पाकिस्तान के मुल्तान, बहावलनगर, हाफिजाबाद जैसे इलाकों में काम करने वाली कई बीज कंपनियों ने ऐसे वीडियो जारी किये, जिससे भारत के कृषि वैज्ञानिक टेंशन में हैं. इस वीडियो में क्या है, क्यों भारत के लिए चिंताजनक है?इस पूरे विवाद को समझने से पहले जरा भारत के चावल निर्यात के हालिया आंकड़ों पर नजर डाल लेते हैं. अप्रैल-जनवरी 2022-23 में जहां भारत ने 371.1 बिलियन डॉलर का चावल निर्यात किया तो वहीं अप्रैल-जनवरी 2023-24 में 353.6 बिलियन डालर का. यानी भारत का कुल व्यापारिक निर्यात 5% कम हो गया. लेकिन इसी अवधि में बासमती चावल के निर्यात में अच्छा-खास उछाल देखा गया. अप्रैल-जनवरी 2022-23 के मुकाबले, अप्रैल-जनवरी 2023-24 में करीब 12.3% अधिक बासमती चावल निर्यात किया गया.
दुनिया भर में बदनाम पाकिस्तान अब भारत का चावल चुराने पर उतर आया है. भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा विकसित बासमती की उन्नत किस्म के बीज की चोरी से लेकर अवैध खेती तक कर रहा है. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान यानी IARI के वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि पाकिस्तान कम से कम भारत द्वारा विकसित बासमती की 6 किस्म की चोरी कर अवैध तरीके से खेती और बिक्री कर रहा है. हाल ही में पाकिस्तान के मुल्तान, बहावलनगर, हाफिजाबाद जैसे इलाकों में काम करने वाली कई बीज कंपनियों ने ऐसे वीडियो जारी किये, जिससे भारत के कृषि वैज्ञानिक टेंशन में हैं. इस वीडियो में क्या है, क्यों भारत के लिए चिंताजनक है?
वैज्ञानिकों को किस बात की टेंशन?
भारतीय कृषि वैज्ञानिक, IARI (Indian Agricultural Research Institute) द्वारा विकसित बासमती चावल की उन्नत और उच्च उपज वाली किस्मों की पाकिस्तान में कथित बीज चोरी और गैरकानूनी खेती को लेकर टेंशन में हैं. साल 2023 में करीब 21 लाख हेक्टेयर में सुगंधित बासमती चावल की खेती हुई, जिसमें से 89% किसानों ने आईएआरआई द्वारा विकसित बासमती की बीज का उपयोग किया. वैरायटी ने पूसा बासमती (पीबी) लेबल से जानी जाने वाली इन किस्मों की देश के 5-5.5 बिलियन डॉलर के वार्षिक बासमती निर्यात में 90% से अधिक हिस्सेदारी है.
कौन से बासमती की चोरी कर रहा पाकिस्तान?
पारंपरिक लंबी बासमती की किस्में, जैसे- तारौरी (एचबीसी-19), देहरादूनी (टाइप-3), सीएसआर-30 और बासमती-370 – कम उपज देने वाली थीं. प्रति एकड़ मुश्किल से 10 क्विंटल धान (भूसी के साथ चावल) का उत्पादन होता था. इनकी नर्सरी, बुआई से कटाई तक 160 दिन का वक्त लग जाता था. जबकि आईएआरआई (IARI) द्वारा विकसित नई किस्में, कम दिनों में अधिक अनाज तो देती ही हैं, इनके पौधों की ऊंचाई भी कम होती है.
IARI ने इस तरह की पहली किस्म – PB-1, 1989 में व्यावसायिक खेती के लिए जारी की थी. इसकी पैदावार 25-26 क्विंटल/एकड़ थी और यह 135-140 दिनों में पक जाती थी.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) इसके बाद लगातार बासमती की नई-नई किस्में डेवलप करता रहा. जैसै 2003 में जारी पीबी-1121, जो 140-145 दिन में पक जाती है और 20-21 क्विंटल/एकड़ उपज देती है. इस किस्म के चावल की लंबाई भी लंबाई 8 मिमी तक होती है और पकाने पर 21.5 मिमी तक बढ़ जाती है. इसके बाद पीबी-6 (पीबी-1 और पीबी-1121 का मिश्रण, 2010 में जारी) और पीबी-1509 (2013) आए. IARI ने बाद में PB-1121 (PB-1718 और PB-1885), PB-1509 (PB-1692 और PB-1847) और PB-6 (PB-1886) का और उन्नत संस्कर भी तैयार किया.
