इरिगेशन या टपक सिंचाई तकनीक की मदद से पौधों के लिए इस्तेमाल होने वाले फर्टिलाइज़र पानी में पूरी तरह से घुलने वाले होना चाहिए।
- नाइट्रोजन फर्टिलाइज़र में अमोनियम सल्फेट, अमोनियम क्लोराइड, कैल्शियम, नाइट्रेट, डाईअमोनियम फास्फेट, पोटाशियम ना (Drip Irrigation) या टपक सिंचाई तकनीक में होता है।
- वहीं कई फास्फोरसयुक्त खाद भी पानी में घुलती है। ड्रिप इरिगेशन की मदद से पौधों की जड़ों तक पहुंचती है।
- म्यूरेट ऑफ़ पोटाश और पोटाशियम सल्फेट खाद पानी में घुलनशील है इसलिए इनका यूज टपक सिंचाई तकनीक में आसानी से होता है।
- ड्रिप इरिगेशन के इस्तेमाल पर ज़ोर
देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी किसानों से खेती में ड्रिप इरिगेशन सिस्टम को अपनाकर लागत घटाकर उत्पादन बढ़ाने पर ज़ोर दिया है। भारत के जिन स्थानों पर पानी की कमी, सूखा है प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत ड्रिप सिंचाई को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे पानी की बचत होती है, साथ ही सिंचाई पर भी कम खर्च होता है।
ड्रिप इरिगेशन के लिए सब्सिडी और अनुदान
ड्रिप इरिगेशन के लिए भारत सरकार और कई राज्य सरकारें किसानों को सब्सिडी और अनुदान देती हैं ताकि वो इस तकनीक को अपनाकर जल संरक्षण और कृषि उत्पादन को बढ़ावा दे सकें। ये सब्सिडी और अनुदान कई योजनाओं और कार्यक्रमों के तहत दिए जाते हैं।
सिंचाई पर केंद्र सरकार की मुख्य योजना
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना : इस योजना का उद्देश्य ‘हर खेत को पानी’ पहुंचाना और जल की बर्बादी को कम करना है। इस योजना के अंतर्गत, ड्रिप इरिगेशन सिस्टम के लिए किसानों को सब्सिडी दी जाती है। सब्सिडी की राशि भूमि की श्रेणी और किसान की श्रेणी (लघु, सीमांत, या सामान्य) पर निर्भर करती है।
ड्रिप सिंचाई प्रणाली को लेकर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
सवाल: ड्रिप सिंचाई प्रणाली क्या है?
जवाब: ड्रिप सिंचाई प्रणाली एक ऐसी तकनीक है जिसमें पानी को सीधे पौधों की जड़ों तक पहुँचाया जाता है। इसमें पानी को धीरे-धीरे और नियंत्रित मात्रा में ड्रिपर्स के माध्यम से छोड़ दिया जाता है, जिससे पानी की बर्बादी कम होती है और पौधों को उनकी आवश्यकता के अनुसार पानी मिलता है।
सवाल: ड्रिप सिंचाई प्रणाली के लाभ क्या हैं?
जवाब: ड्रिप सिंचाई प्रणाली के मुख्य फ़ायदे:
- पानी की बचत
- उर्वरक का कुशल उपयोग
- पौधों का स्वस्थ विकास
- उत्पादन में वृद्धि
- खरपतवार नियंत्रण
- जल संसाधन प्रबंधन
- सवाल: ड्रिप सिंचाई प्रणाली में लागत कितनी आती है?
जवाब: ड्रिप सिंचाई प्रणाली की लागत भूमि के आकार, फसल के प्रकार और प्रणाली के घटकों पर निर्भर करती है। सामान्यत: प्रति हेक्टेयर 30,000 रुपये से 1,00,000 रुपये तक की लागत आ सकती है।
सवाल: क्या ड्रिप सिंचाई प्रणाली सभी तरह की फसलों के लिए उपयुक्त है?
जवाब: हां, ड्रिप सिंचाई प्रणाली विभिन्न प्रकार की फसलों के लिए उपयुक्त है, जैसे कि फल, सब्जियां, अनाज, और बागवानी फसलें। हर फसल के लिए ड्रिपर्स की स्पेसिंग और पानी की मात्रा को एडजस्ट किया जा सकता है।
सवाल: ड्रिप सिंचाई को और किन नामों से जाना जाता है?
जवाब: ड्रिप सिंचाई को टपक सिंचाई और बूंद-बूंद सिंचाई नाम से भी जाना जाता है।
सवाल: ड्रिप सिंचाई प्रणाली को स्थापित करने के लिए क्या ज़रूरी?
जवाब: ड्रिप सिंचाई प्रणाली को स्थापित करने के लिए ज़रूरी बातें:
- भूमि का निरीक्षण और योजना बनाना
- आवश्यक उपकरण और सामग्री (ड्रिपर्स, पाइपलाइन्स, फिल्टर्स, आदि)
- पानी का स्रोत (कुआं, बोरवेल, तालाब, आदि)
- एक प्रशिक्षित तकनीशियन या विशेषज्ञ की मदद
- सवाल: ड्रिप सिंचाई प्रणाली के लिए कितनी सब्सिडी मिलती है?
जवाब: सब्सिडी की राशि केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं पर निर्भर करती है। आमतौर पर, किसानों को 50% से 90% तक की सब्सिडी मिल सकती है। लघु और सीमांत किसानों को अधिक सब्सिडी दी जाती है।