कश्मीर से केसर के बीजों की तस्करी

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ऐसा दावा किया जाता है कि दुनियाभर के मसालों में केसर सबसे महंगी बिकती है. और अगर केसर कश्मीर की हो तो फिर उसके दाम तो और भी अच्छे मिलते हैं. कश्मीर एग्रीकल्चर विभाग के डायरेक्टर का कहना है कि कश्मीरी केसर प्राकृतिक तरीके से ही ऑर्गेनिक है. यही वजह है कि कश्मीरी केसर के बीजों की तस्करी हो रही है. कई बार कश्मीर के एयरपोर्ट पर केसर का हजारों क्विंटल बीज पकड़ा जा चुका है. विभाग का आरोप है कि ये कश्मीर से केसर की खेती खत्म करने की भी एक साजिश है.  

हालांकि एग्रीकल्चर विभाग का ये भी कहना है कि सिर्फ कश्मीरी केसर के बीज से दूसरे इलाकों में कश्मीर जैसी केसर नहीं उगाई जा सकती है. इस तरह की कोशिश से सिर्फ महत्व पूर्ण बीज की बर्बादी ही होती है. यही वजह है कि एग्रीकल्चर विभाग की टीम 24 घंटे अलर्ट पर रहकर ये निगरानी करती है कि कोई कश्मीर से केसर का बीज बाहर ले जाने की कोशिश तो नहीं कर रहा है.

900 घंटे की लगातार ठंडक चाहिए केसर को 

डायरेक्टर चौधरी मोहम्मद इकबाल ने किसान तक को बताया कि कुछ लोग लगातार केसर का बीज कश्मीर से बाहर ले जाने की कोशिश में रहते हैं. हालांकि ऐसे लोगों की कोशिशों को हमारी टीम नाकामयाब कर रही है. ये वो लोग हैं जो कश्मीर से बीज ले जाकर गर्म इलाकों में उस बीज को लगाने की कोशिश करते हैं. सबसे पहली बात तो ये कि केसर की फसल को 900 से 11 सौ घंटे की लगातार ठंडक चाहिए होती है. इस तरह की ठंडक केसर के पौधे को सिर्फ कश्मीर में ही मिलती है. जो लोग कश्मीर के बाहर इसे उगाने की कोशिश करते हैं वो पौधे को कंट्रोल चिलिंग देने की कोशिश करते हैं. 

इस तरह की कोशिश से पौधे में फूल तो आ सकता है, लेकिन उस बीज से और दूसरे बीज तैयार नहीं कर सकते हैं. ये काम सिर्फ कश्मीर की जमीन पर ही मुमिकन है. ऐसा करने से केसर के बीजों का नुकसान होता है. इससे कश्मीर में केसर के उत्पादन पर असर पड़ रहा है. ऐसा करने वाले वो लोग हैं जो अपने इलाकों में केसर की खेती दिखाकर सरकारी ग्रांट हासिल करने की कोशिश करते हैं. 

कम हो रहा है कश्मीर में केसर का उत्पादन 

सैय्यद अलताफ जम्मू-कश्मीर एग्रीकल्चर विभाग के डायरेक्टर रहे हैं. एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने किसान तक से हुई बातचीत में खुलासा करते हुए बताया था कि अगस्त-सितम्बर में केसर को बारिश की बहुत जरूरत होती है. वहीं दिसम्बर और जनवरी में बर्फवारी केसर की ग्रोथ को बढ़ाती है. लेकिन अफसोस की बात है कि क्लाइमेट चेंज के चलते बहुत बदलाव आ गया है. अब न तो बारिश का कोई भरोसा रहा है कि कब होगी और कब नहीं, और इसी तरह से बर्फवारी के बारे में की कब गिरेगी. खास बात ये है कि केसर की ज्यादातर सिंचाई प्रकृति के भरोसे ही रहती है.

आंकड़ों की मानें तो कुछ साल पहले तक कश्मीर के पुलवामा समेत कुछ इलाकों में हर साल 15 टन तक केसर का उत्पादन होता था. पांच हजार हेक्टेयर जमीन पर केसर की खेती की जाती थी. लेकिन अब जमीन घटकर करीब पौने चार हजार हेक्टेयर ही रह गई है. वहीं केसर का उत्पादन भी आठ-नौ टन के आसपास सिमटकर गया है.