2 साल पहले अधिसूचित बीज भी नहीं छोड़े
भारतीय कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक पाकिस्तान लंबे वक्त से भारत का बासमती चुरा रहा है. IARI द्वारा पीबी-1121 तैयार करने के तीन साल बाद पाकिस्तान ने भी इसे जारी कर दिया और नाम रका PK-1121 या ‘कायनात’. इसी तरह, पीबी-1509 को भी किसान बासमती के नाम से पंजीकृत करवा लिया. अब पाकिस्तानी बीज कंपनियों और तथाकथित अनुसंधान फर्मों के जो यूट्यूब वीडियो आए हैं, उनमें नई आईएआरआई किस्मों पर चर्चा की गई है. इसमें पीबी-1847, पीबी-1885 और पीबी 1886 शामिल हैं, जिन्हें जनवरी 2022 में ही भारत के बीज अधिनियम (Seeds Act) के तहत अधिसूचित किया गया था.
भारत के लिए क्यों चिंता करने वाली बात?
हाल के सालों में पाकिस्तान के बासमती एक्सपोर्ट में कमी आई है, फिर भी भारतीय बासमती वैरायटी की चोरी चिंता की वजह है. एक्सपर्ट्स कहते हैं कि बासमती चावल मुख्य तौर पर भारत और पाकिस्तान में उगाया जाता हैय पाकिस्तान मुख्य रूप से सुपर बासमती का निर्यात करता है, जो लाहौर के पास काला शाह काकू में चावल अनुसंधान संस्थान द्वारा पैदा की गई एक उच्च उपज वाली किस्म (आईएआरआई के पीबी -1 जैसी) है. 1996 में जारी इस किस्म ने पाकिस्तान को भूरे (बिना पॉलिश/भूसी) बासमती चावल के लिए यूरोपीय संघ-यूनाइटेड किंगडम बाजार में 66-70% हिस्सेदारी हासिल करने में मदद की है. सितंबर 2023 तक यह हिस्सेदारी बढ़कर 85% हो गई.
भारत के खजाने पर निगाह
दूसरी तरफ, भारत- सऊदी अरब, ईरान, इराक, संयुक्त अरब अमीरात और अन्य पश्चिम एशियाई देशों में सबसे बड़ा निर्यातक है, क्योंकि भारत ज्यादातर उबला बासमती राइस सप्लाई करता है जो वहां के उपभोक्ता खासा पसंद करते हैं. पहले धान को पानी में भिगोया जाता है और कुटाई से पहले हल्का उबाला जाता है, इस तरह ये तैयार होता है. इसके दाने सख्त होते हैं और नियमित सफेद चावल की तुलना में लंबे समय तक पकाने के बावजूद टूटने की संभावना कम होती है. लेकिन पाकिस्तान की मिलें तेजी से परबॉइलिंग तकनीक को अपना रही हैं और इसके किसान बेहतर आईएआरआई बासमती किस्मों को लगा रहे हैं, जो आगे चलकर भारत के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है और राइस मार्केट को चुनौती दे सकता है.
भारत कितना एक्सपोर्ट करता है?
इस पूरे विवाद को समझने से पहले जरा भारत के चावल निर्यात के हालिया आंकड़ों पर नजर डाल लेते हैं. अप्रैल-जनवरी 2022-23 में जहां भारत ने 371.1 बिलियन डॉलर का चावल निर्यात किया तो वहीं अप्रैल-जनवरी 2023-24 में 353.6 बिलियन डालर का. यानी भारत का कुल व्यापारिक निर्यात 5% कम हो गया. लेकिन इसी अवधि में बासमती चावल के निर्यात में अच्छा-खास उछाल देखा गया. अप्रैल-जनवरी 2022-23 के मुकाबले, अप्रैल-जनवरी 2023-24 में करीब 12.3% अधिक बासमती चावल निर्यात किया गया.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर यह ट्रेंड बरकरार रहा तो भारत मार्च 2024 के आखिर तक कुल 50 लाख टन बासमती निर्यात कर सकता है, जिसका मूल्य 5.5 बिलियन डॉलर (या 45,550 करोड़ रुपये) होगा. यह अब तक का सबसे ज्यादा बासमती राइस एक्सपोर्ट होगा.