स्वदेशी बीजों से खोजी 100 बेहतरीन फसल किस्में
शी बीजों के प्रति अपने गहरे लगाव और समर्पण के चलते, एक किसान ने 30 साल की कड़ी मेहनत के बाद 100 बेहतरीन फसल किस्मों की खोज कर डाली है. यह किसान, जिसने अपने जीवन को देशी बीजों के संरक्षण और संवर्धन के लिए समर्पित कर दिया, न केवल खुद के लिए बल्कि देशभर के किसानों के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बन गया है. इन बीजों के प्रति उनका यह प्रेम न केवल उनके खुद के खेतों के लिए लाभदायक साबित हुआ है, बल्कि यह उन किसानों के लिए भी एक उदाहरण बन गया है जो पर्यावरण और कृषि के संरक्षण के प्रति समर्पित हैं.
आजकल प्राकृतिक खेती और देशी बीजों का महत्व तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन यह कोई नई सोच नहीं है. देश के कई किसान बहुत पहले से ही इन पद्धतियों को अपनाने लगे थे. उन्होंने रासायनिक उर्वरकों और संकर बीजों के दुष्प्रभावों को समझते हुए अपने 30 साल पहले स्वदेशी बीद और जैविक खेती की ओर रुख किया. ऐसे ही एक सजग किसान हैं श्रीप्रकाश सिंह रघुवंशी, जो “अपनी खेती, अपना बीज, अपना खाद, अपना स्वाद!” के नारे को बुलंद करने वाले एक प्रगतिशील किसान के रूप में जाने जाते हैं. उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के तड़िया गांव के निवासी, 64 वर्षीय रघुवंशी ने केवल 8वीं कक्षा तक पढ़ाई की है. लेकिन उनका कृषि के प्रति समर्पण और खेती में स्वेदेशी बीजों और जैविक खेती में नवाचार से 30 सालों में 100 किस्मों की खोज करके उन्हें देशभर में प्रसिद्ध किया है.
किसान से स्वदेशी बीज के प्रहरी बन गए रघुवंशी
श्रीप्रकाश सिंह रघुवंशी पिछले 30 वर्षों से जैविक खेती और स्वदेशी बीजों की उन्नत किस्मों के विकास में लगे हुए हैं. उन्होंने गेहूं, धान, सरसों और अरहर जैसी प्रमुख फसलों की कई उन्नत किस्में तैयार की हैं, जिनसे जैविक खेती के माध्यम से रासायनिक खेती की तुलना में बेहतर पैदावार प्राप्त की जाती है. प्रकाश सिंह का कहना है कि उन्होंने प्राकृतिक रूप से बीज विकसित करने का हुनर अपने पिताजी से सीखा, जो प्राइमरी स्कूल के अध्यापक थे, लेकिन उन्नत किस्म की खेती करते थे. अपने पिताजी के मार्गदर्शन और प्रेरणा से ही उन्होंने कृषि में नवाचार की दिशा में कदम बढ़ाया. बाद में उन्हें नई किस्में विकसित करने की प्रेरणा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के पूर्व प्रोफेसर डॉ. महातिम सिंह से मिली, जिन्होंने उन्हें ऐसी किस्में विकसित करने के लिए प्रेरित किया जो किसानों की आय में सुधार कर सकें.
स्वदेशी बीजों से मिलेगी बेहतर पैदावार
रघुवंशी द्वारा विकसित गेहूं की ‘कुदरत’ किस्म, जो 1995 में उनके खेत में उगाई गई थी, उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है. इसके बाद उन्होंने गेहूं की कुदरत-7, कुदरत-9 जैसी अन्य किस्में विकसित कीं. अब तक, उन्होंने गेहूं की लगभग 80, धान की 25 और दालों की 10 और सरसों की 3 से अधिक किस्में विकसित की हैं. इसके अलावा, उन्होंने सरसों, मटर और अन्य फसलों के 200 से अधिक स्वदेशी बीज संरक्षित किए हैं. उनकी उन्नत किस्में प्रमुख कीटों और बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी हैं और उनके बीज स्वादिष्ट और सुगंधित होते हैं. गेहूं की उन्नत किस्मों की प्रति एकड़ उपज 15-27 क्विंटल के बीच होती है. धान की उन्नत किस्मों की उपज 15-30 क्विंटल प्रति एकड़ और अरहर की उन्नत किस्मों की उपज 10-15 क्विंटल प्रति एकड़ होती है. कुदरत-9 गेहूं और अरहर की कुदरत -3 सरकार ने पंजीकृत किया है. रघुवंशी अपने खेतों पर धान, गेहूं और अरहर सहित कई फसलों में जैविक तरीके से खेती करके अपने स्वदेशी बीजों से बंपर पैदावार ले रहे हैं. उन्होंने अपने घर पर एक बीज बैंक स्थापित किया है, जिसमें कई प्रकार के बीज संग्रहित हैं.
बीज संरक्षण के लिए मिला पीएम मोदी का सहयोग
प्रकाश रघुवंशी कहते हैं कि आर्थिक स्थिति खराब होन के कारण बड़ी संख्या में इन किस्मों का संरक्षण करना चुनौतीपूर्ण हो रहा था. हालांकि ये प्रजातियां पोषण और उत्पादन की दृष्टि बेहद अच्छी हैं, इसलिए गेहूं की प्रजातियों को जर्मप्लाज्म संरक्षित करने के लिए उन्होंने प्रधानमंत्री से पत्र लिख कर अनुरोध किया कि वे अपनी अस्सी गेहूं की प्रजातियों को भारत सरकार को दान करना चाहते हैं. रघुवंशी के इस पत्र को संज्ञान में लेते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) ने गेहूं एवं मक्का अनुसंधान संस्थान, करनाल को एक पत्र भेजा. पत्र मिलने के बाद, करनाल से दो वैज्ञानिक वाराणसी श्रीप्रकाश रघुवंशी के फार्म पर पहुंचे. रघुवंशी ने उन्हें 31 गेहूं की प्रजातियां सौंपी. शेष प्रजातियां अक्टूबर माह में बीज गोदाम खुलने पर सौंपी जाएंगी. बारिश के मौसम में बीजों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए शेष प्रजातियों को बाद में दिया जाएगा. इन प्रजातियों में प्रमुख रूप से सूर्या 555, कुदरत अन्नपूर्णा, रघुवंशी 777, कुदरत 17, कुदरत 9 आदि शामिल हैं.
प्रकाश रघुवंशी का जैविक खेती का खास तरीका
रघुवंशी का जैविक खेती का तरीका भी बेहद खास है. वे बनारस के मंदिरों से मिलने वाले फूलों, मदार और धतूरा का उपयोग कर जैविक खाद तैयार करते हैं और अमृत जीवा नामक घोल का उपयोग फसलों की सुरक्षा और बीज शोधन के लिए करते हैं. उनका मानना है कि बीजों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए ग्रेडिंग और पैकिंग की व्यवस्था खुद करनी चाहिए. अपने संघर्षों के बावजूद, रघुवंशी ने कभी हार नहीं मानी और हमेशा किसानों को स्वदेशी बीजों का उपयोग करने और अपने बीजों को स्वयं विकसित करने के लिए प्रेरित किया. उनके बीजदान अभियान ने उन्हें देशभर में पहचान दिलाई है और उन्हें राष्ट्रपति द्वारा लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है. श्रीप्रकाश सिंह रघुवंशी का जीवन और कार्य अन्य किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं.