अनाज भंडारण और प्रबंधन के सुरक्षित तरीके ‌

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फसल के दानों को अधिक समय तक सुरक्षित रखने के लिये उन्हें नमी, कीट चूहों तथा सूक्ष्म जीवों से बचाने के लिये उनका भंडारण करना आवश्यक है. भंडारण करने से पहले दानों को धूप में सुखाना आवश्यक होता है. सूख जाने से नमी कम हो जाती है. जिससे दानों को कीट और रोगों से सुरक्षा हो जाती है.

अनाज को सुरक्षित रखने के तरीके ‌

  • अनाज की बोरियों को सीधे जमीन या दीवार से सटाकर या लगाकर नहीं रखनी चाहिये.
  • लकड़ी के तख्त या चटाई को जमीन पर विछा लेना चाहिये.
  • अनाज को सुरक्षित रखने के लिये हमेशा जूट या पॉलीथिन बोरो का इस्तेमाल करना चाहिये.
  • कोठी में अनाज को पॉलीथिन में भंडारित करें. जिससे उसमें नमी न जाये.
  • जहाँ अनाज भंडारण कमरे में घरेलू सामान, उठना, बैठना नहीं करना चाहिये.
  • भंडारित अनाज का समय- समय पर निरीक्षण करते रहना चाहिये. जिससे हमें यह पता लग सके. कि इसमें कीट या कोई रोग तो नहीं है.
  • अनाजों को अच्छी तरह से सुखाना चाहिये. जिससे उसमें नमी न रहे.
  • अनाज को सुरक्षित रखने के लिये भंडारण करते समय अनाज में नीम की सूखी पत्तियों मिलाना चाहिये.
  • अनाज में 10-20 प्रतिशत तक राख मिलाने से खराव नहीं होता है. राख को सुखाकर व छानकर ही डालना चाहिये.
  • अनाज को भंडारण करते समय हवा का विशेष ध्यान रखें, कभी भी पूर्व से हवा बहने की दिशा में भंडारित न करें.
  • अनाजभण्डारण करने से लाभ
  • अनाज की गुणवत्ता बनी रहती है.
  • पूरे परिवार को गुणवत्ता युक्त अनाज मिलता है.
  • कीटों व्याधियों व नमी से अनाज सुरक्षित रहता है.
  • अनाज लम्बे समय तक सुरक्षित रहता है.
  • अनाज को कीट व फ़फूंद से बचाता है.
  • अनाज का भण्डारण करने से
  • व्यापारिक उद्देश्य से उसका मानकीकरण वर्गीकरण और चयन अच्छे से किया जा सकता है.
  • अनाज का उचित भण्डारण करने से किसान स्वयं अपना बीज तैयार कर सकता है.
  • यदि किसान स्वच्छ भंडारण करने से उसके उसकी उपज अच्छा मुनाफा मिलता है.
  • स्वच्छ भंडारण करने से बिक्री का नियंत्रण रहता है.
  • मौसम से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है.

भंडारण एवं भंडारण प्रबंधन के लिए भारतीय मानकखाद्य भंडारण वह प्रक्रिया है जिसमें सूखे और कच्चे माल को सूक्ष्मजीवों के किसी प्रविष्टि या गुणा के बिना भविष्य के उपयोग के लिए उपयुक्त स्थितियों में संग्रहीत किया जाता…

  • अनाजों में लगने वाले मुख्य कीट-
  • चावल का घुन -: चावल, गेहूँ, मक्का, जौ, ज्वार आदि
  • गेहूँ का खपरा-: गेहूँ, चावल,  मक्का, बाजरा, ज्वार आदि
  • दालों का भृंग -: अरहर, मूंग, उड़द , मटर, मोठ, आदि.
  • आटे की सूंडी-: गेहूँ, चावल, मक्का, जौ, सूजी, मैदा  आदि
  • चूहों का नियंत्रण

चूहों का नियंत्रण पूरे घर व आसपास के क्षेत्रों में मई व जून -माह में करना चाहिये . इस समय खेत में मई व जून माह में करना चाहिये . इस समय खेत में अन्य कोई खाद्य नहीं होता है . चूहों का नियंत्रण करने के लिये 2-3 प्रतिशत जिंक फास्फाइड उपयुक्त माना जाता है . विष चुग्गा देने से पहले 2-3 दिन तक बिना जहर वाला चुग्गा चूहों को देना चाहिये . जिससे नई वस्तु खाने की आदत लग सके . आवासीय जगहों के लिये एंटी कोगुलेंट क्रण्टक दवाओं जो कम जहरीली है. उनका प्रयोग करना चाहिये. जैसे – ब्रोमोडायोलोन.

कीट नियंत्रण

कीट नियंत्रण दो स्तर पर किया जाता है . बचाव के लिये और कीटों का प्रकोप होने के बाद बचाव कीट नियंत्रण की मुख्य आवश्यकता है .

ई.डी.वी एम्प्यूल 30 मिलीलीटर प्रति मीट्रिक टन
  • ई.डी.वी एम्प्यूल 30 मिलीलीटर प्रति मीट्रिक टन
  • सल्फास ( एल्मुनियम फ़ॉस्फ़ाइड) की 3 ग्राम की एक गोली / मीट्रिक टन या 7 गोली 2ग्राम / 22 घन मीटर स्थान की दर से कमरे ध्रूमण करें.
  • कीटों का आक्रमण के बाद 3 मिलीलीटर की ई.डी.वी एम्प्यूल प्रति कुंतल की दर कोटी में डालें.

लेखक:
विवेक कुमार  त्रिवेदी1 और देवाषीष  गोलुई2 नर्चर.फार्म, बंगलौर