पेंशन योजना : बीच का रास्ता निकालने का प्रयास

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केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सरकारी कर्मचारियों के लिए एक नई पेंशन योजना को गत सप्ताह मंजूरी प्रदान की जिसे यूनिफाइड पेंशन सिस्टम (यूपीएस) का नाम दिया गया है। इसे 1 अप्रैल, 2025 से लागू किया जाएगा। इससे उन सरकारी कर्मचारियों को लाभ मिलेगा जिन्होंने 1 जनवरी, 2024 के बाद नौकरी शुरू की है तथा जो न्यू पेंशन स्कीम (एनपीएस) में शामिल हैं।

यूपीएस के तहत केंद्र सरकार के कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के पहले के 12 महीनों के औसत मूल वेतन के 50 फीसदी के बराबर पेंशन मिलेगी। इसके लिए शर्त है कि कर्मचारी ने न्यूनतम 25 वर्षों की सेवा अवधि पूरी की हो। कम अवधि तक नौकरी करने वालों की पेंशन कम होगी लेकिन इसके लिए कम से कम 10 साल नौकरी करना जरूरी होगा।

न्यूनतम 10 वर्ष नौकरी करने वाले कर्मचारियों को 10,000 रुपये की सुनिश्चित मासिक पेंशन प्रदान की जाएगी। यूपीएस में परिवार पेंशन भी मिलेगी तथा महंगाई का भी ध्यान रखा जाएगा। यूपीएस को मंजूरी मिलने के साथ ही सरकार ने पुरानी पेंशन योजना और नई पेंशन योजना की विशेषताओं को मिलाकर बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की है।

पेंशन का मसला कुछ राज्यों में हाल में हुए विधानसभा चुनावों में राजनीतिक रूप से भावनात्मक रहा है। राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पंजाब जैसे कुछ राज्यों ने, जहां उस समय राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार नहीं थी, वापस पुरानी पेंशन योजना अपना ली। इसकी वजह से भविष्य की पीढ़ियों पर पेंशन का बोझ पड़ेगा। उधर केंद्र सरकार ने तत्कालीन वित्त सचिव टीवी सोमनाथन के अधीन एक समिति का गठन किया था ताकि इस विषय की पड़ताल की जा सके।

ओपीएस के उलट जहां यूपीएस के तहत मिलने वाले लाभ परिभाषित होंगे, वहीं इसमें एनपीएस की तरह सुनिश्चित योगदान भी करना होगा। कर्मचारी यूपीएस में अपने मूल वेतन का 10 फीसदी और महंगाई भत्ते का योगदान जारी रखेंगे। सरकार अब एनपीएस में 14 फीसदी के स्थान पर इसमें 18.5 फीसदी का योगदान करेगी।

पहले वर्ष में इस अतिरिक्त योगदान का बोझ करीब 6,250 करोड़ रुपये होगा जबकि एकबारगी बकाये के रूप में 800 करोड़ रुपये की राशि खर्च होगी। जिन लोगों ने एनपीएस की शुरुआत के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली है उन्हें यूपीएस को अपनाने का विकल्प मिलेगा। यह योजना राज्य सरकारों के कर्मचारियों के लिए भी उपलब्ध होगी।

केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के बीच पेंशन को लेकर व्याप्त अनिश्चितता को दूर करने की कोशिश की है। सुनिश्चित पेंशन के साथ अब उन्हें अपने पेंशन फंड्स के प्रदर्शन को लेकर चिंतित नहीं होना होगा। योगदान बढ़ने के कारण सरकार को अतिरिक्त राशि चुकानी होगी। इसके अलावा भविष्य में अगर सुनिश्चित राशि प्रदान करने के लिए पेंशन फंड पर्याप्त रिटर्न नहीं जुटा पाता तो उसे इसके लिए भी धन जुटाना होगा। इसके बावजूद यह ओपीएस की तुलना में बेहतर विकल्प है क्योंकि इसमें भविष्य की पीढ़ियों पर उतना दबाव नहीं होगा।

यद्यपि यूपीएस ने सरकारी कर्मचारियों की चिंताओं को दूर करने की कोशिश की है लेकिन अभी देखना होगा कि राजनीतिक रूप से इसका क्या असर होता है। संभव है कि कुछ राज्य अभी भी ओपीएस की ओर वापस जाएंगे क्योंकि अल्पावधि में उन्हें योगदान के मोर्चे पर बचत देखने को मिलेगी। बहरहाल वृहद आर्थिक नजरिये से ऐसे कठिन सुधारों को उलट देना अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ेगा।

उदाहरण के लिए चालू वर्ष में केंद्र सरकार के स्तर पर पेंशन पर होने वाला व्यय केंद्र के कर राजस्व का तकरीबन 10 प्रतिशत होने का अनुमान है। एनपीएस को अपनाना हालिया दशकों के सबसे अहम सुधारों में से एक था। यह देश के लिए दीर्घकालिक लाभ का विषय होता और इसमें किसी भी तरह के बदलाव से बचना चाहिए था।