अनाज पर कब्जे के बाद जल का निजीकरण

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– के. पी. मलिक
एक पत्रकार का दायित्व होता है कि वह न केवल हो चुकी घटनाओं का विश्लेषण करें, बल्कि यह भी बताए कि क्या होने जा रहा है? वह ये बताए कि सरकार क्या कर रही है, किस उद्देश्य से कर रही है और देश व समाज के सामने आने वाले वह खतरे कौन से है, जो निकट भविष्य में सामने आ सकते हैं।


दरअसल सरकारें, चाहे वह केन्द्र सरकार हो या राज्य सरकारें, वो तेजी से जल के निजीकरण पर काम कर रही है। हम पहले से ही जल के निजीकरण का एक नमूना यह देख रहे हैं कि पानी की एक लीटर की बोतल, जिसके अंदर पानी साफ है या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं है, 20 रुपए की मिलती है। अगर यही एक बोतल पानी हम किसी विदेशी कंपनी का खरीदें, जो कि है हमारे ही यहां का, तो वह 40-50 रुपए से लेकर 100 रुपए तक की मिलती है।

इस हिसाब से अगर पानी पर पूंजीपतियों का कब्जा हो जाएगा, तो सोचिए कि हमें हर काम के लिए पानी खरीदना पड़ेगा। महामारी कोरोना संक्रमण के दौरान हम ऑक्सीजन हम बड़ी मात्रा में खरीद चुकें है और आज भी खरीद ही रहे हैं।
जाहिर है प्रकृति के सबसे बड़े दुश्मन मानव द्वारा जिस तेजी से जंगल काटे जा रहे हैं, अगर यही स्थिति रही, तो आने वाले क़रीब दो दशकों में हमें सांस लेने के लिए भी ऑक्सीजन खरीदनी पड़ेगी।
यानि जिन प्राकृतिक संसाधनों पर हमारा पैदाइशी अधिकार है और जो चीजें हमें ईश्वर ने या कहें कि प्रकृति ने हमारे अधिकार के रूप में दी हैं, उन पर चंद लालची और क्रूर पूंजीपतियों का कब्जा हो जाएगा, विडंबना देखिए कि वो मुफ्त की चीजें भी हमें जीने के लिए खरीदनी ही पड़ेगीं।
राज्यों में जलक्षेत्र में पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप को बढ़ावा

पिछले दिनों एक खबर आई कि राजस्थान में एक बार फिर से पेयजल मीटर लगाने की शुरुआत की जा रही है। जलदाय विभाग पायलट प्रोजेक्ट के नल में स्मार्ट मीटर लगाकर राजस्थान की राजधानी जयपुर से इसकी शुरूआत करने जा रहा है। अब सेंसर के जरिए मीटरों की रीडिंग आ सकेगी।
उपभोक्ता रोजाना मोबाइल एप पर ये देख सकेगा कि आज कितना पानी खर्च किया? जल्द ही पूरे राजस्थान के हर घर मे स्मार्ट मीटर लग जाएंगे। हालांकि यह प्रोजेक्ट 2017 में पिछली सरकार द्वारा लाया गया था। लेकिन इसको 5 साल के बाद दूसरे राजनीतिक दल की सरकार लागू कर रही है। इससे साबित हो जाता है कि किसी भी राजनीतिक दल की सरकार रहे पूंजीपतियों का काम नही रुकता।
क्योंकि पार्टी फंड सभी को चाहिए होता है। हालांकि यह स्थिति सिर्फ केवल राजस्थान में ही नहीं है, इसकी शुरूआत उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश हो चुकी है। शिमला शहर में पेयजल कंपनी एएमआर चिप वाले सात हजार नए स्मार्ट मीटर लगाने जा रही है। कंपनी दफ्तर में ही कंप्यूटर पर मीटर की रीडिंग देख सकेगी और बिल जारी करेगी।
इसी तर्ज पर उत्तराखंड सरकार भी अब राज्य में पेयजल कनेक्शन पर मीटर अनिवार्य करने जा रही है। इसके पहले मध्य प्रदेश के ज़िले खंडवा में भी यह योजना लागू की गयी थी और इसका ठेका एक निजी कम्पनी को दिया गया था पर वहाँ यह प्रयोग सफल नहीं हुआ। जबकि महाराष्ट्र का नागपुर पहला ऐसा बड़ा शहर है, जहाँ की जल व्यवस्था निजी क्षेत्र के हाथों में है।
दरअसल यह सारे प्रोजेक्ट प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप द्वारा चलाए जा रहे हैं। सरकारों को लगता है कि यदि जल स्रोतों के रख-रखाव से लेकर वितरण तक की ज़िम्मेदारी निजी क्षेत्र के हाथ में सौंप दी जाए, तो जल प्रबन्धन की समस्या का समाधान किया जा सकता है। लेकिन जानकारों का मानना है कि इससे जल माफिया मनमानी करेंगे और आम आदमी, जिसका जल पर पैदाइशी अधिकार है, अपने अधिकार से वंचित हो जाएगा और जरूरत पड़ने पर उसे इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।

सामाजिक कार्यकर्ता और विचारक ‘भंवरलाल गोदारा’ कहते हैं कि देश के हर शहर कस्बे में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो दो वक्त का भोजन भी बड़ी मुश्किल से जुटा पाते हैं, सरकार ऐसे समूहों को सब्सिडाइज्ड दरों पर जलापूर्ति करती है। यदि निजी क्षेत्रों के हाथों में जल व्यवस्था चली जाती है, तो ऐसे में इन लोगों का क्या होगा? आशंका जताई जा रही है कि इक्कीसवीं शताब्दी में साफ पानी सबसे बड़ी कमोडिटी है।
जल उद्योग (वाटर इंडस्ट्री) का वार्षिक राजस्व आज आयल सेक्टर के लगभग 40 फ़ीसदी से ऊपर जा पहुँचा है। फ़ॉरच्यून पत्रिका की रिपोर्ट के अनुसार, बीसवीं शताब्दी के लिए तेल की जो कीमत थी, इक्कीसवीं शताब्दी के लिए पानी की वही कीमत होगी।
सरकारें अब इससे भी मुनाफा कमाना चाहती हैं वो चाहती हैं कि पानी का निजीकरण हो ही जाए, ताकि मुनाफे का एक हिस्सा सरकारों तक भी पहुंचता रहे। इसकी शुरुआत पीपीपी प्रोजेक्ट के जरिए जल वितरण की व्यवस्था में निजी कम्पनियों की भागीदारी सुनिश्चित कर के की जा चुकी है।
पानी का निजीकरण करने के खतरे
यह दक्षिणी अमेरिकी देश बोलिविया से स्पष्ट हो चुका है। दरअसल साल 1999 में जब विश्व बैंक के सुझाव पर बोलिविया सरकार ने कानून पारित कर कोचाबांबा की जल प्रणाली का निजीकरण कर दिया था। उन्होंने पूरी जल प्रणाली को ‘एगुअस देल तुनारी’ नाम की एक कंपनी को बेच दिया, जो कि स्थानीय व अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों का एक संघ था।
कानूनी तौर पर अब कोचाबांबा की ओर आने वाले पानी और यहां तक कि वहां होने वाली बारिश के पानी पर भी ‘एगुअस देल तुनारी’ कंपनी का हक था। निजीकरण के कुछ समय बाद कंपनी ने घरेलू पानी के बिलों में भारी बढ़ोतरी कर दी। कोचाबांबा में उनका पहला काम था करीबन 300 फ़ीसदी जल दरें बढ़ाना। कंपनी के इस गैर वाजिब निर्णय से इससे लोग सड़कों पर आ गए।

कोचाबांबा में पानी के निजीकरण विरोधी संघर्ष शुरू हुआ था, जो सात से अधिक सालों तक लगातार चला, जिसमें तीन जानें गईं और सैकड़ों महिला-पुरुष जख़्मी हुए। अमेरिकी देश बोलिविया द्वारा जिस निजी कम्पनी को जल पर नियंत्रण रखने का ठेका दिया गया था, उसका एकमात्र उद्देश्य था : मुनाफा कमाना। जबकि इस कंपनी से जुड़े पूंजीपतियों ने कोई निवेश नहीं किया था, मगर वे देश के बुनियादी संसाधनों का उपयोग कर सिर्फ मुनाफा ही कमाना चाहते थे।
बहरहाल बोलिविया के अनुभव से सीख लेते हुए हमारी सरकारों को जलक्षेत्र में पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप (सार्वजनिक-निजी भागीदारी) से बचना चाहिए। हिंदुस्तान की सभ्यता, संस्कृति और परंपराओं के मुताबिक भारतीयों का अपने दरवाजे आए किसी भी जाने अनजाने व्यक्ति को जलपान आदि कराना इस बात का प्रतीक है कि हमारे यहां प्राकृतिक संसाधनों को खरीदने बेचने की परंपरा कभी नहीं रही।
लिहाजा सरकारों को ऐसा करने से पहले आत्ममंथन की आवश्यकता है। इसके बावजूद अगर सरकारी नहीं मानती है तो इस जिम्मेदारी में सबसे अग्रणी भूमिका विपक्ष, सामाजिक संगठन, पत्रकार, बुद्धिजीवी वर्ग, समाजसेवियों और जागरूक लोगों की होनी चाहिए।
क्योंकि आम जनता को तो यह भी पता नहीं होता कि उसे अपने इलाके में क्या हो रहा है? ऐसे में सरकारों की रणनीति के बारे में कैसे जान सकती है, जब तक कि हम देश के जागरूक लोग उसे नहीं बताएंगे। लेकिन ऐसा होता आजकल हमें दिख नहीं रहा है। क्योंकि हमारे निजी स्वार्थ, लालच, गहरी तंद्रा और हमें क्या मतलब, की सोच के चलते बिजली तो पूरी तरह से निजी हाथों में जा ही चुकी है।
अब पेयजल व्यवस्था पर भी निजी क्षेत्र का कब्जा होने जा रहा है। अगर हम आज भी नहीं चेते और नही जागे, तो वह दिन दूर नहीं जब लोगों को हर प्राकृतिक संसाधन के लिए मोटी कीमत चुकानी पड़ेगी, जो कि उसे विरासत में मिली है। इसीलिए हमें आज और अभी से जागना होगा और सभी सोए हुए लोगों को भी जगाना होगा।